पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४९२

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एलङ्ग-एलापत्र ४५१ एलङ्ग (सं० पु०) मत्स्यविशेष, एक मछली। यह , द्राक्षा एक-एक पल चर्ण कर मधुके साथ रगड़ दो दो मधुर, वृष्य, ग्राही, कफ-वातघ्न, मेधाग्निपुष्टिकर, तोलेको गोली बनाये। इसके सेवनसे रक्तपित्तादि शीतल और गुरु होता है। (राजनि घर ) । बहु रोग दूर होते हैं। ( मारकौमुदी) । एलची (तु. पु.) राजदूत, सरकारी संदेशा ले एलादिर्गा ( स. क्लो० ) छदि का एक औषध । जानेवाला। इलायचौकी त्वक्, मरिच, शुण्ठी, पिप्प नो और नाग- एलचीगरी (फा० स्त्री०) दूतका काम । केसरक यथोत्तर भागवृद्धिसे चीनी बराबर डाल- एलड (स. क्लो०) संख्याविशेष, एक अदद। नेपर यह औषध तैयार होता है। (रसरवाकर ) एलबाल, एलचालुक देखो। एलादितैल (सं. क्लो०) एक तैल। एला, मुरा- एलबालु (स'• लो०) एलेव बलते, एला-बल-उण्। मांसौ, सरलकाष्ठ, शैलज, देवदारु. रेणक, चोरपुष्पो, गन्धव्य विशेष, एक खुशबूदार चीज़ । शठी, जटामांसी, चम्मकली, नागकेसर, ग्रन्थियण', ___ "सैलबालुपरिपेलव मोचाः।' (वाग्भट) गन्धरस, खट्टासो, तेजपत्र, उपौरमूल, चन्दन, कुन्दुक- एलबालुक (सं० लो०) एलबालु स्वार्थे कन् । गन्ध- खोटी, नखो, बालक, गुड़त्वक. कुष्ठ, कालागुरु, द्रव्यविशेष, एक खुशबूदार चीज़। इसका संस्कृत मुस्तक, सामुद्रकर्कट, खेतचन्दन, मनिष्ठा, जातोफल, पर्याय-एलेय, सुगन्धि, हरिबालुक,बालुक, हरिबालक, कुङ्कुम, पिडिङ्गपुष्य, शिलारस एवं अगुरु दो-दो तोले आलुक, एल्वबालुक, कपिलत्वक, गन्धत्वक् और टुग्ध १६ शरावक, दधि १६ भरावक, वाबालक क्वाथ कुष्ठगन्धि है। यह अतिशय उग्र, कषाय, अतिशय १६ शरावक, वाचालक साढ़े १२ शरावक, जल ६४ रुचिकारक और कफ, वायु, मूळ, ज्वर, दाह, कफ, शरावक तथा तिलका तैल ४ शरावक डाल एक व्रण, कृर्दि, पिपासा, कास, अरुचि, हृद्रोग, विष, पित्त, हांडीमें तपाये और १६ शरावक शेष रहनेपर पागसे रक्त, कुष्ठ, मूत्ररोग एवं क्वमिनाशक होता है। (वैद्यक) नीचे उतारे। यह तेल लगानेसे वातव्याधि दूर होता है। एलविल (संपु.) कुवेर। एलादिमन्य (स० पु.) यक्ष्मा रोगका एक औषध । एला (स० स्त्रो०) इल्-अच-टाप । इलायची देखो। एला, यमानी, आमलक, हरीतकी, विभोतक, खदिर- एलाक (सं० पु. ) एक मुनि। सार, निम्ब, पीतशाल, शाल, विडङ्ग, भन्नातकारिख, एलागन्धिक (सं० लो०) एलबालुक, एक खुशबू- चित्रकमूल, त्रिकटुक, मुस्तक एवं पहन्पर्पटी ८८ पल दार चौज। १५ शरावक जलमें सिहकर पौने ४ शरावक शेष रहने- एलादिगण ( स० पु.) गणविशेष, इलायची वगरह पर वस्त्रसे छान ले। फिर इसको ३२ पल वृतमें पका कुछ सुगन्धि चीजें। इसमें एला,तगर,पादुका, कुष्ठ, जटा- शर्करा ३० पल, वंशलोचन ६ पल और मधु ३२ पल मांसी, गन्धरण, दालचीनी, तेजपत्र, नागेश्वर, प्रियङ्ग, मिला मथानोसे मथने पर यह पौषध बनता है। रेणुक, पद्मनखी, शक्किनी, गुंठवा, सरलकाष्ठ, गुड़त्वक, (चक्रपाचिदच) चौरपुष्यो, वाला, गुमा लु, धूना, शिलारस, कन्दुरुखोटी, एलान (स. लो.) फलविशेष, नारंगो। कच्चा अगुरु, गन्धफला, खसको जड़, देवदारु, कुङ्कुम आर एन्दान अम्ल, सर, उष्ण, गुरु एवं वातघ्न और पक्का पुन्नागपुष्य द्रव्य रहते हैं। यह गण वायु, कफ एवं शीतल, बलवत् तथा वातपित्तघ्न होता है। (राजनिघर) विषको दबाता, शरीरका वण बढ़ाता और कण्ड, एलापत्र (सं० पु०) एलापत्रमिव प्राकारो यस्य, पिड़का तथा कोष्ठरोगको दूर भगाता है। बहुव्री०। सर्पविशेष, एक सांप। महाभारत एवं एलादिगुड़िका (सं० स्त्री० ) रक्तपित्तका एक औषध। पुराणादिमें लिखा, कि कश्यपके पौरस और कद्रुके बड़ी इलायची, तेजपत्र एवं दालचीनी एक एक तोले, गर्भसे एलापत्रका जन्म हुआ था। बौहान्यमें ' पिप्पली प्राध पस और मिसरी, यष्टिमधु, खजूर तथा भी एलापत्र नागराज रूपसे प्रमिहित हुये हैं।