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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४९७

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एसनबरा .. अफगानस्थानका गड़बड़ मिटते भी लार्ड एलेन-। उधर अंगरेज सेनापति ग्रे साहब म्वालियरको दक्षिण-.. बरा खिर रहन सके, सिन्धुप्रदेशके ऊपर उनके चक्षु पश्चिम सीमा लांध रहे थे। उसी समय १२.०० पड़े। पहलेसे हो सिन्धुप्रदेशके प्रमौर अंगरेजोंके । महाराष्ट्र-सैन्य १४ तोपोंके साथ मुदियार : नामक विरुवाचरण करते पाते थे। मध्यमें लार्ड मिण्टोके स्थानमें आ पहुचा। किन्तु ग्रे साहबके सामने उसे साथ सन्धि होने पर सिन्धुप्रदेशमें एक रेसोडण्ट रखा भी परास्त होना पड़ा। गया। फिर अमीरोंने विरक्त हो रेसोडण्टके मकान पहले अगरेज ग्वालियरको एक खांधोन राज्य पर आक्रमण मारा था। उनको दबाने के लिये समझते थे। किन्तु एलेनबराने उस दिन उसे अपने सर चार्लस नेपियर प्रधान सेनापति हो सिन्धुप्रदेश करतलगत माना। ग्वालियरको महारानी वृत्तिभोगी भेजे गये। १८४३ ई०को २४वौं माचको अमौर बनौ थौं। लार्ड एलेनबराके आदेशसे ग्वालियरको सम्पर्ण पराजित हुये। सिन्धुप्रदेश अंगरेजोंके अधि राजकीय क्षमता अंगरेजोंके हाथ आ गई। नाम कारमें आया। मात्रको एक बालक सिंहासनपर बैठते थे। इधर ____ ठीक उसी समय ग्वालियर राज्यमें एहविवादका | एलेनबराका हृदय ग्वालियर राज्यके सम्बन्धपर व्याप्त सूत्रपात हुआ था। १८३३ ई०को जनकजी स्वर्गको रहा, उधर विलायतमें कोट-अव-डाइरेक्टरने लाट गये। उनको त्रयोदश वर्षको विधवा पत्नीने निकट पदके अनुपयुक्त समझ एलेनबराको भारतवर्ष से हटा- सम्पर्कीय भगीरथ राव नामक एक बालकको गोद नेका प्रवन्ध किया। इनके अप्रकृत सोमनाथद्वारको लिया था। फिर मामा साहब नामक जनकजीके एक बात विलायतमें राष्ट्र हुई। उससे सब लागों ने समझ पिलव्य रहे। अंगरेज रेसोडण्टके साथ उनको कुछ लिया-एलेनबराको अभिन्नता विखासयोग्य नहों। घनिष्ठता थी। रसोडण्टके साहाय्यसे वह भगीरथ | विशेषतः डाइरेक्टरों ने उसे भी अन्याय ही माना, •रावके अभिभावक बन ग्वालियर में राज्यशासन करते जो इन्होंने सिंन्धप्रदेशके अमीरों को दोषारोपसे सताया. रहे। इधर महारानीने किसी ओर कत्व कर न था। सिवा इसके सकल ही विषयों में डाइरेक्टर से सकनेसे उसीकी चेष्टा लगाई, जिससे राज्य में विशृङ्खला इनका मतभेद पड़ने लगा। आई। दो पक्ष हो गये। एक महारानी और दूसरा - १८४४ ई०को २१वौं अपरेलको इङ्गलेण्डके प्रधान मामा साहेबकी ओर रहा। विवाद थोड़ेमें ही मिटा | मन्त्री सर राबर्ट पोलने लिखा था-"गत बुधवारको न था। शेषको राज्यके शत्र वोंने एकत्र हो युद्धघोषणा महारानीने कोर्ट अव डाइरेकरका पत्र पाया, कि की। गृहविवादके साथ ही साथ ग्वालियरके चतु- आईनके अनुसार उन्हें जो क्षमता मिली, उसो क्षमताके दिकस्य दूसरे राज्योंको भी शान्ति भङ्ग होने लगी।। बल उन्होंने स्व स्व इच्छासे भारतवर्ष के गवनर जन- लार्ड एलेनबराने सोचा-इस अवस्थामें मनोयोगी रलको वापस आने का आदेश लगाया है।" होना उचित है, नहीं तो भविष्यवमें घोर अनिष्ट एलेनबराक मस्तकपर ववाघात जैसा लगा था। पानको सम्भावना है। इनको आशा, राजनीति, विश्वास और कौशल सब उस समय यह स्वयं ससैन्य ग्वालियरके अभिमुख व्यर्थ गया। समय न बीतते हो इन्होंने सानमुख अग्रसर हुये थे। २३ वौं दिसम्बरको ग्वालियरके विलायतको यात्रा की। वहां १८४५०को यह निकट महागजपुर नामक स्थानमें विपक्षियोंने सामना जलयुद्ध विभागके प्रधान सचिव ( First Lord of the ' पकड़ा। अंगरेजी और ग्वालियरके सैन्यमें घोरतर Admiralty) हुये थे। किन्तु १८४६ ई०को एलेन- युद्ध हुआ। प्रधान सेनापति गफ एवं लिटलार और बराने उक्त पद खेच्छासे छोड़ दिया। उसके पीछे मेलियाण्ट तथा डेनिस प्रभृति दूसरे अंगरेजी सेनापति | जितने दिन यह जोये, उतने दिन पारलियामेण्ड- उपखित थे। विस्तर सैन्धनाशके पीछे अंगरेज- जीते। को वार्ड सभामें कभी कभी भारतवर्षको बान उठा