एलनबरा ४५५ रूपसे क्षतिग्रस्त इा। अब सेनापति नट ससैन्य शकट और खच पायेंगे। हमारी उच्च पाया है- वापस हो उनके सेनादलको यथाशीघ्र भारतके संलिप्त हम यह महाव्रत उद्यापन कर सकें। इससे स्वदेश निरापद स्थानमें पहुंचायें।' एवं इस सुदूर एसियाखण्ड में क्या मित्र क्या शव सभोके सेनापति पोलक और नट साहब असम साहससे निकट हम अपना मुख देखा सकेंगे। किन्तु चेष्टा अफगानोंको मार रहे थे, गवरनरका आदेशपत्र देख निष्फल जानसे निःसन्देह सर्वनाश होगा। इस समय उभय मर्माहत हुये। किन्तु उक्त दोनों वीर भग्नोत्साह विशेष सावधानतासे कार्य करना पड़ेगा। इसमें होनेवाले लोग न थे। इङ्गलेण्ड प्रभृति अन्य सेनाध्यक्षों- लाभसे हानि अधिक है।" को भी यह समाचार मिला था, किन्तु सिपाहियोंसे सुविन एलेनबरा इसोप्रकार दोनों ओर झुके रहे। . किसीने न कहा। कारण सेनापतियोंको विश्वास रहा विफल होनेसे मेनापतियों का हो दोष ठहरेगा। फिर 'सिपाही यदि यह संवाद पायेंगे, तो भाग जानेको जी सफल होनेपर एलेनवराको मनकामना सिद्ध होमो चलायेंगे और विशृङ्गल हो जायेंगे। विशेषतः यथा पौर मुख्याति मिलेगी। समय रसद वगेरह न मिलनेसे सम्भवतःराहपर सबको उसी दिनसे सब लोग समझ गये-एलेनबराका विपमें पड़ना होगा। वह जिस लिये अफगान मनोभाव बदला है। इन्होंने प्रादेश प्रचार किया- 'स्थानमें रहे, वही कार्य सोच-समझ करते गये। "यदि आप लोग बाहुबलसे गजनो और काबुन जोत एलेनबगने अपना मत फिर बदला न सही, किन्तु तथा हिन्दूविषो सुलतान् मुहम्मद को कब्रसे उनको बात समझमें आ गई-यदि अंगरेज. अफगानस्थान यष्टि और सोमनाथ-मन्दिरका सुवर्णहार उठा ला छोड़ वापस आयें, बन्दो अंगरेज मुक्ति न पायें और सकेंगे, तो समस्त हो भारतवासो ममझेगे-पाप अफगान रीतिके अनुसार शासित किये न जायें, तो लोगोंका वीरत्व असीम और आप लोगांको कोर्ति 'भारतवर्षके राजनीतिक एवं सामरिक सकल ही व्यक्ति चिरस्मरणीय है।" हमें तथा अंगरेज गवरमेण्टको वृणाका पात्र बनायें। शुभ दिनको लार्ड एलेनवरा भारत आये थे। फिर भी यह उस समय कहने लगे थे-'भारतवर्ष यथार्थ ही उनका भाग्य सुप्रसन्न रहा। जिस रङ्ग- छोड़ दूर देशमें सैन्यसामन्त बहुत दिन रहनेसे काम भूमिमें लार्ड अकलेण्ड निष्फल हो इताश अन्तरसे न चलेगा। इससे भारतका प्रनिष्ट होगा और हमारे स्वस्थानको प्रस्थान करनेपर उद्यत हुये, लार्ड एजेन- राज्यकार्य में भी व्याघात लगेगा। सकल प्रकार बराने उसी स्थानपर बैठे-बैठे सुना-अफगान राज्य अनिष्ट होनेसे पहले भारतवर्षकी रक्षा करना हो जय हुआ, अंगरेजी सैन्य छूट गया ओर मनका हमारा प्रधान कार्य है। अभिलाष पूरे पड़ा है। चारो ओर जयध्वनि होने उधर जिनके लिये अफगानस्थानमें युद्ध होता था, लगी। अंगरेजी सैन्य महा समारोहसे लौटा था। 'उन्हीं शाह शुजाको कई लोगोंने मिलकर मार डाला। लाड एलेनबराने सैनिकों को अभ्यर्थना कर यथोचित पोलक और नट साहब नाना स्थानों में जीतने लगे। सम्मान प्रदान किया। उन्होंने महमूदको कब्रसे ठौं जनवरीके दिन एलेनबराने नट साहबको लिखा सिंहद्वार ला बड़े लाटको सौंपा था। लोगोंने घोषणा था-"अफगानस्थानको सामरिक और राजनीतिक को-सोमनाथका सिंहहार फिर भारत लौट आया। अवस्था देख हमने आपसे वापस पानेको कहा था। साधारणको भी इस बात पर विश्वास हो गया। किन्तु किन्तु पापके सैन्यसामन्सोको स्थिति अच्छी समझ इस विषयपर सन्देह होता-वह हार सोमनाथका 'पड़ती है। अब हमारा मत स्वतन्त्र है। पाप जो अच्छा सिंहहार है या नहीं। ऐतिहासिक विभारिज साहबने समझे, वही करें। यदि आप मजनी, काल और अष्ट लिखा, कि वह हार सोमनाथका नहीं। जलालाबाद नाना चाहेंगे, तो बघष्ट परिमापसे रसद, • Beveridge's History of India, Vol. III. P. 459.
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