पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५२०

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ऐरंमद-ऐल ४08 ऐरंमद (सं० पु०) देवमुनिके अपत्य । इन्होंने ऋग्- | ऐरावतक्षेत्र (सं० लो० ) कावेरीनदीतीरस्थ एक वेदके मन्त्र बनाये थे। प्राचीन तीर्थस्थान । ऐरावतक्षेत्रके माहात्मामें लिखा ऐरंमदीय (सं० ली.) ब्रह्मलोकका एक समुद्र। है-इन्द्र ने वृत्रासुरवधजनित पापसे मुक्ति पानेको इस ऐरक्य (सं० वि०) एरका-ण्य । एरका-जात । एरका देखो। स्थान में प्रा तपस्या और लिङ्गमूर्तिको स्थापना की थी। ऐराक, एराक देखो। शिवको कपासे इन्द्रका ऐरावत फिर जी उठा और ऐराकी, एराको देखो। इस स्थानका नाम ऐरावतक्षेत्र पड़ा। ऐरागरा (हिं०वि०) १ अपरिचित, जो समझा- ऐरावतपदी (सं० स्त्री०) १काकजङ्घा । २ महा बुझा न हो। २ तुच्छ, छोटा । ज्योतिष्मती लता, रतनजोत । ऐरापति (हिं.) ऐरावत देखो। ऐरावती (सं० स्त्री०) इरावत्-इयम्, इरावत्-प्रण - ऐराब (अ. पु०) शतरंजमें किश्त बचानेके लिये डोप । १ विद्युत्, विजलो। २ ऐरावतकी स्त्री। बादशाह और किसी दूसरे मोहरेके बीच में मोहरेका ३ वटपत्रोवृक्ष, बड़ा पथरचटा। ४ उत्तरमार्ग के एक पाना। इससे बादशाहपर किश्त नहीं रहती। किन्तु नक्षत्र का नामान्तर। ५ पञ्चालदेशीय नदीविशेष । ऐराबका मोहरा उठना नामुमकिन है। घोड़ेकौ आजकल इसे रावो कहते हैं। इसका वेदोक्ता नाम किश्त पड़नेसे ऐराब नहीं चलता। . परुष्णी है। ६ नामरङ्गवृक्ष, नारंगोका पेड़। ऐरा- ऐराल (हि.पु.) इन्द्रवारुणी विशेष. किसी किस्मकी वतीका पकाया हुचा रस अम्ल, उष्ण और सुगन्धित ककड़ी। यह तरबूज-जैसा रहता और पहाड़पर होता है। इससे वात, कास और श्वासका रोग छट कुमाऊं से सिकिमतक उपजता है। जाता है। (वैद्यकनिघण्ट) ऐरावण (सं० पु०) इरया जलेन वनति शब्दायते, ऐरिकिन (सं० लो०) एरण नगरका प्राचीन नाम। इरा-वन पचांद्यच ; अथवा इरा सुरा वनमुदकं यस्मिन् कनिंगहम साहबके मतसे एरणका प्राचीन नाम एर- तत्र भवः, पण । १ऐरावत हस्ती। २ जैनमतानु- कैन है। एरण देखो। सार जम्बुद्दीपका सप्तम वर्ष । (जैनहरि० ५।१८) ऐरिण (सं० लो०) इरिणे ऊपरभूमौ भवम्, इरिण- ऐरावत (सं० पु.) इरा' जलानि सन्त्यत्र, मतुप अण। सैन्धव लवण, पांशुलवण । मस्य वः, इरावान् समुद्रः तत्र भवः अथ अथवा इरा- ऐरो-मध्यप्रान्तके मंडला जिलेका एक सरकारो वत्या विद्यतोऽयम् । १ इन्द्रहस्तो। ऐरावत शुक्ल वर्ण जंगल। यह अक्षा २२° ३० से २२.४० उ० तथा और चतुर्दन्तविशिष्ट है। समुद्रके मन्थनकालपर देशा० ८०. ४३ ४५ से ८० ४६४५ पू० तक यह उपजा था। यही पूर्व दिकका गज है। इसका बढनेर और हालों नटोके समपर अवस्थित है। अपर नाम अभ्रमातङ्ग, ऐरावण, अभ्रमूवल्लभ, श्वेत- ऐरोमें साख खुब होती है। हस्ती, मल्लनाग, इन्द्र कुञ्जर, हस्तिमल्ल, सदादान, ऐरेय (स. क्लो०) इरा-ढक । १ मद्य, शराब । सुदामा, खेतकुल्लर, गजाग्रणी और नागमल है। २ एलबालुक, एक खु.शबूदार चौज। ३ अबादि, - "इत्य कृत्वा प्रययौ विप्रो देवरानोऽपि त पुन: । अनाज वगैरह। आरुयै रावत' ब्रह्मन् प्रययावमराक्तीम् ॥” (विशुपु० १।६।२५) ऐय (सं. क्लो०) इमाय हितम्, इर्म-ष्यञ् । १ सुश्रु- २ नागरङ्ग, नारंगी। ३ लकुचवृक्ष, बड़हर। ४ नाग- तोक्त अच्चनविशेष, किसी किस्म का काजल या सुरमा। विशेष। (क्लो०) ५ इन्द्रधनु। ६ इरावती नदीके (त्रि.) २ क्षत-पूरणके निमित्त लाभदायक, जखम- तौरका देश। को सुखाने काबिल ।। . ऐरावतक (स• पु०) १ हस्तिशण्डी, हाथोकी सूंड। ऐल (स० पु..) इलाया अपत्य पुमान्, इला-अण् । २ नागरण वृक्ष, नारंगीका पेड़। . १ इलापुत्र। इनका अन्य नाम पुरुरवा है। यह स्था