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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५२९

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५२८ ओङ्कारमान्धाता-बोकारेश्वर स्थानपर गगनस्पर्शी मन्दिरको चूड़ा टूट गई है।। वृहदाकार महावराहमूर्ति है। उसी मन्दिर में १३४६ कहीं अलङ्कत मन्दिरभवन विध्वस्त हो जानेसे कुक्कुर- ई०को एक शिवलिङ्ग प्रतिष्ठित हुआ था। उससे शृगालकी वासभूमि बना है। कहीं भग्न देवदेवको थोड़ी दूर रावण-नाला है। इस नालेके मध्य साढ़े मर्ति भूमिमें गडी पडी है। उक्त दृश्य धर्मनिष्ठ हिन्द- अट्ठारह फीट उच्च काले पत्थरको एक मूर्ति है। इस वोंके प्राण व्यथित कर डालता है। पर्वतके ऊपर मूर्तिके दश हाथ और एक मुण्ड है। कोई-कोई इसे सिद्धखर महादेवके सुरम्य मन्दिरका भङ्गावशेष रावणको मूर्ति बताया करते हैं। किन्तु वह बात देखने में आता है। इस मन्दिरको चारो ओर चार ठीक नहीं। क्योंकि रावणको मूति रहनेसे सम्भवतः हार हैं। प्रत्येक हारके सम्म ख १४ फीट उच्च एवं दश मुण्ड और बौस हाथ होते। यह शिवसङ्गिनी १४ स्तम्भविशिष्ट हारप्रकोष्ट खड़ा है। मन्दिरको महाकालीको मूर्ति है। वक्षःस्थलपर वृश्चिक, वाम भित्तिके प्रस्तर में क्ति-पंक्तिपर हाथो असित है। भाज पार्खपर इन्दुर और पाददेशपर नग्न शिव पड़े हैं। कल केवल दो हाथी प्रकृत आकारमें देख पड़ते, नदीसे थोड़ी दूर दूसरे भी कई जैन-मन्दिर विद्य- अपर विकृत हो गये हैं। इस मन्दिरसे थोड़ी दूर मान हैं। इन सकल मन्दिरोंमें जैन देवदेवीको मौरी-सोमनाथका मन्दिर है। इसी मन्दिरको अवस्था | कितनी हौ मूर्ति देख पड़ती हैं। मन्दिरोंपर जैन अति शोचनीय है। किन्तु मन्दिरमें दर्शन करने | धर्मके चक्रादिको प्रतिकृति खुदी है। कितने ही लोग पाते हैं। रेवाखण्ड में लिखा है, ___ पहले यह स्थान भील राजावोंके अधिकारमें रहा। “सोमनाथ ततो विद्धि कल्पगा वौरमाश्रितम् । मान्धाताके एक राजा भारतसिंह नामक चौहान सौमेनाराधितं तीर्थ भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥* (५०) राजपूतको अपना भादिपुरुष बताते हैं। ११६५. सोमनाथ नर्मदा नदीके तौर विद्यमान है। चन्द्रने ई०को उन्होंने नाथू भोलको हरा मान्धाता अधि- इस तीर्थकी आराधना की थी। यह तीर्थ भोग पौर | कार किया था। उन्होंने नाथू भोलको कन्यासे मोक्षफलदायक है। फिर विवाह कर लिया। आज भी अोझारसे थोड़ी स्थानीय पूजक कहते, पहले सोमनाथ खेतवर्ण थे। दूर पहाड़के उत्तर कई प्राचीन मन्दिर नाथके वंश- मुसलमानोंके ध्वस करने आने पर यह मूर्ति प्रति- धरोंके अधीन हैं। नाथू भोलके समय दुर्जयनाथ विम्बित हुई। उसी प्रतिविम्ब में शूकरका बच्चा देख | नामक एक गोसाई प्रोद्धारको पूजा करते रहे। यहां पड़ा था। फिर वही विधर्मी मुसलमान क्रोधसे | प्रवाद है-उस समय कालभैरव और महाकाली दोनों अधीर हो और सोमनाथको अग्निमें फेंक चल दिये।। नरमांस खाते, उसी भयसे तीर्थ-यात्री यहां पाते न उसी समयसे सोमनाथ कृष्णवर्ण बन गये हैं। थे। यात्रियों के हितार्थ दुर्जयनाथने तपोबलसे काली- सोमनाथ मन्दिरके सम्मुख हरे पत्थरको एक देवीको रिझा गुहाके मध्य स्थापित किया। किन्तु वृहत् नन्दौमूर्ति है। मुसलमानोंने उसका मत्था कालस्वरूप कालभैरव सहज में तृप्त हुये न थे। दुर्जय- तोड़ डाला है। नाथने उनके सन्तोषार्थ नरवलिका प्रबन्ध कर दिया। मान्धाता द्वीपमें प्रायः समस्त हो शिवमन्दिर हैं। फिर कालभैरव नरवलि लेने आते रहे। अवशेष किन्तु इससे थोड़ी दूर उत्तर नर्मदा किनारे शिव १८२४ ई०को अंगरेज़ कर्मचारियोंके यबसे यह प्रथा मन्दिर व्यतीत अनेक विष्णु और जैन देवदेवीके मन्दिर | वन्द हुई। दुर्जयनाथके शिष्य परम्परासे अोवारको बने हैं। नर्मदा विधारा होनेको जगह मुखपर अनेक | पूजा करते चले पाते हैं। प्रति वर्ष कार्तिक मासमें बड़े-बड़े मन्दिर विद्यमान हैं। उनमें २४ चतुर्भुज ओङ्कारजीका महोत्सव होता है। विष्णुमूर्ति हैं। इसके अतिरिक्त विष्णुके दशावतारको मोडारा (सं० स्त्री०) बुद्धशक्तिविशेष। । मूति भी देख पड़ती है। एक मन्दिरमें विष्णुको पोडारेश्वर-बम्बई प्रान्तके पूना नगरका एक शिव-