पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५३०

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ओङ्गोल-मोजित १२६ मन्दिर। यह मुथा नदी किनारे सोमवार-महोमें| राशिके मध्य अयुग्म राशि। २ अयुग्ममात्र, ताक, अवस्थित है। १७४० और १७६० ई०के बीच कृष्णजी- ऊना। (हिं.) भोज: देखो। पन्त चितरावने इसको लोगोंसे चन्दा करके बनाया। ओजः (सं० क्लो०) उन्न आजवे असुन्, वलोपश्च । भाऊ साहब या सदाशिवराव चिमनाजीने मन्दिर उन्लेबले बलोपश्च। उर ४।१९१ । १ बल, ज़ोर। २ दीप्ति, बनते समय छह वर्षतक एक हजार रुपया मासिक | चमक। ३ अवलम्बन, सहारा। ४ प्रकाश, रोशनी। दिया था। हार पूर्वाभिमुख है। फाटककी दीवार | ५ मेषादि हादश राशिके मध्य १म, श्य, ५म, ७म, बहुत मजबूत बनी है। प्राङ्गणको चारो ओर साधु- टम एवं ११श राशि। ६ समासबाहुल्य एवं पदा- सन्तके विश्रामार्थ कमरे हैं। मन्दिरसे नदीतक डम्बरताका काव्यगुण । इस गुणयुक्त रौतिका नाम सिट्टियां लगी हैं। प्रतिवर्ष होम होता है। मन्दिरके गौड़ी है। ७ शस्त्रादिका कौशल, हथियार वगैरहका पास ही श्मशान रहनसे पूनाके लोग भय खाते हैं। इल्म। ८ जानेन्द्रियगणको पटता। रसादि सप्त- सरकार हजार रुपये साल होमके लिये देती है। धातुके सारभागसे पैदा एक धातु। वैद्यकके मतसे यहां नन्दीको मूर्ति अति विशाल है। यह सर्वशरीरस्थ, स्निग्ध, शीतल, स्थिर, शक्लवर्ण, पोङ्गोल-१ मन्द्राजप्रान्तके नेल्ल र जिलेको एक तह- कफात्मक और बलपुष्टिकारक है। भ्रमरके फल- सोस। क्षेत्रफल ९८७ वर्ग मील है। इसके लम्बे- पुष्पसे मधु सञ्चय करनेको तरह नाना धातुसे पोजः चौड़े मैदानको भूमि बहुत अच्छी है। फसल ख ब: इकट्ठा होता है। अभिधात, क्षय, कोप, शोक, चिन्ता; उपजती है। नदीके रथपथमें कूप बने हैं। तालाब यरिश्रम और क्षुधासे ओजः घट जाता है। प्रोज: बहुत कम हैं। जङ्गल भी कहौं देख नहीं पड़ता। व्यापन पड़नेसे स्तब्धगावत्व, गावका गुरुत्व, वर्णभेद मन्दाज-प्रान्तके नजर जिलेका एक नगा। जिलेका एक नगर।। और ग्लानि, तन्द्रा तथा निद्राका वेग बढ़ता है। और नाति जना यह पक्षा० १५.३०२० उ० तथा देशा० ८०°५ प्रोजत-काठियावाड़को एक छोटी नदौ। यह गिर ३०“पू०में मूसी नदी किनारे अवस्थित है। १८७६-७७, पहाड़के उत्तर प्रावण्यसे निकलती और दक्षिणको भोर ई०को यहां म्यनिसपलिटी पड़ी थी। वस्तुत: यह। बह चलती हैं। वनधालोमें नगरके समीप भोजत मगर मण्डपति वंशके राजावोंकी राजधानी रहा। उबेन नदौसे मिल गयी है। वह सदा वैकटगिरिक नरेशीसे लड़ा-भिड़ा करते थे। योजना (हिं.क्रि.) अवरोध करना, रोकना। मण्डपति नरेशीने विद्याको बड़ा उत्साह दिया। ओजसौन, ओजखत् देखो। इसीसे प्रोङ्गल अपने पण्डितोंके लिये आसपास प्रसिद्ध प्रोजस्कर (स० वि०) पोजोधातुवर्धक, हैवानी है। अन्ततः वैकगिरिके राजाने मण्डपति नरेशोंको कु.व्वत बढ़ानेवाला। दबा दिया था। ओजस्तर (सं० त्रि०) अधिक भोजोधातुयुक्त, जिसके श्रोछना, ना देखो। । हैवानी कु.ब्बत ज्यादा रहे। श्रोछा (हिं.वि.)१ तुच्छ, हकीर, छोटा।२ उथला, ओजस्य, ओजखन देखो। छिछला, हलका। ३शक्तिहीन, कमज़ोर। 8 कम ओजस्वत् (सं० वि०) ओजोऽस्यास्ति, पोन:-वलच । पड़नेवाला, जो लंबा न हो। "नहां बड़ी सेवा तहां पोछा १ तेजस्वी, शान्दार। २ बलवान्, जोरावर। फल।" (लोकोक्ति) ओजस्विता (सं० स्त्री०) ओजखिनो भावः, भोजस्- पोछाई (हिं. स्त्री०) तुच्छता, हलकापन, कम तल-टाप । १ बलवत्ता, जोरावरी। २ तेजस्विता, पड़नेको हालत । शान्-शौकत। ओछापन (हिं. पु.) ओलाई देखो। भोजखी, बोबखत् देखो। भोज (स० पु.) श्रीज-अच। १ मेषादि दादंश | ओजित, भोवस्वत देखो। Vol. III. 138