ओलन्दाज कूलमें कोचिन प्रभृति स्थान भी अधिकारको संभाले थी। उस समयतक ोलन्दाज कियत्परिमायसे थे। उस समय लोग औलन्दालोका सम्मान करते रहे। हतश्री इये। वह सम्मान केवल इनके साहस वा युद्धको निपुणताके १६८०ई०को इन्होंने अंगरेजोंको बण्टामसे निकाला लिये ही न था। यह सत्य और न्यायको इतना देखकर और भारतमहासागरीय होपोंमें मसालेका काम अक्षुस काम करते, कि किसी स्थानके लोगोंसे असन्तुष्ट होने बना डाला था । १६८७ ई०को हालेण्डके प्रिन्स पर वहांसे अपनी कोठी उठा चलते बनते । उधर पोतु विलियम इङ्गलेण्डके राजा हुये। इससे उभय जातिके गोज पहलेसे ही भारतवासियोंके प्रति निष्ठर व्यवहार मध्य सौहाद्य स्थापित हुआ। किन्तु वाणिज्य विषयमें करते रहे। सुतरां भारतवासी शीघ्र ही अोलन्दाजोंकी इन्हींका.प्राधान्य बना रहा। ई० १८श शताब्दक शेष भद्रतासे मुग्ध हो गये। किन्तु समयके परिवर्तनने भागसे ही ओलन्दाजोंको क्षमता घटते आयो। १७६० सत्यप्रिय ओलन्दाजोंको भी प्रबल असत्यप्रिय और ई. तक युरोपमें जो विषवङ्गि भभका. उससे इनका अत्याचारी बना डाला। अंगरेजोंके अभ्यदयसे शीघ्र बाणिज्य विशेष बिगड़ा न था। फिर इन्होंने बंगालसे ही इनका पात हुआ। अंगरेजोंको निकालनेके लिये मौरजाफरके अनु- १६१८ ई०को अंगरेजोंके साथ ओलन्दाजौंका | रोधपर बटेवियासे सात जंगी जहाज़ भेजे। किन्तु सहर्ष लगा। ततपूर्व ही अंगरेजोंने भारवर्ष में उन्होंने हार कर यह काम छोड़ दिया। अवशेष बाणिज्य चलाया, किन्तु इनके साथ प्रतियोगितासे १७८८ ईको फ्रान्मोसी राष्ट्र-विप्लव उपस्थित हुआ। मसालेके काममें विशेष कुछ कर न पाया था। ऐसे फ्रान्सीसी सेनापति पिचेग्रने हालेण्ड अधिकार किया ही समय इङ्गलेण्ड और हालेण्डकी गवरनमेण्टने था। फिर यह फ्रान्सोसियोंके शासमाधीन बने। । मध्यस्थ बन दोनों कम्पनियोंके लोगोंको एक इधर अंगरेज इनके वाणिज्यस्थान अधिकार करनेको सत्वरक्षिणी सभा स्थापित कर दी। उससे सचेष्ट हुये । सिंहल प्रभृति स्थान उनके हाथ लगे शीघ्र ही सब गड़बड़ मिट गया। किन्तु सभामें थे। १८०२ ई०को ामिन्स-सन्धि द्वारा अनेक भोलन्दाज सभ्योंकी संख्या अधिक रही। सुतरां विदेशीय अधिकार पुनः पाते भी इन्हें सिंइल उसके द्वारा यह इच्छामत समस्त कार्य करने और केप-कोलोनो अंगरेजों के लिये छोड़ना पड़ा। संगे। १६२३ ई०को उक्त सभाने इनके विरुद्ध | नेपोलियनके फ्रान्सका सम्राट बननेपर हालेण्ड साज़िश करनेके अपराध पर दश अंगरेजों और प्रथमत: उनके माता लुईके अधीन और पीछे दश अपर व्यक्तियोंको पकड़ा था। विचारसे सबने फ्रान्सीसी साम्रान्धके अन्तभुक्त हुआ। ऐसे हो प्राणदण्ड पाया। इस घटनासे अंगरेज़ अत्यन्त विरता समय इन्होंने इङ्गलेण्ड आक्रमणके लिये भी विशेष हुये। दोनों जातियोंके मध्य भयानक. विद्देषानल चेष्टा लगायो और भारत-महासागरमें अंगरेजोंके जल उठा। अनेक दिन पर्यन्त मनोमालिन्य रहने वाणिज्यको विशेष क्षति पहुंचायौ थी। पोछे १९५४ ई०को अंगरेजोंने इनसे ८५०००० रु. १८११ ई० को अंगरेजोंने यह उपद्रव निवारण क्षतिपूरण पाया था। किन्तु विवाद न मिटा। करनेके लिये बटेवियाको पाक्रमण मार हस्तगत १६६७०को अंगरेजोंके साथ ओलन्दाजोंका युद्ध किया। उसी समयसे यह हतो हो गये। १८१५ उपस्थित दुपा। इन्होंने अंगरेजोंके बाणिज्यमें ई०को पारिसको सन्धि द्वारा उता स्थान पुनः पाते भी विशेष क्षति डाली थी। प्रबल बन न सके। , अवशेषको फ्रान्सीसी विप्लव प्रारम्भ होनेसे इनका आजकल ओलन्दाजोंको अवस्था उक्त नहों, प्रताप घटा। अंगरेजोंने सिंहल प्रभृति अधिकार स्थितियोल पड़ी है। भारत-महासागरके होपपुनमें कर पन्चान्य स्थानों में भी इनकी प्रतिपत्ति बिगाडी आज भी यह मसालेका काम करते हैं। बटेविया
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