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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५४६

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ओलन्दाज ५४५ ई०के १६वें शताब्द युरोपमें धर्ममतपर तुमुल धित और अनाइत हुये हैं। यह बात सुन १५९८ आन्दोलन उठा था। उसी समय मार्टिन लधरने ई०को भान-नेक पाट जहाजोंके साथ भारतवर्ष भेजे धर्मसम्बन्धमें सर्वतोभावसे रोमके पोपोंकी प्रभुताको गये। आमष्टरडमके वषिकोंने उन्हें यवद्दीपमें एक अस्वीकार किया। अोलन्दाज भी उनके मतमें मिल । कोठी खोलनेको भी अनुन्ना दी थी। भाननेकके कृत- गये। इसीसे इनपर राजाके कोपको दृष्टि पड़ी थो। कार्य हो स्वदेश लौटने पर कितने ही लोगोंने ईष्या- स्पेनराज रय फिलिप हालेण्ड के अधीश्वर रहे। वह परवश भारतवर्ष में वाणिज्य करनेको उद्योग लगाया। कट्टर काथलिक थे। इसीसे फिलिप प्रजावर्गको उस समय सकल ओलन्दाज वणिकोंके वाणिज्य अपने मतका विरुद्धवादी पा तथरके शिष्यों को सताने लोपको आशङ्का हुयो थो। किन्तु गवरनमेण्टने इस और "दोषानुसन्धान” नामक विचारालयको प्रतिष्ठाकर विषयमें हस्तक्षेप कर सकल विवाद मिटा दिया। प्रोटेष्टाण्टोंको जीवन्त अवस्थामें ही जलाने लगे। इस सकन दलका एकत्र ईट-इण्डिया कम्पनी नाम रखा कार्यसे सकल ही प्रजा उनपर विरक्त हो गयौ। क्रमसे था। वणिकोंको पूर्व देशके वाणिज्य स्थानोंमें सब प्रजाविद्रोह झलक उठा। एक ओर युरोपीय तात्- विषयोंको क्षमता मिली अर्थात् स्वाधिवत देशके मध्य कालिक प्रवलपराक्रान्त नरपति, युद्धविद्या-विशारद वह आवश्यकतानुसार कानन बना और जित देश सेनापति एवं सेनानी और दूसरी ओर दोन, दरिद्र अधिकारमें रखनेको पूर्व देशके राजावोंसे युद्द वा सन्धि तथा सहायहीन प्रजामण्डली थी । बहुकालतक चला सकते थे। इसी प्रकार पोलन्दाजोंको ईष्ट- यह युद्ध चला। एक समय अंगरेजोंने ओलन्दाजोंको इण्डिया कम्पनीका सूत्रपात हुआ। इसमें नतनत्व कुछ सहाय भेजा था। उससे जुटफ्रेसका युद्ध और यह था उस समय पोतुगीज़ केवल स्वदेशको गवरन- सर फिलिप सिडनीका मृत्य हुआ। इस तरह कहों मेण्टके आदेशानुसार चलते, किन्तु पोलन्दाज इस कभी कुछ सहाय मिलते भी ओलन्दाज अध्यवसायके देशमें एक साधारणतन्त्रप्रणाली डाल स्वत्व रक्षाके लिये बल ही फिलिपसे प्रतियोगिता कर सके थे। यह हालेण्ड गवरनमेण्टके अधीन होते भी अपने कार्य- शतवार परास्त और पर्युदस्त हुये, किन्तु पौछ न क्षेत्रमें एक प्रकार स्वाधीन रहते थे। हटे। अन्तको यही जीते थे। फिलिप शत चेष्टा यत्न और परिश्रमसे ही फललाभ होता है। भोल- करते भी हालेण्डको वशमें ला न सके। हालेण्डमें न्दाजोंने भो शीघ्र शीघ्र यव और मलक्कास प्रकृति साधारणतन्त्रको शासनप्रणाली प्रतिष्ठित हुयी। फिलिप होपोंमें यथेष्ट प्रतिपत्ति स्थापन, की थी। पोतु गोज़ १वें शताब्दक शेष भाग पोर्तुगालके अधीखर बने सर्वत्र ही इनसे परास्त होने लगे। एडमिरल ओया- थे। उस समय केवल पोर्तुगीज हो भारतवर्ष में रिकने १४ जहाजोंके साथ यवहोप पहुंच बटेविया वाणिज्य करते रहे। ओलन्दाज उनसे द्रव्य ले युरोपके नगरको पत्तन किया। मसालेके कारबारसे १८२२ सकल स्थानों में बेचते थे। इससे भी इन्हें प्रभूत लाभ ई०को पोतुगीज़ एकबारगी ही विदरित हुये थे। होता था। ओलन्दाजोंको दबाने के लिये फिलिपने , ओयारिकने जापान, फिलिपाइन प्रभृति होपोंके साथ पोर्तुगीजोंके साथ वाणिज्यका होना रोक दिया। वाणिज्य-सम्बन्ध स्थापन किया, बटेविया नगर शीघ्र किन्तु यह भग्नोत्साहन हुये। इन्होंने एकादिक्रमसे ही भोलन्दाजोंके यावतीय वाणिज्य स्थानोंका केन्द्र भारतवर्षके साथ वाणिज्य चलाना मनःस्थ किया।। बन गया। १९७६ ई०से पूर्व ओलन्दाजोंने बंगालके एक वणिक्-समितिने करनेलियस हुटमानको ४ साथ बाणिज्य कार्यमें लिप्त होनेको चेष्टा को न थी। नहाजोंका अध्यच बना भारतवर्ष भेजा था। करने । १६७६ ई०को इन्होंने प्रथम चुचुडमें महाजनो कोठी लियस्ने मिर्च वगैरह मसाला लाद स्वदेशको प्रत्या- । खोलो। इससे पहले हो ओलन्दाजोंने सिंहल प्रभृति वर्तन किया और पाकर कह दिया-पोतु गौज सर्वत्र स्थान पोतुंगोजोंके हाथसे निकाले और मलयवर उप- Vol. III. 137