पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५४९

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५४८ भोशिष्टहन्-पोषधि पड़ती हैं। शिखरपर श्रीमाटमाताका मन्दिर एवं ओषधि जरामृत्यु निवारक और श्खेतकापोतीको भांति प्राचीन दुर्ग दण्डायमान है। ओशाममें काला और प्राकृतिविशिष्ट होती हैं। मनोरम-मावति, मयरके धुंधला काच होता है। लोग उसे कौरव और पाण्डव । पक्षकी भांति पत्रविशिष्ट, कन्दोत्पन्न और स्वर्णवर्ण युद्धके रक्तका चिह्न बताते हैं। सारयुक्त पोषधिका नाम कन्या है।८। अतिशय ओशिष्टहन (संपु०) अति शीघ्र प्रहार करनेवाला, | क्षीरयुक्त, गजाकृति मूलदेशविशिष्ट, हस्तिकर्ण और जो बहुत जल्द मारता हो। पलाशके पत्रको भांति केवल दो पत्रयुक्त ओषधिको श्रीष (सं० पु०) उष दाहे घञ । १ दाह, जलन।। करेणु कहते हैं । छागोके स्तनको भांति. मूल- २ पाक, पकनेकी हालत। ३ शोघ्रता, तेजी। भागयुक्त, अधिक सारविशिष्ट, गुल्मकी भांति आकृति- ओषण (सं० पु.) उष-ल्युट। कटरस, झल, युक्त और शङ्ख कुन्द प्रभृतिको तरह पाण्डवणे पोष- चरपराहट। धिको संज्ञा अजा है । १० । श्वेतवर्ण, विचित्र पुष्पयुक्त • ओषणि, पोषण देखो। और काकमाचीको तरह प्रोषधिको संज्ञा चक्रका ओषणी (सं० स्त्री०) ओषण-डोष्। पुरातिशाक, पड़ती, जो जरामृत्यु दूर करती है। ११ । प्रशस्त एक सब्जी या तरकारो। यह कफ और वायुको नाश मूलयुक्त, केवल पञ्च रक्तवर्ण सुकोमल पत्रविशिष्ट और करती है। (राजवल्लभ) सूर्य के भ्रमणानुसार परिवर्तनशील ओषधि आदित्य ओषध (सं० लो०) औषध, दवा। पर्णिनी कही जाती है । १२। स्वर्णवर्ण, सक्षौर और ओषधि (सं० स्त्री०) ओषोधीयतेऽत्र, पोष-धा-कि। पद्मिनी-तुल्य ओषधि ब्रह्मसुवर्चला कहाती, जो चारो उद्भिविशेष, एक पोदा। फल पकते ही जो उद्भिद ओर चक्कर लगाती है। १३ । अरनिपरिमित, गुल्मा- सूख जाते, वही ओषधि कहाते हैं। औषधोपयोगी कार, दो अङ्गल परिमित पवयुक्त, नीलोत्पलसमपुष्य कतिपय ओषधिका लक्षण लगा सुश्रुतने नामभेद एवं अञ्जनवर्ण फलविशिष्ट, स्वर्णवर्ण और क्षारयुक्त • किया है, यथा- ओषधिका नाम श्रावणी पड़ता है।१४। श्रावणीको जो ओषधि कपिल वर्ण, विचित्र मण्डलविशिष्ट, भांति अन्यान्य गुणयुक्त और पाण्डवणे ओषधिको सपैतुल्य, पञ्च पत्रयुक्त और परिमाणमें पच्च अरवि महाश्रावणी कहते हैं।१५। सोमयुक्त विविध परिमित रहती, उसे विहन्मण्डली अजगवी कहती | ओषधियाँके नाम गोलोमो और अजलोमी हैं।१६,१७ । है। १। निष्पत्र, स्वणवणं, दो अङ्गुल परिमित मूल मूलसमुद्भव और विच्छिन्नपत्रयुक्त ओषधि हंसपादो विशिष्ट, सर्पाकार और प्रान्तदेशमें रक्तिमायुक्त कहाती है।१८। अपरापर ओषधिको तरह रूप- ओषधिका नाम खेतकापोती है। २। दो पत्रमात्र युक्त और शङ्खसदृश पुष्यविशिष्ट ओषधिको संज्ञा विशिष्ट, मूलमें अरुणवर्ण एवं मण्डल में कृष्णवर्ण, शङ्खपुष्यो है। १९। अतिशय वेगयुक्त सर्प निर्मोकको दो अरनिपरिमित और गोनासिकाकति ओषधिको तरह प्राकृतिविशिष्ट ओषधि वेगवती कहाती है ।२०॥ गोनसी कहते हैं। ३। अधिक सारयुक्त, रोमल, मृदु, सौमसम ओषधिका नाम सोम है।२१। पश्रद्धा- इक्षुरस-सदृश रसविशिष्ट और इक्षुकी भांति प्राकृतियुक्त | शाली, अलस, वतन और पापकर्मा व्यक्ति इन ओषधि कृष्णकापोती कही जाती है। ४। कृष्ण ओषधियोंको उखाड़ नहीं सकता। प्रथमोक्त सात सर्पावति और कन्दसम्भव ओषधिको संज्ञा वाराही प्रकारको पोषधि उखाड़ने में निम्नोता मन्त्र पढ़ना है। ५। एक पत्रयुक्त, महावीर्य और अजनतुख्य पड़ता है- कृष्णवर्ण ओषधिका नाम छना पड़ता है।६। कन्द “महेन्द्ररामकचानां वारणानां गवामपि । सम्भव और रक्षोभयविनाशक पोषधिको संज्ञा तपसा तेजसा वापि प्रशाम्यध्वं शिवाय वै॥" अतिछता रखते हैं। छता एवं अतिकवा उभय, वसन्तकालको आदित्यपर्णी, वर्षाकालको अजगवी