ओषधिगण-ओष्ठपुष्प ५४८ एवं गोनसी, काश्मीरदेशीय क्षुद्रक मानस नामक दिश्य ओषम् (सं० अध्य० ) उषणमूल । शीघ्र-शोध, सरोवरमें करेणु, कन्या, छत्रा, अतिछत्रा, गोलोमो, बारम्बार, जल्द-जल्द, फौरन । . अजलोमी, तथा महती श्रावणो, कौशिकी नदीके प्रीषिष्ठ (सं० वि०) अयमेष अतिशयेन प्रोषी, पूर्वपार वल्मीकव्याप्त योजनत्रय भूमिमें खेतकापोती। अोषोन इष्ठन्। अतिशायने तमविष्ठनौ। पा शश५५ । अतिशय और वल्लोकके शिखरदेश, मलयपर्वत तथा नलसेतुमें। दाहकारक, बहुत जलन पैदा करनेवाला। वेगवती मिलती है। भोषिष्ठदावा (स. त्रि०) अति शोध प्रदान करने ओषधिगण (स.पु.) रासायनिक पोषधिका गण, वाला, जो बहुत जल्द देता हो। कुछ जड़ी बूटियोंका जखीरा। श्रोष्ट्राविन (संत्रि.) उष-ष्ट्रन तदेस्यास्तीति विनि। भोषधिगर्भ (सं० पु. ) श्रोषधीनां गर्भ उत्पत्तिर्यस्मात् । दाहकारी, जलन पैदा करनेवाला। बहुव्रो। १ चन्द्र, चांद। २ सूर्य, आफताब। पोष्ठ ( स० पु०) उथते दह्यते, उष्ण स्पर्शने उष-थन्। . ओषधिज (सं.त्रि.) ओषधिभ्यो जायते, ओषधि- उषिकुरिगतिटस्थन् । उप २।४। दन्तच्छद, होंठ। इसका , जन-ड। १ ओषधिगणके मध्य निवास करनेवाला, संस्कृत पर्याय-रदनच्छद, दशनवास, दन्तवास, दन्त- जो जडी-बूटियोमें रहता हो। २ ओषधिसे उत्पन्न, वस्त्र और रदच्छद है। दोनोंका अर्थ निकल जो जड़ी-बूटियोंसे निकला हो। (पु.)३ ओषधिसे सकते भी पोष्ठ शब्द ऊपरी होटके लिये व्यवहत उत्पन्न अग्नि। होता है। ओषधिपति (स.पु.) पोषधीनां पतिः, तत। पोष्ठक (स० वि०) पोष्ठे प्रसितम्, पोष्ठ कन्। १चन्द्र, चांद। २ कपूर, काफर। ३ सोमलता। खानेभ्य: प्रसिते। पा ५।२६६ । श्रोष्ठ में व्याप्त, होठको खबर ४ वैद्य, हकीम। । रखनेवाला। यह शब्द समासके अन्तमें आता है। प्रोष्टकणक (सं० पु०) जनपद विशेष, कोई जगह । ओषधिप्रस्थ ( स० पु०) ओषधिबहुलं प्रस्थं सानुयंत्र कहते-पोष्ठ कर्णकमें निवास करनेवालोंके होंठ पौर बहुव्री। १ हिमालय। अधिकांश औषधि उत्पत्र कान पास हो पास रहते हैं। होनेसे हिमालयका यह नाम पड़ा है। २ हिमालयस्थ ओष्ठकोप (सं० पु०) ओष्ठस्य कोपो यत्र, बहुवी। नगरविशेष, हिमालयका एक शहर । ओष्ठरोग देखो। "यब गङ्गानिपातिता पुरा ब्रह्मपुरात सूता। ओष्ठज (सं० वि०) ओष्ठसे उत्पन्न, शफ्तो, होंठसे ओषधिप्रस्थनगरवारे सानुरुत्तमः ॥” (कालिकापुराण ४१२:) , निकलनेवाला। ओषधी (सं० स्त्री.) ओषधि डो। १ ओषधि, प्रोष्ठ जाह (सं० लो०) ओष्ठ-जाहच । तस्य पाकमूले पौत्यादि- जड़ीबूटो। २ लघुवक्ष, छोटा पेड़ । ___ कर्णादिभ्य कुणचाहचौ। पा शरा२४ । भीष्ठमूल, होटको जड़। ओषधीपति (स'• पु.) १ चन्द्र, चांद। २ कपूर, श्रोष्ठश्वर (सं० पु०) ओष्ठ, होट। काफर। श्रोष्ठपल्लव (स. क्लो०) ओष्ठ, होट। ओषधोमान् (स.वि.) ओषधि-सम्बर पोष्ठपाक (सं० पु.) पोष्ठमण, हॉटका जखम। बूटियोंसे सरोकार रखनेवाला। पोष्ठपुट (स. क्लो) प्रोष्ठोबाटनजात विवर, जो श्रोषधोश (सं० पु०) ओषधोनां ईशः, ६-तत्। १ चन्द्र, । गट्टा हॉट खोलनेसे पड़ा हो। चांद। २ कपूर, काफर। ओष्ठपुष्प (स० पु०) प्रोष्ठ इव रक्तिमं पुष्य यस्य, श्रोषधोसंशित (स० वि०) ओषधि द्वारा आयत्त, बहुव्रो०। १ बन्धु जीवपुष्पवृक्ष, दुपहरियेके फत्तका जड़ी बूटियोंसे तहरीक किया हुपा। पेड। (क्लो.) अष्ठ इव पुष्पम्। बन्धुकपुष्प, दुप- मोप्रीमक्त (सं.मी.) सूक्तविशेष, वेदका एक मन्त्र। हरियेका फल । Val. III. 138
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