पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५

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इन्ट्रभूति- इन्द्रमेदिन् "घड़ द्रव्य नवपदार्थ विकाल-पञ्चास्तिकाय-षटकायान् । गणधरहो गये। बस ! इनके गणधर होते हो महा- विदुषां वरः स एव हि यो जानाति प्रमाणनथैः ।"* ( कथाकोष) वीर स्वामौका दिव्य उपदेश होने लगा। उसे इन्द्रभूति इस जैनधर्मके मर्मको कहनेवाले अश्रुतपूर्व विषम गणधरने धारण कर आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग आदि पार्याको देखकर इन्द्रभूति बड़े चकराये। उन्होंने बारह अङ्गोंमें रचा और उसका भव्योंको ज्ञान कराया। जब तक महावीर स्वामी इस संसारमें रहे, तब क्रोधमें पाकर इन्द्रसे कहा कि "तेरा कौन गुरु है? मैं उससे शास्त्रार्थ करूंगा। तुझ छात्रके साथ वाद तक तो ये उनके गणधर रहे,बादको जब वे मोक्षधाममें विवाद करनेसे मेरी प्रतिष्ठामें क्षति पहचती है।" पधार गये, तब इन्हें भी सर्वज्ञता हुई । इन्होंने १२ वर्ष इसके उत्तरमें इन्द्रने कहा-"मेरे जगदपज्य महावीर तक इस पृथीमण्डलपर जैनधर्मका प्रसार किया। भगवान् गुरु हैं। इन्द्रभूति बोले-"क्या वही अपने अन्तमें अविनाशी पदप्राप्तकर सर्वदाके लिये अनन्त इन्द्रजालसे आकाशमें देवीको दिखानेवाला सिद्धार्थ सुखका अनुभव करने लगे। राजाका पुत्र महावीर ? क्या तू उसीका शिष्य है! इन इन्द्रभूतिका गोत्र गौतम था, इसलिये इनको . अच्छा चल ! उसौके साथ शास्त्रार्थ करूंगा।” इन्द्र लोग गौतम नामसे भी कहते हैं। बहुतसे लोग अपने प्रयोजनको सिद्ध हुआ जान प्रसन्नतासे बोला- बौद्धधर्मके नेता गौतमको और इन गौतमको नाम- “भाइये। मेरे साथ बाइये। मैं आपको अपने गुरुके साम्यसे एक ही ससझते हैं, परन्तु यह ठोक नहीं। साथ मुलाकात करा दूंगा।" अपने वचनानुसार इन्द्र- ये दोनो भिन्न भिन्न मतके प्रचारक भित्र भित्र भूति इन्द्रके साथ चल दिये। यह देख उनके अन्य दो | व्यक्ति थे। भाई अग्निभूति, वायभूति और अनेक शिष्य भी साथ इन्द्रभेषज (सं० लो०) इन्द्रं महत् भेषजमौषधम्, साथ हो लिये । चलकर वे लोग महावीर भगवान्के कर्मधा। शुण्ठो, सोंठ।। पाये। समवसरणमें जो चारो | इन्द्रमख (स० पु० ) इन्द्रकी प्रीतिके लिये होनेवाला दिशाम चार बहुत विशाल स्तम्भ (मानस्तम्भ ) यज्ञ। होते हैं, जिन्हें देखकर मानियों का मानम हो जाता | इन्द्रमण्डल (सं० पु०) नक्षत्रमण्डलविशेष। इसमें है।) उन्हें देखते ही उन सब लोगों का मान गलित | अभिजित्से अनुराधातक नक्षत्र रहते हैं। हो गया, वे लोग स्पर्धा छोड़ भगवानको प्रदक्षिणा दे| इन्द्रमद (सं० पु.) तरुगुल्म-ज्वर, पेड़पौधेको उनको स्तुति करने लगे। उनमेंसे इन्द्रभूति तत्काल ही लगनेवाला बुखार। यह एक प्रकारका विष होता समस्त परिग्रह (धन धान्य वस्त्र आदि) छोड मुनि हैं और प्रथम वृष्टिके जलसे उपजता है। इन्ट्रमदसे हो गये। तरु तथा गुल्म झुलस जाते हैं और मौन एवं जलौकादि ये हो इन्द्रभूति बादको तपस्याके बलसे अवधिज्ञान मर जाते हैं। और मनापर्ययज्ञानके (दूसरेके मनको बातको जानने- | इन्द्रमह (सं० क्लो०) इन्द्र-प्रौतिजनक उत्सव-यज्ञादि। वाला ज्ञान) स्वामी हो गये। सात ऋदि प्रकट हो गई | यह यज्ञ 'इन्द्रं अहं प्रभृति शब्दसे प्रारम्भ होता है। और समस्त तपस्वियोंमें मुख्य हो ये भगवान्के प्रधान इन्द्रमहकामुक (सं० पु० ) इन्द्रमहं कामये, इन्द्रमह- . जौव, पजीव, धर्म, अधर्म, भाकाश और काल ये छः द्रव्य, नौव, | इन्टमाटन (वैत्रि कम-उक्छ। कुकुर, कुत्ता। .) इन्द्रको प्रसब करनेवाला। अजीव, पाखव, बन्ध, संवर, निर्जर, मोक्ष, पाप और पुण्य ये नौ पदार्थ, अतीत, पनागत, और वर्तमान ये तौमकाल, जीव, पजीव, धर्म, अधर्म, इन्द्रमार्ग (सं० पु.) इन्ट्रलोकमातार्थो मार्गः, शाक- पौर पाकाश ये पांच पस्तिकाय, एवं पृथी, जल, तेज, वायु और वनस्पति तत्। बदरीपाचनका निकटवर्ती तीर्थ । इस खानमें पातिक शरीरवाले पांचप्रकारे नौव और शेषकाय (वसकाय)के धारी जीव ये वशिष्ठका प्राश्रम था। (भारत, वन २५०) घट्-काय इनको जो प्रमाण और नयोंसे जानता है वह ही विद्वानों में श्रेष्ठ है। इन्द्रमदिन, (३० वि०) इन्द्रसे मित्रता रखनेवासा ।