पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

औंस-ौचथ्य भौंस, बाउन्स देखो। । औगढ़ (हिं. वि०) अनोखी रीतिसे गढ़ा हुआ, चौहर (हिं. स्त्री.) पड़चन, बखेड़ा, उसमाव । निराली बनावटवाला। चौकम, भौकाम देखो। पौगत (हिं० स्त्री० ) १ दुर्गति, बुरी हालत। (वि०) चौकात (प. पु.) १समय, वन, मौसम। २ अवगत, जानकार। २ शक्लिा, हैसियत। औगल (हिं. स्त्रो०) पाद्रता, नमो, जमीनके पौकान (हिं० पु.) लांक, खेतके कटे हुये अनाजका नीचे की तरौ। ढेर। पौगाह (हिं. वि० ) गभौर, गहरा।.. पौकास (हिं.) अवकाश देखो। पौगाहना (हिं. क्रि.) मंझाना, घुसना । औक थिक (स.नि.) उक्थं सामावयवभेदं वैत्तिोगी (हिं. स्त्री.) १ सात हाथका चाबुक । अधीले वा, प्रोकथ-ठक्। उक्थ नामक सामवेदके | २ दिल्लीके जतेको कारचोबी। ३ हाथो फंसानेका पङ्गका अध्येता। २ उक्थ विज्ञाता। गड्डा। ४ अण्टो। ५ बैलगाड़ी हांकनेको छड़। पौथिक्य (सं० क्ली०) उक्थ पाठ । सामवेदमें उक्थ | औगुन (हिं.) अवगुष देखी। मामक के पढ़ने का नियम। “नुन सौखके श्रीगुन सौखो।” (लोकोक्ति ) पौष (सक्लो०) उच्यां वृषाणां समूहः, अण •ौगुनी (हिं० वि०) १ गुणरहित, जो कोई वसा. टिनोपन। वृष-समूह, बेलौका मुण्ड । पौषक (सं.ली.) उखां समूहः, उपन्-वुज । रखता न हो। औग्रसेनि (सं.पु.) उग्रसेनस्थापत्य पमान, उग्र गोबोचौधोरबराजन्वेति। पा ॥२।३। वृषन्द, बैलोंका सेन-इज । उग्रसेनका पुत्र कंस । जखीरा। गौचमन्धि (सं० रो.). एक अप्सरा । औग्रसैन्य, प्रौपसेनि देखो। पौष (सं• वि.) १ वृषसम्बन्धीय, बससे सरोकार औग्रसैन्य (सं० पु०) युधांचौष्टिका एक उपाधि । रखनेवाला। (पु.) २उचाके गोत्रापस्य । प्रोग्य (सं० को०) उग्रभाव, खू खारी। पौखद (हिं) पौषध देखो। पौष (सं० पु०) ओघ स्वार्थे पर। जलसमूह, चौखस (हिं. पु०) नवाबष्ट भूमि, वो जमीन | बाढ़। नये सरसे जोती गयी हो। भौघट (ह. वि.) दुस्तर, मुधिकल, ढाल, सुनसान । पाखा (वि.पु.) गोचम, गायका चरसा या चमड़ा।। “भौधट चले न चौपट गिरे।" (लोकोक्षि) मौखी (हि.सी.) असभ्य भाषा, टेढ़ी बात। औघड़ (हिं. वि.) १ पदक्ष, अनाड़ी। (पु.) पोखीय (सं. वि.) उखेन प्रोतामधीते, पण । २ अपशकुन, बदशिगूनो। ३ पटधड़ देखो । उखलिखित प्राणाध्यायो, उन ऋषिका बनाया पौधर (हिं० वि. ) १ विपरीत, उलटा। २ पाचर्य- माधव पढ़नेवाला। जनक, अजीब। पौस्य (सं.वि.) उखायां निष्पबम, उखा-यत् पौचक (हिं.क्रि.वि.) पचामक, धोकसे। स्वाथें थष ।१ स्थलोमें पाक किया हुआ, जो बरतन-ौचट (हिं.क्रि. वि.) १ पचानक, झटपट। में बनाया गया हो। यह शब्द अबादिका विशेषण २ धोकेसे। (स्त्रो० ) ३ सङ्कुचित स्वान, सङ्ग जगह, है। (जी.) मगरी विशेष, एक यहह। फंसाव। औख्य यक (सं.हि.) उख्यायां जासम्, उख्या-ढका। औचथ्य (सं. पु.) उतथ्यस्थापत्वं पुमान् पर बराड्यादिथ्यो उकय । पा ५ स्थालीपक्क, बरतनमें पृषोदरादित्वात साधुः। उतथा ऋषिके पुत्र पौतथा। पकाया हुआ। इनका नाम दीर्घतमा था।