औत्तानपादि-औदञ्चवि श्रौत्तानपादि (सं० पु०) उत्तानपाद-इञ् । पौत्तानपाद देखो। औत्सायन (सं० पु.) उत्सस्थापत्वं पुमान्, उत्स- पौत्पत्तिक (सं० वि०) उत्पत्या अवियुक्तः, उत्तपत्ति- फत्र । अश्वादिभ्यः फल । पा आरा। उत्स ऋषि- ठक। १ नित्य, असलो। २ स्वाभाविक, जाती, वंशीय, उत्मक वैटे वगैरह। . पैदायशी। औत्सुक्य (स० क्लो०) उत्सुकस्य भावः, उत्सुक- औतपात (सं. त्रि.) उत्पातस्य-इदम्,. उत्पात थन।१ उत्कण्ठा, इश्तियाक, गहरी चाह । २ चिन्ता, अण। १ उत्पात-सम्बन्धीय, नासतसे सरोकार | अफसोस । ३ अलङ्कार शास्त्रोक्त एक व्यभिचारी भाव। रखनेवाला। २ उत्पातनापक, बदफालो जाहिर "इष्टानवाप्ते गैतमुक्य कालचे पासहिचता । करनेवाना। चित्ततापत्वराखे ददौर्घ निवासितादिकृत " (साहित्यद० २१५५) पौतपातिक (सं.नि.) उत्पाते भवः, उत्पात-ठक् ।। प्रियजनको अप्राप्तिसे औत्सुक्य उठता है। इसमें १ दैवविपत्ति-जन्य, बदफालौसे पैदा। २ उत्पात- कालक्षेप, अधर्य, मनस्ताप, व्यस्तत्व, खेदोद्गम पौर सम्पादक, बदफाल, मनहस । (क्लो०) ३ दैवविपत्ति, दीर्घनिश्वास प्रमृति प्रकाशित होता है। . बदफालौ। औषरा (हिं० वि०) अगभोर, उथला। प्रोत्पाद (सं• त्रि.) उत्पादं तदावेकग्रन्थ वा वेत्ति औदक (सं• त्रि.) उदकेन पूर्ण तदस्वास्ति उद- अधीते वा, अगा। १ उत्पादवेत्ता, पैदायशको जानने कस्य इदं वा, अछ। १ जलपूर्ण कुम्भयुच, पानीसे वाला।२ उत्पादकज्ञापक ग्रन्याध्यायो,पैदायश बताने भरा घड़ा रखनेवाला। २ जलीय, पाबी, पानीसे वाली किताब पढ़नेवाला । ३ उत्पादजन्य, पैदायशी।। सरोकार रखनेवाला। पौत्पुट, ( स० वि०) उत्पुटेन निवृत्तम्, उत्पुट- औदकज (सं० त्रि.) जलीय वृक्षोंसे उत्पन्न, जो अगा। सक्लादिभ्यश्च । पा ४।२.७५ । प्रफुल्ल, प्रस्फुटित, भावी पौदोंसे पैदा हो। .. शिगुफ़ ता, फला, खिला हुआ। औदकि (म. पु०-स्त्री.) उदकस्थापत्यम्, उदक मौतपुटिक (सत्रि) उत्पुटेन हरति, उत्पुट | दून। उदक नामक ऋषिके पुवादि, उदकको ठक। हरव्य तसङ्गादिभ्यः । पा ४४।१५। चच्च वा मुख हारा बौलाद।। हरणकर्ता, चौच या मुंहसे खींचनेवाला। औददि (स. पु०-स्त्री.) उदहस्यापत्यम्, उदक- श्रौत्र (सं० त्रि०) रूस्त, भद्दा, मोटा। इञ्। १ उदक ऋषिके पुत्रादि, उदहको पौलाद। श्रौत्स (सं० वि०) उत्से भवः, उत्म-अम् । १ प्रत्र- २ क्षत्रिय जाति विशेष । । वणसे उत्पन्न, भरनेसे निकला हुआ। उत्सस्य इदम्। औदकीय (संपु) औददि जातिके एक राजा। २ उत्स-सम्बन्धीय, भरने या कू से सरोकार औदज्ञायनि (स० पु.) उदन्तस्यापत्यम्, उदन- रखनेवाला। फि! तिकादिभाः फिम्। पा ११५४। उदन्त ऋषिके औत्सङ्गिक (सत्रि०) उत्ङ्गेन हरति, उत्सङ्ग पुत्रादि। ठक। क्रोड़ द्वारा हरण किया: जानेवाला, जो औटञ्चन (सं.वि.) उदच्यते उक्षिप्य धि यतेऽस्मिन पुढपर रखा हो। इति उदञ्चनो जलाधारस्तस्य दम्, अण । जलाधार- पौत्सर्गिक (स० वि०) उत्सर्गस्य भावः, उत्सम- स्थित, घड़ेमें भरा हुआ। ठन । १ सामान्य विधियोग्य, मामूली कायदेमें औदञ्चनक (सं० त्रि०) उदच्चन-वुञ् । छपकठ- भानेवाला। २ देवपूजादिक शेषमें उत्सर्ग-सम्बन्धीय। जिलेति। पाभरा। जलाधारके निकटस्थ, घड़े के पास .३ प्राकृतिक, कुदरतो। पड़नेवाला। पौत्सर्गिकत्व (सं० ली.) विधिको सामान्यता, | पौदञ्चवि (स'. पुस्त्रो०) उदञ्चोस्पत्यम्, इन् । कायदेको कुलियत या पमूमियत । | उदच्चु ऋषिके पुवादि, उदयको औलाद। । Vol. III. 140
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५८
दिखावट