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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६४

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औपपादुक-औपवासिक श्रीपपाटुक (स० वि०) उपपादुकस्य इदम, उप- औपराधय्य (मलो०) उपराधस्व कर्म भावावा, पाटुक-ठक। १देवदेह-सम्बन्धीय। २ नारकिदेह- उपराधय-व्यञ् । गुरुवचनना चादिभ्यः वर्मपि च । पा ११२। सम्बन्धीय। ३ अपने आप उत्पन्न किया हुआ, जो उपमेवकता, नौकरी-चाकरो। खु.द-बखुद निकाला गया हो। औपविष्ट (म० वि०) उपरिष्टात् भवः उपरिष्ट औपवाहवि ( सं० पु. ) उपबाहोरपत्य पुमान, अण। ऊपरसे उत्पन्न, जो जपर हो। उपबाहु-ज्ञ। उपवाहु वंशोय, उपबाहुके खान्दानमें : औपरिष्टक (म लो०) काममूव का एक अंश। पैदा होनेवाला। । इस शृङ्गारप्रिय ग्रन्थको वात्स्यायनने लिखा था। भोपभृत (स.नि.) उपभृता पात्रेण सञ्चितः, औपरैधिक (म. पु.) उपरधः प्रयोजनमस्व, उप उपभृत-प्रण। १ अश्वत्थ काष्ठके यन्नपावमें सञ्चित, रेध-ठक । पोलुटण्ड, पोलका डंडा। पीपल की लकड़ीके चम्मच में इकट्ठा किया हुआ। औपरोधिक (म० पु०) उपरोधः प्रयोजनमस्य, उप २ उपभृत-सम्बन्धीय। रोध ठक। १पोलुदगड, पोलको लकडोका सोंटा। चौपमन्यव (स.पु०) उपमन्योरपत्यं पुमान्, उप- (वि०)२ उपरोध-सम्बन्धीय, रोक-टोकसे सरोकार मन्य-अज। १ मन्य के पुत्र । २ महायाल रखनेवाला। ३ वपासे होनेवाला, मेहरबानीके जाबालका एक नाम । ३ प्राचीन-शाल। ४ एक प्राचीन मुताल्लिक। वैयाकरण । यास्कने इनका वचन उहत किया है। श्रीपन (स० वि०) उपनादागतः, उपल-अप । अखिका . औपमिक (सं.वि. उपमया निर्दिष्टः, उपमा-ठक् । दिभोऽन् । पा ४।२६६ । १ उपलसे पागत. पत्थरसे उमाहा उपमा द्वारा निर्दिष्ट, मिसालका काम देनेवाला। या बटोरा हुमा। २ प्रस्तर सम्बन्धोय, पथरीला। प्रौपम्य ( सं० क्ली. ) उपमा एव, स्वार्थे थञ्। औपवमधिक (सं० वि०) उपवस्ये भवः, उपक्सव- सादृश्य, बराबरी। इसका संस्क त पर्याय अनुकार, ठन। १ उपवसथ-सम्बन्धीय, उपवसथ में किया जाने- अनुहार, साम्य, तुला, उपमा, कक्ष और उपमान है।। वाला। उपवसथ देखो। (को०) २ सामवेदका परि एकसे दूसरेके सादृश्यका प्रकाशन प्रौपम्य कहाता | शिष्टविशेष। है। (चरक) औपवसथा (सं• वि.) उपवसथे भवः, उपवसक पीपयज (सं० त्रि.) उपयज इदम्, उपयज-प्रण ! यज । १ उपवसथ, कर्तव्य । २ उपवसथ-सम्बन्धीय। पशयन-सम्बन्धीय। | भोपवस्त (सलो०) उपवास, लान, फाका, न पौपयिक (सं. त्रि.) उपायेन जातः, उपाय-ठक् | खानेकी हालत। स्वश्च । १ न्याय्य, वाजिब। २ उपयुक्त, दुरुस्त, | औपवस्त्र (सं० लो०) उपवस्त्र-प्रण। १ उपवास, ठीक। (क्लो०) स्वार्थे ठक् । ३ उपाय, तदबौर। फाका। २ उपवासके उपयुक्त खाद्य, फाके में खाने "शिवमोपयिकं गरीयसौम्।" ( भारवि २०३५) लायक चीज़। औपयौगिक (म. त्रि.) उपयोग: प्रयोजनमस्य, प्रोपवस्त्र क (सं• लो०) उपवास के उपयुक्त आहार, उपयोग-ठा। उपयोग-सम्बन्धीय, लगानेसे सरोकार फ़ाके में खाने लायक चौज । रखनेवाला। औपवास (स० वि०) उपवासे दीयते, उपवास- प्रोपर (सं. वि.) दण्डवंशीय, दण्ड के घरानेमें अण। व्यष्टादिभोऽन् । पा ५१६६७ । १ उपवासके व्रतमें पैदा होनेवाला। देय, जो फाके में देने लायक हो। उपवासस्य इदम्। चौपराजिक (सं.वि.) उपराज-ठञ्। काश्य २ उपवास सम्बन्धीय, फाके के मुतालिक । दिभ्यष्ठविठौ। पा स१६। उपराज-सम्बन्धोय, बाद-औपवासिक (सं.वि.) उपवासे साधुः, उपवास- शाहको जगह काम करनेवालेके मुतालिक। ठ। मुडादिभाष्ठष । पा ॥४२०२। उपवासके उपयोमो, '.