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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६५

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औपवास्य-औपाध्यायक फाके के सायक। उपवासाय प्रभवति। २ उपवास- स्वास्थ्य भी बोध होता है। इसोका नाम औपसर्गिक समर्थ, फाका कर सकनेवाला। वा सन्निपातज रोग है। सुश्रुतके कथनानुसार पूर्वोत्- चौपवास्थ (सं० लो०) उपवास स्वार्थ व्यज । उप- पन्त्र व्याधिके निदानादि द्वारा जो अपर रोग साथमें वास, काका। रामायण २।८७ :) लग जाता, वही औषसर्गिक कहाता है। यह रोग भोपवाध (सं० पु०) उपवाद्य स्वार्थे अण।: उपद्रवसे उठता है। १ उपवाहन, रथादि, सवारी, गाड़ी वगैरह । (त्रि०). "श्रौपसर्गिकरोगश्च स'कामन्ति नरान्नरम् ।” ( माधवनिदान-टौका) २ सवारीके लिये खींचा हुआ। ३ सवारीके लिये २ पापरोगादि। ३ भूतादिके आवेशसे उतपत्र चलाया हुआ। रोग। (त्रि.) ४ उपसर्ग-सम्बन्धीय, मुकद्दम । भोपविन्दवि (सं० पु०) उपविन्दोरपत्य पुमान्,उपविन्दु- ५ विपद्का सामना कर सकनेवाला, जो आफ़त झेल इन । उपविन्दुपुत्र, उपविन्दु नामक ऋषिके लड़के। सकता हो। परिवर्तन-सम्बन्धोय, तबह लके मता- भोपवेशि (स० वि०) अरुणके गोत्रापत्य। ल्लिक,। ७ साथ लगा हुआ। ८ अदभुत, अजीब। भोपवेशिक (स.त्रि०) उपवेशेन जीवति, उपवेश- औपसौर्य (स त्रि.) उपसौराद्भवः, उपसौर-जा। ठन। वेश के द्वारा जीविका निर्वाह करनेवाला, बहु- गम्भौराज आः । पाश५८।१.लागलोतपत्र, इलसे निकला हपिया। हुअा। २ लाङ्गलके निकटस्थ, इनके पास रहनेवाला। भोपशामिक (.सं. त्रि०) उपशमक, ठण्डा कर प्रौपस्थान (सं० त्रि.) उपस्थानं शौलमस्य, उप- देनेवाला। स्थान-ण। वादिभ्योः णः। पा ४:४१६२ । उपस्थानशील, श्रीपशिवि (सं. पु०) १ उपशिवके गोत्रापत्य । उपासक, हाज़िरबाश, खिदमतगार।' चौपश्लेषिक (स० वि०) उपनेषेण निवृत्तः, उप- : औपस्थानिक (सं० त्रि०) उपस्थानेन जीवति, उप- श्लेष-ठक । , उपग्लेष-सम्बन्धीय, लम्सके मुतालिक, स्थान-ठक। सेवाव्यवसायो, खिदमतगारोसे जिन्दगी मेंलो। सिद्धान्तकौमुदीमें विविध · आधार लिखा बसर करनेवाला। . है,-पौपश्न षिक, वैषयिक और अभिव्यापक। औपस्थिक (सं.त्रि.) उपस्थेन जीवति, उपस्थ-ठज। चौपसंक्रमण (स.नि.) उपसंक्रमणे दीयते, उप- जारकर्मजीवी, जिनासे जिन्दगी बसर करनेवाला। संक्रमण-अण। उपसंक्रमणमें देने या कर लेने योग्य । औपस्थिका (सं० स्त्री०) वेश्या, रंडी। उपसंक्रमण देखी। औपस्थ ण्य ( स० वि०) स्थ रणाका समीपवतों, सितून के उपसंख्यानिक (सं० वि०) उपसख्यानस्य इदम्, नज़दीक रहनेवाला। उपसख्यान-ठक । १ उपसख्यान-सम्बन्धीय, एक औपस्थ्य (सं० लो०) उपस्थाद्भवम्, उपस्थ-व्यज । होमें कहा हुआ। २ परिशिष्ट, तरमौमौ। जननेन्द्रियजन्य सुखादि, जिनाकारीका मजा । औपसद (सं० पु०) उपसत् शब्दोऽस्तास्मिन् उपसद- औपहारिक ( त्रि.) उपहाराय साधुः, उपहार- पण । विमुक्तादियोऽण । पा ५।२।६१ । १ उपसद् शब्द- ठक्। १ उपहारकै उपयोगी, नज़रके काबिल, युक्त अध्याय वा अनुवाक । उपसद् समीप स्थानं तत् जो भेंट करने लायक हो। ( लो०) २ उपहार, अस्यास्ति। २ इन्द, जोड़ा। ३ एकाह यज्ञविशेष । भेंट। औषसगिक (सिं० पु०) उपसर्ग-ठक । १ सवि- औपाधिक ( त्रि.) उपाधि-ठज । १ उपाधिक्कत, पातज रोग, सरशाम को बीमारो। वैद्यक मतमें कफ शरतो। २.उपाधि-सम्बन्धीय, निसबतो। अनुलोम वायु और पित्तसे मिल रोगोत्पादन करता औपाध्यायक (सं० वि०) उपाध्यायादागतः, उपाध्याय- है। उस समय रोगोके खेद चलता और शीतलताका | वुज। विद्यायोनिसम्बन्धेभो बुन । पा ॥३२७७। उपाध्यायसे वैग बढ़ता है। फिर वायु प्रतिलोम पड़नसे कुछ । लाभ किया जानेवाला, जो उस्तादसे हासिल हो।