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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६६

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'.औपानय-औरङ्गजेव . औपाना (सं० पु०) उपानाह-जा। १ मुञ्ज, मूज। ! उमोर्यायौवा। पा ४:३।१५८। १ शणका विकार, सन को २ चर्म, चमड़ा। (वि.) ३ जता बनानेके काममें चीज़। (त्रि.)२चौम, सनोला। लगनेवाला। ४ बांधा जानेवाला। औमायन (सं० क्लो.) उमाया निमित्तं संयोग: उत्- औपायिक (स.वि.) उपायेन जातः, उपाय-ठक । पातो वा, उमा-फज । १ शसका सयोग। २ शणसे १ न्याय्य, वाजिब। २ उपयुक्ता, ठोक। उठनेवाला उत्पात। औपावि (सं० पु.) उपावस्यापत्यं पुमान्। १ उपाव औमिक, औमक देखो: ऋषिके पुत्र ! २ जानश्रुतेयके वंशज। औमीन (सं. लो०) उमानां भवनं क्षेत्र वा, उमा-खत्र। औयासन (स. त्रि.) उपासना विवाहाग्निः तत्र विभाषातिलमाषोमेति । पा ५।।४। १ अतसीपूर्ण गृह, सनसे . भवः, उपासन-अण्। १ विवाहाग्नि-सम्बन्धीय। भरा हुआ घर। २ अतसोक्षेत्र, सनका खेत । २ उपासना-सम्बन्धीय, परस्तिशके मुतालिक । ३ विवा- और (हिं.वि.) १ अन्य, दूसरा। केवल, सिर्फ। हाग्नि। ४ विवाहाग्निमें नैत्यिक कर्तव्य होमादि। “टुनया है और मतलब ।” (लोकोति)३ अधिक, ज्यादा। यह होम प्रत्यह प्रातः एवं सन्ध्याकालको करना “सौतपर मौत और जलाया ।" (लोकोक्ति ) (पु.) १ अन्य पड़ता है। प्रथम सायंकालको हो प्रारम्भ करना व्यक्ति, दूसरा शख स। “मुझे और न तुझे ठौर।" (लोकोक्ति) चित है। प्रारम्भ-रात्रिको ८ घटिका प्रतीत हो (अन्य०) ५ वा, ओ, अरु, ौ। किन्तु, लेकिन, जानेसे उस रात्रि को प्रारम्भ न कर दूसरी रात्रिको इसपर भी। प्रारम्भ करते हैं। होमारम्भसे पहले ही विवाहाग्नि औरग (सं० लो०) उरगस्य इदम,उरग-अण् । १ अश्लेषा- बुझ जानपर विधानानुसार स्थालीपाक कर आरम्भ नक्षत्र । (त्रि.) ससम्बन्धीय, सांपके मुतालिक । करना पड़ता है। प्रातःकालको सूर्योदयसे औरंग-बम्बई प्रान्तके सूरत जिलेकी एक नदी। यह चन्द्र उदित रहते रहते होम कर्तव्य है। अत्रिके धर्मपुर पर्वतसे निकल अम्बिकासे ८ मौन दक्षिण वचनानुसार होमका मुख्य काल सर्वे समुद्र में जा गिरती है। समुद्रसे ६ मील तक इस भूमिसे एक हाथ उस्थित न मालम पड़ने और नदीमें ५० टनकी नावें चल सकती हैं। बलसारके रात्रिको प्रदोषकाल चलने तक रहता है। इस पास पुल बंधा है। होमके अकरण सम्बन्ध में गर्गने कहा है-दारपरिग्रह औरङ्गजब-दिल्लीके एक मुसलमान बादशाह। ये रने बाद क्षणकाल मात्र भी अग्निको छोड़ना न शाहजहांके तीसरे पुत्र और जहांगोरके पौत्र थे। चाहिये। क्योंकि अग्नि विना अवस्थान करनेसे पतित 'इनकी माताका नाम सुलताना कुसिया था। होना पड़ता है। स्नान, सन्ध्या, वेदाध्ययन प्रभृतिको सुसलमानी १०२८ हिजरीके. ११ जेल्कद महीने में भांति उपासना भी अवश्य कर्तव्य है। जो व्यक्ति (१९१८ ई०के अत बर महीने में ) औरङ्गजेबका विवादाग्नि छोड़ अपनेको गृहस्थ समझता, उसका जन्म हुआ। पहले इनका नाम मुहम्मद था। अन्न खानेसे प्रायश्चित्त करना पड़ता है। लड़कपनमें ही असाधारण वीरत्व प्रकाश करनेके औपौन ( स० क्लो० ) उम्यक्षेत्र, बोने लायक कारण प्रसन्न होकर शाहजहनि इनका नाम औरङ्गजेब अर्थात् सिंहासनका आभरण रख दिया। प्रोपोटिति (सं. पु०) उपोदितस्यापत्यं पुमान, उपो- इसके सिवा इन्होंने स्वयं 'आला-खाकान' उपाधि - दित-इज । उपोदित ऋषिके पुत्र । ग्रहण किया। इनके और भी दो नाम जनसमाजमें , औम् (सं० अव्य.) भोम् देखो। प्रसिद्ध हैं। एक नाम महीउद्दीन् अर्थात् धर्मका प्रीम (स त्रि०) ओमक देखो। (हिं० ) अवम देखो। । उद्दारकर्ता और दूसरा पालमगीर अर्थात् विश्व- औमक (सं.ली.) उमाया विकारः, उमा-वुज । विजयो है। ये १६५८ ई०को बादशाह हुए। ___Vol. III. 142