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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६८

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औरङ्गजेब ५६० शुजा बंगालमें थे। उस समय वे बंगालके शासन फिर बंगाल भेज दें, विरोधका कोई प्रयोजन कर्ता थे। बड़े भाई के सम्राट होने का समाचार नहीं। सुलेमान और जयसिंह काशी पहुचे। पाते ही क्रोधसे उनका शरीर जल उठा। शोघ्र हो उस पार शाहशुजा थे। सम्राटको आज्ञानुसार उन्होंने लड़ाईको तय्यारी करके उन्होंने दिल्लीको यात्रा कर दी। शुजाको बहुत समझाया बुझाया-भाई भाईमें औरङ्गजेब अत्यन्त कर थे। लड़कपनसे हो ये विराध होनसे राज्यका अनिष्ट होगा। शुजाने भी इस कपटधार्मिक बने हुए थे। इस गोलमालके समय बातको समझा। वे निर्विवाद बंगाल लौट जाते, इन्होंने अपनी शान्ति प्रकृतिसे धीरे धीरे अपनी दुरभि परन्तु सुलेमान सहज हो छोड़नेवाले आदमो न थे। सनिके सिद्ध करनेका उपाय स्थिर कर लिया। बड़े सवेरे हो सेना लेकर वे गङ्गापार गये। शुजा उस छोटे भाई मुराद उस समय गुजरातके शासनकर्ता समय सो रहे थे। उसी निद्रितावस्थामै सुलेमानने थे। औरङ्गजेबने उनके पास लिख भेजा,-"भाई! उनको सेनापर आक्रमण किया। जागकर शाह- पिताका तो मृत्युकाल निकट है। हमारे दोनों बड़े, शुजाने बढ़ी देर तक युद्ध किया, परन्तु अन्त में भाई अलस, इन्द्रियपरायण और विलासी हैं। इस परास्त होकर मुझेर भाग गये। विशाल राज्यको शासनमें रखनेके योग्य वे नहीं हैं। उधर उन्जेनमें महाराज यशवन्तसिंह छावनी मेरी बात तुमसे कुछ छिपो नहीं है। क्या करूं डाले पड़े थे। वे सम्राटके पचके सेनानायक थे, परमगुरु पिताका अनुरोध है, इसीसे कामकाज औरङ्गजेब और मुरादको गति रोकने के लिये भेजे गये देखता हूं, नहीं तो संसारमें तिलाई भी स्पृहा नहीं थे। नर्मदाके उस पार युवराज औरङ्गजब बैठे हुए है। जो हो, इस समय सयुक्ति यही है, कि तुम्हारे मुरादके पानेकी प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों सेना मिल हाथमें राज्यका भार सौंप में मक्के चला जाऊ; अत- गई, घोर युद्ध होने लगा। यशवन्त परास्त पुर। एव आइये हम दोनों आदमो सेना लेकर पागरे चलें"। उसके बाद स्वयं दारा छोटे भाइयोंको दण्ड देने के लिये ___ खलोंके कुचक्रमें देवता पड़ जाते हैं, मनुष्योंको आये, परन्तु हार मानकर वे भी भाग गये। कौन गिनती है। औरङ्गजेबके मायाजालमें मुराद ग्लानिसे यशवन्त अपनी राजधानोको चले गये. फंस गये। वे आकर नर्मदाके किनारे औरङ्गजेबसे लौटकर बादशाहके पास जानका साहस न हुआ। मिले। शाहजहांका जीवन संकटापन्न था, परन्तु परन्तु इधर घरमें स्त्रियोंका तिरस्कार सहनेसे तो इतने दिनोमें रोगका प्रकोप बहुत कुछ कम पड़ : मृत्यु हजार गुना श्रेय था। निकट पहुंचते हो गया। निविवाद दाराने पिताका सिंहासन छोड़ महारानी दरवाज़ा रोककर धमकीके साथ काइने दिया। परन्तु शुजा प्रभृतिको इस बात का विश्वास लगी,-"इमलोग वीरकन्या हैं, वोरपुरुषको वरण न हुआ। उन लोगोंने समझा-लोग जो पारोग्य करती हैं; वोरपुरुषको जयमाल पहनाता हैं। होने का समाचार फैला रहे हैं, वह केरल जनरव है; कापुरुषके साथ विवाह करना राणाकुल-कन्यायोंको इसमें भी दाराको कोई चातुरी है। इसलिये युद्ध अभ्यास नहीं है। राजपूत प्राणको अपेक्षा मामका करना ही उन लोगोंका दृढ़ संकल्प हुआ। गौरव अधिक करते हैं। युहमें परास्त होना नई . दोपहरके पहले ही दाराको शुजाको दुरभि बात नहीं है,परन्तु रणक्षेत्रसे भाग आना राजपूत-वंयमें सन्धिका समाचार मिल गया था, इसलिये उन्होंने आज नया देख पड़ता है। मालम होता है-तुम अपने पुत्र सुलेमान और राजा जयसिंहको प्रयागको मैर वह पति नहीं हो; कोई ठग हो, बहाना करके ओर भेज दिया। परन्तु सम्राटको इच्छा न थी, कि दरवाजेपर पुकार रहे हो। मेरे जो पति हैं, वे आज 'घरमें फूट फैलती। इसलिये शाहजहांने चुपचाप | समरक्षेत्रमें वीरशय्यापर सोये हैं। दुर्मति ! दरवाजा जयसिंहको कहला भेजा,-शुजाको समझा बुझाकर छोड़ दे। मैं चिता जलाकर पतिका अनुगमन करूं।