पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६९

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. औरङ्गजेब राजपूत-वीरमहिलाओंकी इतनी स्पर्धा, वीरत्वका । उन्होंने अपनी कन्या जहानाराको लड़कोंके खेमेंमें इतना आदर! उनको रग रगमें गर्म खन दौड़ा | भेज दिया। करता था। रणोन्मत्त प्राण-पुतली युद्धका नाम सुनते जहानारा पहले मुरादक खेमेंमें गई। गत युद्ध में ही नाच उठती थी। आज कालको गतिसे सब उनका शरीर धावोंसे भर गया था। वे कातर होकर निर्वाण हुआ जाता है। सो रहे थे। उसी समय जहांनारा वहां पहुंचौं। ____जो हो, औरङ्गजेब के बड़े भाई एक प्रकार शान्त मुराद जानते थे, कि वह मनसे दाराकी ओर रहीं। हुए। जयसिंह प्रभृति जो लोग महावीर दाराके इसलिये उन्होंने उनका कुछ भी समादर न किया, प्रधान सेनापति धे, बारबार चिट्ठी और खत भेज भेज वर अनेक कडी कडी बात कहकर अपमान कर औरङ्गजबने उनका भय तोड़ दिया। सेनापतियोंने किया। इतने जाकर पौरङ्गजेबसे इन बातोंको चुप- भी सोचा, दाराका अब कल्याण नहीं है। शाह- चाप कह दिया। जहांके भी दिन पूर पाये हैं। यह विशाल साम्राज्य औरङ्गजेबके सब कामोंका वीजमन्त्र कुचक्र था। औरङ्गजेबके ही हाथमें जायगा, इससे सेनापति और क्रोध करके जब जहानारा चल खड़ी हुई, तो दौड़कर सिपाही सब दारासे अबाध्य हो गये। पौरङ्गजेब उनके पास गये। खलके हृदयमें विष सम्प्रति सिंहासनके प्रधान कण्टक स्वयं सम्राट और मुहमें मधुरता भरी रहती है। इन्होंने जहां- ही हैं। मुराद और एक प्रतियोगी है। इन दोनोंको नाराका हाथ पकड़कर कहा,-"बहिन! यह क्या ! शान्त कर देनेसे ही मनोरथ सिद्ध हो सकता है। शठके मैं क्या तुम्हारा कोई नहीं इं? जब आ गई हो, तो लिये प्रसाध्य कुछ भी नहीं है। औरङ्गजेबने विचार भाई समझकर एकवार समाचार तो लेना चाहिये। . कर देखा, अभो बलप्रयोग करनेका समय नहीं क्या इतने दिन विदेशमें रहनेसे भूल गई हो? पिता आया। अभीष्ट सिद्ध करने के लिये कौशल हो एक-- इतने बीमार हो गये थे, श्रादमी भेजकर खबर तो मात्र उपाय है। इसलिये मुरादको साथ लाकर दे देना था। इस तरह खुशामद करके औरङ्गजेबने उन्होंने प्रागरीके पास छावनी डाल दो। किले में सम्राट जहांनाराको अपने तम्ब में ले जाकर कहा,- थे। औरङ्गजेबने एक विश्वासी दूत द्वारा सम्राटको "बहिन ! क्या कहू, लोगोंका रङ्ग ढङ्ग देखकर मेरे यह कहला भेजा,-मैं जमीन छकर कहता हूँ, मनमें उदासीनता छा गई है, तुम पितासे मेंरा यह मैंने जो काम किया है, वह सन्तानके अयोग्य है, सानुनय निवेदन करना-मैं एकवार उनके पद- किन्तु उसमें मेरा दोष नहीं है, दोष दाराका है। सरोजका दर्शन कर इस संसारसे सम्बन्ध तोड़ देना जो हो, पापने कठिन रोगसे छुटकारा पाया है, यही चाहता है। अतएव और विलम्बका काम नहीं, मङ्गल है। अब यदि पुत्र जानकर इस दासको क्षमा, परसों उनके दर्शन करनेकी इच्छा है।" करते, तो हृदय धोतल होता। | जहांनाराके जाने बाद औरङ्गजेब पिताको चरने जाकर सम्राटसे पौरङ्गजबका संदेथा कहा।। कारारुद्ध करनेकी चेष्टा करने लगे। शाहजहां भी वृवावस्था में बुद्धि मारी जाती है, जो हो तो भी पिता। समझ गये,कि शठको इतनी भक्ति में मुलक्षण नहीं है। रहे। शाहजहां अपने लड़केको अच्छी तरह पहचानते । उन्होंने दाराके पास लिख भेजा,-"दो दिनके बाद थे। औरङ्गजेबके मनमें यह लालसा लड़कपनसे औरङ्गजेब पाकर मेरी शरण लेगा। मुरादसे वह लगी थी, अवसर पाकर मोगलराज्यका सम्राट विरक्त हो गया है। जो हो, खलका विश्वास नहीं। होना होगा। दूसरे लोग चाहे न समझते, परन्तु तुम सैन्यसामन्त लेकर शीघ्र आगरे पावो। औरङ्ग- भाइजहां इस दुरभिसन्धिको बहुत दिनोंसे समझा जैबको गिरफ्तार करना होगा।" बध थे। भौतरी बात क्या है, यह खबर लेनेके लिये दारा उस समय दिल्लीमें थे। आधीरातके समय