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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७१

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औरङ्गजेब मथुरा पहुंचे। वहां मुरादके पारिषदोंने कहा,- प्रधान प्रधान सरदारोंको साथ ले औरङ्गजे.बके खेमे में "आप पब औरङ्गजेबके साथ न रहिये। शठ बड़े गये। नाच गान होने लगा। परन्तु इन सब बामोदों- कठिन होते है। वह आपके प्राणनाश करने की का एक प्रधान अङ्ग सुरा है। औरङ्गजे.बने इस आयो. चेष्टामें है। हम लोगोंका परामर्श यही है, कि आप जनमें वटि न की थी। तम्बमें आनन्दको घटा उमड़ पहले ही उसे विनष्ट कर डालिये, नहीं तो और उठी। मुराद इतचैतन्य, उनके पारिषद हतचैतन्य निष्क ति नहीं।" और शरीररक्षक नशेमें मतवाले हो गये। यह सुयोग पाखिर यही ठहरा, औरङ्गजे.बको मार डालना पा औरङ्गजे बने अपने भाई को बांधकर आगरे भेज चाहिये। मुरादने अपने बड़े भाई को निमन्त्रण दिया। कहते हैं, आगरा पहुंचनेपर मुरादका शिर किया। पासके तम्ब में कुछ आदमी छिपा रखे | काट लिया गया था। गये, इशारा पाते ही वे औरङ्गजेवका शिर उतार . औरङ्गजे.बने देखा-यदि अभी सिंहासन अधि- लेते। स्वभावतः, मुराद अकपट उदार पुरुष रहे। कार नहीं करता, तो फिर लोग पूरे सौरसे मुझे न शत्र मित्र सबके साथ वह समान व्यवहार करते मानेगे, अनेक आदमी अनेक प्रकारको बात कहेंगे। थे। इसोसे औरङ्गजे.ब नि:शक निमन्त्रण पूर्ण करने पारिषद भी समझ गये-औरङ्गजेब जो रात दिन गये। दोनों भाई भोजन करने बैठे थे। उमो समय धर्मको दुहाई दिया करते हैं, यह केवल पावण्ड है; नाजिरने आकर मुरादके कानमें कुछ कहा। खल पिता और माताओं को राज्यसे वञ्चित करना हो विद्यामें औरङ्गजे.ब इष्टगुरु थे। दोनों का रङ्गटङ्ग उनका अभिप्राय है, अतएव मनमानी करनेसे हो देखकर इनके मनमें सन्देह उठ खड़ा हुआ। इन्होंने वे सन्तुष्ट होंगे। यह सोच सब कोई इनसे यथाविधान कातरताके साथ मुगदमे कहा,-"भाई! आज राज्यमें अभिषिक्त होनको अनुरोध करने लगे। पहले आमोद न होगा। मेरे पेटमें बहुत दर्द हो रहा | है। तुम सब तय्यारी कर रखना, मैं कल फिर पाखंगा।" इतना कह ये झटपट तम्ब से बाहर निकल अपने शरीर रक्षकों के पास चले पाये। - बहाना करके औरङ्गजे.व तीन चार दिनतक चारपाई पर पड़े रहे। पेटपौड़ाको चिकित्सा होने सगो। मुरादका मन सरल था ; उन्होंने समझा- सचमुच ही दहुधा है, इसमें कोई चातुरी नहीं है। तीन चार दिनमें दर्द दूर हो गया। पौरङ्गजे.बने मुरादको कहता भेजा,-"माई! उस दिन वैसे औरङ्गजे.व बादशाह। उद्योगमें मैंने व्याघात लगा दिया था। इसलिये मेरे उदासीन . भातिको बहुत कुछ आपत्ति करके पोके मनमें अत्यन्त कष्ट हुपा है। जो हो, आज मेरे यहां इन्होंने कहां-"देखता हूं, तुम लोग अपने सुख-चैनके तुम्हारा निमन्त्रण है। कई सुन्दर सुन्दर नाचने और लिये मुझे संसार त्याग करने न दोगे। अच्छा, न दो; गानेवाली आई हैं। उनका रूपयौवन स्वर्गको संन्यासौ लोग निजन गिरिगुहामें बैठकर जो शान्ति- विद्याधरीसे भी अधिक है। "सुख लाभ करते हैं, ईश्वर करे, इस राजसिंहासन मुरादक पारिषदोंने बहुत समझाया-निमन्त्रणमें पर बेठ मैं भी वही सुखभोग करूं। यह बात जानेसे विपद हाथोंहाथ है। परन्तु मुरादने किसोको सच है, कि राजकाज देखने में ईश्वरको चिन्ता भोन मुनी। शरीररचक बाहर रहे, मुराद चार | करनेका अवसर न मिलेगा, परन्तु कामसे काम है।