पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७२

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औरङ्गजेब ५०१ इसमें कुछ भी सन्देह नहीं, कि दिल्लीका अधोखर लोभ पैदा हुआ। इसोसे अनेक प्रकारका बहाना बता हो मैं बहुत सत्कर्म कर सकूगा। लोगोंको इस। पाश्चित राजकुमारको उन्होंने अपने राज्यसे निकाल तरह समझा बुझा १६५८ ई०को दूसरी अगस्त को दिया। शुजाने अपने परिवार और अनुचरवर्गके साथ दिल्लोके निकटवर्ती एक सुन्दर उद्यान में औरङ्गजेब पर्वत के एक खड़में जाकर प्राश्रय लिया। वह खान यथाविधान राजसिंहासनपर अभिषिक्त हुये। अत्यन्त दुर्गम था। दोनों ओर पहाड़ और बग में ___ औरङ्गजेब के बादशाह होने की खबर वङ्गदेशमें खड़ था। नोचे वेगवती नदी कल कल करतो हुई बह पहुचो। शाहशुजा पुनर्वार समरसज्जाकर प्रयागके रही थी। उसो दुर्गम स्थानमें अराकानके राजाकी सेना पास पहुंच गये। औरङ्गजे.ब ससैन्य उनको गति आकर शुजा और उनके साथियोंपर बाग्मष्टि करने रोकने आये । एक ग्राममें घोर युद्ध हुआ। उस दिनके लगी। किमी किसोने पहाड़परसे बड़े बड़े पत्थर लुढ़का बुहमें यदि शाहशुजा थोड़ा और सुस्थिर रह जाते, दिये। शाहशुजाने बहुत देरतक प्राणपणसे युद्ध तो सौभाग्यलक्ष्मी उन्होंपर प्रसन्न होनौं। औरङ्गजे.ब | किया, अन्त में एक बड़े भारी पत्थरके टकड़े को चोटसे जिस हाथोपर चढ़कर युद्ध कर रहे थे, अस्त्राघातसे अभिभूत हो गये। राजाके सिपाहियोंने उन्हें और उसका पैर टूट गया। शुजाका हाथी भी घायल | उनके दो अनुचरों को एक डोंगीपर चढ़ाकर बीच हुआ। दोनों पादमौ अपने अपने हाथीसे उतरकर नदीमें छोड़ दिया। प्रवल स्रोतमें वे लोग तैर कर दूसरेपर चढनेका उपक्रम करने लगे। उसी वक्त बाहर न जा सके, दो एक बार अङ्ग प्रास्फालन कर -मोरजुमलाने औरङ्गजे.बसे कहा,-"प्रभो! इस समय अन्त में डूब गये। हाथोसे उतरने में राज्य गया हो समझिये। औरङ्गजे.ब! उसके बाद सिपाही नोग शुजाके पन्धान न उतरे; परन्तु शुजाःहाथीसे उतर घोड़ेपर सवार अनुचरोंको विनष्ट कर उनको स्त्री, तीनों कन्यावों हुए। सिपाही लोग मालिकको न देख इधर उधर और दोनों पुत्रांको पकड़ राजाके पास पहुंचाया। भाग गये। राजाने स्त्रिया को अन्तःपुरमें रखा था। किन्तु शुजा वङ्गदेश लौट आये। किन्तु औरङ्गजे.बके हतभाग्य दोनों बालक मारे गये। शुजाको पी -बड़े लड़के मुहम्मद और वजीर मौरजुमलाने उनके सुलताना प्यारी-बानो परम सुन्दर थी। वे पोछे पड़ बङ्गदेशसे भी उन्हें खदेड़ दिया। भारत उस समयके रमणोकुलको अलङ्कार स्वरूप थीं। में भागनेका दूसरा कोई स्थान नहीं था। जहाँ तैमूर-कुलवध और तैमूर-कुलकन्याके चरित्र में बलर जाते, वहाँ औरङ्गजेबको पताका फहराती हुई पाते।। लगनेसे मृत्य ही अच्छा था। किन्तु शव को पन्तमें बहुत कुछ सोच विचार कर शुजा अराकान गये।। विना मारे मर जाने में मरने की मर्यादा हो क्या! उनके साथ बहुमूल्य रब और प्रायः डेढ़ हजार इसलिये प्यारो बानाने अपने कपड़ेमें एक छुरी छिपा आदमी थे। किन्तु अराकानको श्राबहवा बहुत हो रखो। पिशाचवृत्ति राजाके आनेपर उसोसे वह उनका -खराब होनेसे डेढ़ हजार आदमियोंमें धीरे धीरे प्रायः प्राण विनष्ट करना चाहती थीं। परन्तु दासियाको सभी मर गये। केवल शाहशुजा, उनकी दूसरी स्त्री, किसी तरह यह भेद मालम हो गया। उन्होंने कुरी दो लड़के, तीन लड़कियां और चालीस नौकर जीते छीन ली। फिर और कोई उपाय न रहा। इसलिये बचे। विधाताके विमुख होनेपर चारो ओरसे उन्होंने अपना मुंह नोच डाला। मुख चन्द्रका विपद् उमड़ पाती है। पराकानके राजा एक तो सौन्दर्य कम पड़ गया। उसके बाद एक पत्थरपर औरङ्गजे.बके डरसे सदा शक्ति रहते थे, दसरे शुजाको। थिर पटक पटक कर प्यारी बानोने प्राणत्याग कर रूपवती कन्यापर उनको दृष्टि पड़ी; तीसरे साथमें दिया। शुजाको दो लड़कियां विष खाकर मर गई। - बहुमूल्य जो होरा मोती थे, उन्हें भी छीन लेनेका बाकी एक लड़की भी अधिक दिन जो न सकी। ::