पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८२

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५८१ औषधो-औशिन है। औषधि वीर्य बल एवं गुणके उत्कर्षसे रसको । पौष्ट्रक (सं० ली.) उष्ट्राणां समूहः, राष्ट्र-वुन । दबा अपना काम करता है। (मुचुत ) गोबोटोवराजराजन्येति । पा || १ उष्ट्र-समूह, बंटका औषधी, औषधि देखो। मुंडा (वि.) उष्ट्रस्येदम। २ उष्ट्रसम्बन्धीय, ऊंटसे पौषधोपञ्चामृत (सं० क्लो०) अमृत जैसी पांच औषधी, सरोकार रखनेवाला। • बहुत उम्दा पांच जड़ी-बूटी। गुड़ची, गोक्षुर, सुषलो, पौष्ट्रक्षोर (सं० लो० ) उष्ट्रोदुग्ध, उंटनीका दूध ! यह मुण्डो और शतावरी पांचोंको औषधीपञ्चामृत, रुक्ष, उष्णु, किश्चित् लवणरस, स्वाटु, लघु श्री कहते हैं। गुल्म, उदर, अर्थः, कमि, कुष्ठ एवं विषविनाशक है। औषधोपति (सं० पु०) औषधीका राजा सोम। औष्ट्रतक्र (सलो .) उष्ट्री-दुग्ध-जात घोल, उंटनौके औषधीय (सं.वि.) शाकलता-सम्बन्धीय, नबातातो, दूधका मट्ठा। यह विरस, गुरु, हृद्य, दोषल और जड़ीबूटीसे सरोकार रखनेवाला। पौनस, खास तथा कासके लिये हितकारक होता औषधेनव-संस्कृतके एक प्राचीन विद्दान्। सुश्रुतने है। (वैद्यकनिघए) इनका वचन उहत किया है। पौष्ट्रनवनीत (सं० ली.) उष्ट्रीदुग्धजात नवनीत, पौषर (सं० लो०) उपर भवम्, उषर-अण । १ पांश- उटनोके दूधका मक्खन। यह लघुपाक, शीतल और लवण, शोरा। २ मृत्तिकालवण, रेहका नमक। व्रण, क्वमि, कफ, रत्तदोष, वात एवं पित्तन है। ३ सैन्धवलवण । यह क्षार, तिक्त, वातकफन्त्र, विदाही, (राबनिघर) पित्तक्कत, ग्राही और मूत्रशोषक होता है। (राजनिघए) औष्ट्रमूत्र (म. ली.) उमूव, शतरका पेशाब । औषरक पौषर देखो। यह उमाद, शोफ, अशः, कमि, शूल और उदर व्याधि अषस (सं.वि.) उपसि भवः, उषस्-अण्। १ उषा- दूर करनेवाला है। (मदनपाल ) कालोत्पब, नो सवेरे पैदा हो। २ उषासम्बन्धीय, ओष्ट्ररथ (सं.वि.) .उष्ट्ररथस्वेदम्, 'उष्ट्ररथ-पत्र । सहरी, सिदौसी। पवपूर्वादन । पा ४।३।१२। उष्ट्ररथ सम्बन्धीय, जटगाड़ीसे औषसिक (सं० वि०) उपसि भवः, उषस्-ठन् । सरोकार रखनेवाला। उषा सम्बन्धीय, सहरी, सदौसी। पौष्ट्राचि (सं० पु०) गुरु, उस्ताद, सिखाने-पढ़ानेवाला। षिस्त (सं. वि०) उषस्तेरिदम्, उषस्ति-पण्। औष्ट्रायण (सं० पु.) उष्ट्रस्थापत्यम्, उष्ट्र-फक् । .१ उपस्ति ऋषि-सम्बन्धीय। (लो०) २ छान्दोग्य | उष्ट्रवंशीय। उपनिषतका उपस्ति-चरित नामक ब्राह्मण काण्ड। भौष्ट्रिक (स.वि.) उष्ट्र भवः, उष्ट्र-ठक् । राष्ट्रजात, पौषस्त्य, पौरस्त देखो। जंटसे पैदा। औषिक (स.वि.) उपसि भवः, ठज। १ उषा-ौष्ठ (सं.वि.) पोष्ठवदाकारोऽस्त्यस्य, पोष्ठ-अण। कालोत्पब, सवेरे पैदा होनेवाला। २ उषाकालको | पोष्ठके आकारसदृश, होंठ-जैसा बना हुआ। भ्रमण करनेवाला, जो सवेरे बाहर निकलकर प्रौष्ठा (सं० त्रि०) पोष्ठे भवः, पोष्ठ-यत् स्वार्थे प्रण। टहलता हो। १पोष्ठजात, होठसे निकलनेवाला। (को०)२ भौषिज (सं.वि.) इच्छक, खाहिशमन्द। प्रोष्ठके द्वारा उच्चार्य वर्ण, होंठसे निकलनेवाला हर्फ । औषौज, औषिन देखो। उ, ऊ, ओ, औ, प, फ, ब, भ और म वर्ण पौष्ठय है। .. पौष्ट्र (सं• वि.) उष्ट्रस्य इदम्, उ-अण्। उष्ट्र- औष्णा (स. क्लो०) उष्णस्य भावः, उष्ण-अण् । संम्बन्धीय, मंटसे सरोकार रखनेवाला। २ उष्ट्रयुक्त, १ उष्णता, गरमौ। २ उत्ताप, धूप। ३ सन्ताप ऊंटोसे भरा हुआ। (को०) ३ उष्ट्रप्रवति, ऊंटको | बुखार। कुदरत या जात। पौष्णिज (सं० ली. ) उणिज स्वार्थे पण । १ पगड़ी, _Vol. III. 146