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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८१

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१८. औषधकाल-औषधिवौर्य औषधके सेवनमें मात्राका कोई नियम निर्दिष्ट औषधिप्रतिनिधि (सं० पु० ) न मिलनेवाली औषधिक नहीं। दोष, अग्नि, बल, वयस, व्याधि, द्रव्य स्थानमें समगुण द्रव्यान्तरका ग्रहण, हासिल न होने- पौर कोष्ठको देख मात्रा ठहराना पड़ती है। वाली जड़ी-बूटी को जगह दूसरी चीजका लिया पौषध-परीक्षा प्रकृति अन्यान्य विषयको परिभाषा देखी। जाना। मेदाके अभावमें अश्वगन्धा, महामदाके २ विष्णुका नामान्तर। (त्रि०)३ ओषधिजात, अभावमें शारिवा, जीवकर्षभकाके अभावमें गुड़ची, जड़ीबूटोसे बना हुआ। चित्रकके अभावमें दन्ती वा अपामार्गका क्षार, औषधकाल (सं० पु०) औषधसेवनका समय, दवा, धन्वयासाके प्रभावमै दुरालभा, तगरके अभावमें कुष्ठ, खानेका वक्त। यह दश प्रकारका होता है, निर्भक्त, | मुर्वाके अभावमें जिङ्गिनीत्वक, अहिंसा-लक्षणाके प्रारभक्त, अधोभक्त, मध्येभक्त, अन्तराभक्त, सभक्त, अभावमें मानकमय ग्पुच्छ, वकुलके अभावमें कल्हा- सामुद्र, मुहमहुग्रसि और ग्रासान्तर। वे खाये | रोतपलपंझ, नीलोत्पलकै अभावमें कुमुद, जातीपुष्यके निर्भक्ता, खानसे पहले प्रा भक्त, खानेके बाद अधोभक्त, । प्रभावमें लवङ्ग, अर्कादिक्षीरके अभावमें उसके पत्रका खानेके बीच मध्येभक्त, दोनो समय खानेके बीच रस और पुष्करमूल एवं लाङ्गलको ग्रन्थिके प्रभावमें अन्तराभक्त, खाने में मिलाकर सभक्त, खानेके पहले कुष्ठ डालते हैं। (भावप्रकाश ) फिर चविका न मिलनेसे और पीछे सामुद्र, बेखाये या खाये बारबार मुहु गजपिप्पली, सोमराजो न मिलनसे चक्रमर्दफल, दारू म सुग्रसि और कौरकौर पर लिया जानेवाला प्रौषध न मिलनेसे हरिद्रा, रसाञ्जन न मिलनेसे दारूक्वाथ, प्रासान्सर कहाता है। निर्भव वीर्य बढ़ाता, प्रागभक्त सौराष्ट्रमृत् न मिलनेसे फटिकारी, तालोश न मिलनेसे शीघ्र अन्न पचाता, अधोभक्त बहुविध रोग मिटाता, स्वर्णताली, भार्गी न मिलनेसे तालीश वा कण्टकारी- मध्ये भक्त मध्य देहके रोग दबाता, अन्तरामत हृद्यता मूल, रुचक न मिलनेसे पांशुलवण, यष्टीमधु न साता और सभक्त सब रोगियों के लिये पथ्य समझा मिलनेसे धातकीपुष्प, अम्लवेतस न मिलनेसे चुक्र, जाता है। द्राक्षा न मिलनेसे गाम्भारोपुष्प, गाम्भारोपुष्य न पौषधाजीव (सं० वि०) औषधेन आजीवति, औषध- मिलनेसे पीतशालपुष्य, नख न मिलनेसे लवङ्ग, पा-जीव-पच। औषधविक्रेता, दवाफरोश, जो दवा कस्तुरी न मिलनेसे काकोलो, काकोली न मिलनेसे बेचकर अपना काम चलाता हो। जातीपुष्प, कपूर न मिलनेसे ग्रन्थियों वा सुगन्धि- पौषधालय (सं० पु.) औषधानां पालयः, ६-तत्।। मुस्तक, कुङ्कुम न मिलनेसे कुसुम्भ, श्रीखण्डचन्दन औषधभाण्डार, दवाखाना। जिस स्थानमें नानाविध न मिलनेसे कपूर, श्रीखण्डचन्दन एवं कपूर दोनों औषध विक्रय के लिये सर्वदा प्रस्तुत रखते, उसे औषधा | न मिलने से रक्तचन्दन, मधुन मिलनेसे जीणं गुड, सय कहते हैं। पुरातन गुड़ न मिलनेसे यामचतुष्टयशुष्क गुड़, क्षार औषधि (स. स्त्री०) श्रा-पोषधिः। १ सम्यक म मिलने से मौह मासुर रस, शर्करा न मिलनेसे खण्ड, भोषधि, अच्छी जड़ी-बूटो। २ गुड़ची, गुर्च । ३ राना। शालिं न मिलनेसे षष्टिक, दाडिम न मिलनेसे वृक्षाम्ल, " दूर्वा, दूब । ५ खेतदूर्वा, सफेद दूब । ६ हरीतकी, सौराष्ट्रमृत न मिलनेसे पपर्पटी. लौह न मिलनेसे हर। ७ मद्य, शराब। ८ पौषध, दवा। ८ फल लौहका मल, चव्यगजपिप्पली न मिलनेसे पिप्पली- पाकान्त वृक्षादि, फल पकते ही मर जानेवाला मूल और, मुजतिका न मिलनेसे तालमुस्त वा माजुफल ग्राह्य है। (परिमाषाप्रदीप) पौषधिगन्ध (सं० पु०) आघ्राणसे ज्वरादिकर औषधिका | पौषधिवीय (सं० लो०) शीतोष्यादिरूप औषधिका गन्ध, जिस जड़ी-बूटोको खुशबूसे बुखार वगैरह। वीर्य, जड़ीबूटीको ताकत। यह शौत, उष्या, रुक्ष, बीमारी लगे। .... | सिग्ध, तौल्य, मुटु, पिच्छल, तीव्र और विशद होता पौदा।