पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८४

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अ:-क ५८३ इसके सिखनको प्रणाली-प्रकारको दिक् सवे और विसर्ग, दो विन्दुमात्र। सबके मतसे अध: दो विन्दु लगाना है। इसकी सकल रेखावों में यह षोड़श स्वरवर्ण है। अकारके उच्चारणसे इसका ब्रह्मा, विष्णु और महेश अवस्थान करते हैं। मावा उच्चारणस्थान भी कण्ड है। पाणिनिके मतमें यह भक्ति और विन्दुदय-युक्त रेखा आद्याशक्ति है। वर्ण अयोगवाह है। मुग्धबोध इसका नाम 'वि:' (वर्षोंचारतन्त्र ) लिखता है। स् और रके स्थानसे इसकी उत्पत्ति इसका तन्मशास्त्रोक्त नाम-अः, कण्टक, महासेन, होतो है। कामधेनुतन्त्रके मतसे-कार परमेश, कलापूर्णा, अमृता, हरि, इच्छा, भद्रा, गणेश, रति, रक्तवर्ण, विद्युत्तुल्य, पञ्चदेवमय, पञ्चप्राणमय, सर्व विद्यामुखी, सुख, विविन्दु, रसना, सोम, अनिरुद्ध, ज्ञानमय, आमादितत्त्वसंयुक्त, मूर्तिमान् कुण्डली, दुःखसूचक, द्दिजित, कुण्डल, वच, सर्ग, शक्ति, निशा- विन्दुनय-विशिष्ट एवं शक्तित्रययुक्त है। यह सकल कर, सुन्दर, सुयशा, अनन्ता, गणनाथ पौर महेश्वर है। . शक्ति किशोरवयस्का शिवपनी समझ पड़ता है। (पु.)२ महेश्वर। क-व्यञ्जन वर्णो का प्रथम अक्षर। इसको वाम रेखा | चन्द्र समवर्ण है। शून्यके गर्भ में कैवल्यप्रदायिनी ब्रह्मा, दक्षिण रेखा विष्णु, अधो रेखा रुद्र, मात्रा सर काली अवस्थान करती हैं। ककारसे हो समग्र काम, स्वती अङ्कुशाकार रेखा कुण्डली और मध्यस्थ शून्य कैवल्य, अर्थ और धर्म उत्पन्न होता है। ककार ही स्थान सदाशिव है। (वर्षोद्धारतन्त्र ) ककारका तन्त्र सर्व वर्णको मूल प्रकृति, कामदा, कामरूपिणी. शास्त्रोक्त नाम क्रोधी, ऐश, महाकाली, कामदेव, प्रका अव्यया, कामनीया प्रभृति सुन्दरो और सर्व देवगणकी शक, कपाली, तेजस, शान्ति, वासुदेव, जप, अनल, माता है। ककारके ऊर्य कोणमें कामा नानी ब्रह्म- चक्री, प्रजापति, सृष्टि, दक्षिणस्कन्ध, विसाम्पति, शक्ति,वाम कोणमें ज्येष्ठा नात्री विष्णुशक्ति और दक्षिण . अनन्त, पार्थिव, विन्दु, तापिनी, परमात्मक, वर्गाद्य, कोणमें विन्टुनानौ सहाररूपिणी रोट्रयक्ति रहती है। मुखो, ब्रह्मा, सखाद्य, अम्भः, शिव, जल, माहेश्वरी, | ककारस्थ देवोंमें ब्रह्मा इच्छाशक्तिमान्, विष्णु ज्ञान- तुला, पुष्पा, मङ्गल, चरण, कर, नित्या, कामेश्वरी, शक्तिमान् और रुद्र क्रिया-शक्तिमान हैं। प्रात्मविद्या, मुख्य, कामरूप, गजेन्द्रक, स्त्रोपुर, रमण और रङ्ग-1 मङ्गल और मन्त्रका अवस्थान सर्वदा ककारमें देख कुसुमा है। पड़ता है। जवा, अलतक, एवं सिन्दुरसम रक्तवर्णा, कामधेनुतन्त्र में इस प्रकार ककारतत्व कहा है, चतुर्भुजा, त्रिनेत्रा, कदम्ब कोरकाकति स्तनदयविशिष्टा 'ककारको वामरेखा जवापुष्य एवं अलताक वर्ण, और रत्न, कङ्कणा, केयर, अङ्गद, रबहार तथा पुष्प- दक्षिण रेखा शरच्चन्द्र तुख्य, अधोरेखा मरकत-प्रभ, हारादिशोभिता कामिनीको ध्यान कर दशवार ककार माना शकुन्दसदृश एवं साक्षात् सरस्वती, अङ्गशा- जपनेसे इष्टसिद्धि होती है। क्वति कुण्डली कोटिविद्युनताको भांति प्राकार- २ धातुका अनुबन्धविशेष । 'क' अनुबन्ध रहनेसे विशिष्ट और मध्यदेशका शून्यवान सदाशिव कोटिः | धातु चुरादि-गणोय समझा जाता है। कन रादिः ।