५८२ कंसवतो-ककड़ो रहस, महली, चौकी। इसमें कई बाजे एक साथ ! कसुली (हिं. स्त्री०) कांसेका एक पांसा, छोटा बजाये और मिलजुलकर गौत गाये जाते हैं। कसवती (स. स्त्री०) कसको भगिनी और वसु- कसुवा (हिं. पु०) कोटविशेष, एक कोड़ा। यह देवको कनिष्ठा पत्नी। जखमें लगता है। कोमल वृक्ष इसके पाक्रमणसे मर कसवांस-उड़ीसेके बालेखरप्रान्त में प्रवाहित एक नदी।। जाते हैं। यह नदी वीरपाडेसे दोधार हो ओर क्रमागत दक्षिण-कंसोद्भवा (सं० स्त्री०) कंसात् धातुविशेषात् उद्भवति, पूर्व पहुंच सागरमें मिल गयी है। लायचनपुर इसीके कस-उत्-भू-अच-टा। सौराष्ट्रमृत्तिका, एक खुशबू- मुहानेपर बसा है। दार मट्टी। इसका संस्कृतपर्याय आढ़की, तुवरा, कसहनन (सं. क्लो०) कससंहार, कंसका मारा | काक्षी, मृदास्या, सौराष्ट्री, पार्वती, कालिका, पर्पटी जाना। और सती है। वैद्योंने अनेक औषधों में इसका व्यव- कसहा (सं० पु.) कसं हतवान्, कंस-हन्-क्विप ।। हार करनेको उपदेश दिया है। किन्तु आजकल श्रीकृष्ण, कसको मारनेवाले भगवान्। | इस मृत्तिकाका एकान्त प्रभाव होनेसे परिभाषाके कसा (सं० स्त्री.) कसको भगिनी और उग्रसेनको। आदेशानुसार इसके बदले पापपैटी औषधों में कन्या। इनका विवाह देवभागके साथ हया था। डालते हैं। कसाराति, कसारि देखो। कक् (धातु) भ्वा० श्रात्म० अक० सेट् । 'कङिच्छ कंसार (सं० क्लो०) कसवत् पाकरमृच्छति, कस गचापल्ये।” (कविकल्पद्रुम) १ गर्व करना, मगरूर होना। ऋ-अण । अस्थि, कांसे जैसी सफेद हडडी। २चपल पड़ना.बेकरार बनना, बदल चलना। ३ इच्छा कसाराति (सं० पु०) क सस्य अराति: शत्र, ६-तत्। होना, ललचाना। भ्वा० प्राम. सक० सेट् । कसशत्र श्रीकृष्ण। “ककिच्छ वजने ।" ( कविकल्पद्रुम) ४ गमन करना, चलना। कसारि (सं० पु०) कसस्य अरिः शत्र:, ६-तत्। ककई ( हिं० स्त्री० ) १ कधी, दोनो ओर दांत रखने- श्रीकृष्ण। वाला छोटा ककवा। २ छोटो पुरानो ईट। कंसासुर (सं० पु.) कस नामक असुर। ककजाकत (सं० त्रि.) क्षतविक्षत, छांटा हुआ। कंसास्थि ( स० क्लो० ) कंसमस्थीव, उपमि० । ककड़ासौंगो (हिं० ) कर्कटशङ्गौ देखी। १ कांस्य धातु, कांसा। २ कसार, कांसे-जैसी सफेद | ककड़ी (हिं॰ स्त्री०) १ लताविशेष, एक बेल । इड्डौ। यह भूमिपर बढ़ती है। फाल्गुन-चैत्रको लगी कसिक (सं० त्रि.) कसेन पाठकमानेन पाहतम. ककड़ी वैशाख ज्येष्ठ मास फलती है। फल लम्बा कम-टिठन्। कंसाष्टिछन् । पा ५॥१॥२५ । १ कांस्यनिर्मित, और पतला रहता है। कच्ची खानेके अतिरिक्त काम से बना हुआ। २ एक प्राढ़क हारा पाहत, इसको शाकमें भी व्यवहार करते हैं। लखनऊको पाठ सेरसे लिया हुआ। ककड़ियां बहुत नरम, पतली और मोठी होती कसोय (सं० वि०) १ पानपात्रके उपयुक्त, प्यालेसे हैं। गुण शोतल है। इसका वीज ठंढाई में पड़ता सरोकार रखनवाला। (क्लो०) २ कांस्यधातु, कांसा। है। फिर वौजको सुखा और छील कर चौनौमें पाग केमुला (हिं. पु०) कसिका पांसा, किटकिरा। लेते हैं। यह द्रव्य खाने में बहुत सुस्वादु होता है। यह एक चतुष्कोण खण्ड होता है। इसके पाच (२) फट। यह बेल ज्वार और मके के खेतमें होती गोलाकार क्षुद्र गर्मो से पाच्छादित रहते हैं। स्वर्णकार है। फन लंबे और बड़े लगते हैं। भाद्र मास यह कंसुलेपर घुघरू वगैरहके बोरोंकी खोरिया तैयार ककड़ी पककर फूट नाती है। फट खाने में फीकी पड़ती करते हैं। है। प्रायः लोग इसे गुड़ के साथ व्यवहार करते है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५९३
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