पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५९५

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५६४ ककुङ्गिनौ-ककुप चोजके नाममें पहले 'क' अक्षर रहे। रक्तपित्तमें , ठाट-बाट। ४ पर्वताग्रभाग, पहाड़ को चोटी। कटक, कालशाक, कुष्माण्ड, कर्कटी, कर्कन्धु, । ५ दर्वीकर सर्पभेद, किसी किस्मका सांप। कौटक, कलिङ्ग, करमद, करीर, कतक, कशेक और ककुदकात्यायन (सं० पु०) ब्राह्मणविशेष, किसी कानिक वयं है। (भावप्रकाश ) ब्राह्मणका नाम। यह शाक्यमुनिके घोर प्रतिबन्दो थे। ककुङ्गिनी (सं० स्त्री०) ज्योतिष्मतीलता, रतनजोत । ककुदाक्ष (सं० त्रि.) ककुदं राजचि अक्ष्योति। • ककुञ्जल (सं० पु.) के जलं कूजयति याचते, क राजचिङ्गधारक, शाही निशान् रखनेवाला। कूज-अलच पृषोदरादित्वात नम, इखश्च । चातक- ककुदावत (सं० पु०) ककुदि आवर्तः, कर्मधा। पक्षी, पपीहा। वृषके ककुद-स्थलका रोमावर्तविशेष, बैल के कुब्बड़को ककुचला (सं० स्त्री० ) ककुचल देखो। भौंरी। ककुणक (स० पु. क्लो०) बालरोग विशेष, बच्चोंको ककुद्मत् (सं० पु.) ककुदस्त्यस्य, ककुद-मतुप । एक बीमारी। १वृष, बेल। २ पर्वत, पहाड़। ३ ऋषभक नामक ककुत् (सं० स्त्री०) के सुखं कारयति प्रापयति, वैद्योक्त द्रव्यविशेष, एक जड़ी-बूटी। ४ जर्मों, लहर । राहस्थान्विति शेषः, क-कु-णिच-विप तुगागमः इखश्च (त्रि.) ५ उत्तुङ्ग, ऊचा, चढ़ता हुआ। ६ ककुद- पृषोदरादित्वात्। १ वृषके पृष्ठदेशका अवयंव विशेष, युक्त, कुब्बड़ रखनेवाला । बैलके क'धेका कुब्बड़। २ ध्वज, निशान्। ३ छत्र- ककुद्मती (सं० स्त्री.) ककुदिव अभिशयितो मांस- चामरादि राजचिह्न, बादशाही ठाटबाट। ४ पर्वत- पिण्डोऽस्त्वस्याम्, ककुद-मतुप्-डोप । १ नितम्ब, शृङ्ग, पहाड़को चोटो। ५ दर्वीकर सर्पभेद, किसी | चूतड़। २ छन्दोविशेष । किस्मका सांप। ककुझान्, ककुमत् देखो। ककुत्सल (वै० लो०) ककुद् नामक स्थल अवयव- ककुझिन् (सं० पु०) ककुदस्त्यास्ति, ककुद्-णिनि । विशेषः पृषोदरादित्वात् साधुः। १ ककुदु नामक १ वृष, बैल। २ पर्वत, पहाड़। ३ विष्णु। ४ रेवत वृषावयव, बैलका कुब्बड़। राजा। इनके पिताका नाम रेवत रहा। बलदेव ककुत्स्थ. (सं० पु.) ककुदि तिष्ठतीति, ककुद-स्थ- ककुद्मौके जामाता थे। क। सूर्यवंशीय पुरचय नामक एक राजा। इनके | ककुझिसुता (सं० स्त्री०) ककुशि रेवतस्य सुता, पिताका नाम शशाद रहा। पुरञ्जयके राज्यशासनकाल ६-तत्। रेवती, कृष्णाग्रज बलदेवको भार्या । स्वर्गमें देवोंने दैत्योंसे हार विष्णुका आश्रय पकड़ा ककुद्दत् (सं० पु०) वृषभ, कुब्बड़वाला बैल या भैंसा । था। विष्णुने उन्हें पुरञ्जयसे साहाय्य लेनेको ककुद्दती (सं० स्त्री० ) प्रद्युम्न को भार्याका नाम । सिखाया। उसोके अनुसार देवतावोंने इनसे श्रा- | ककुद्दान्, कुइत् देखो। प्रार्थना की थी। यह भी सम्मत हुये और वृषरूपी ककुन्दर (सं० लो०) कस्य शरीरस्य कु. अवयव इन्द्रके ककुद् स्खलपर चढ़ युद्धको चले। इन्होंने विशेषं दृणाति, ककु-ह-खच-नुम। १नितम्ब स्थलके उस युद्ध में समग्र दैत्योंको हराया था। इसीसे देव उभयपावस्थ गतेदय, कलेके गड्डे। २ वृक्षविशेष, तावोंने प्रोत हो इनका नाम ककुत्स्थ रख दिया। पेड़। यह क , तिक्त, ज्वरघ्न, उष्णक्वत् और रक्त (भागवत सा११) एवं कफदाहके दोष मिटानेवाला होता है। ककुद, ककुत् देखो। . ककुन्दरका आ, मूल मुखमें रखनेसे मुखके सब रोग ककुद (सं० पु. लो०) के मुखं कौति सूचयतीति, नाश हो जाते हैं। (वैद्यकनिघए ) क-कु-क्किप-तुक् । १ वृषका अवयवविशेष, बेलका ककुम्मत, बकुमत् देखो। कुब्बड़। २ प्रधान, मुखिया। ३ राजचिन, शाही | ककुप् (सं• स्त्री०) क-स्कुभ-क्किए। १ दिक, मोर,