कङ्कणपुर-कदमुख ५५९ रंगा जाता है। विवाहमें वर और कन्या दोनों एक | प्रसाधनो, कस्तो, ककृत, प्रसाधन, केशमार्जन, फली, मरेका कण छोरते हैं। कण छोर न सकनेसे फलिका और फलि है। मत देखो। २पतिबला, मूर्खता प्रमाणित होती है। ३भूषणमात्र, कोई बरियारी। ३ नागबला। महना। ४ शेखर, चोंटी। ५ हस्तीके पदका एक ककृती (स. स्त्रो०) कत-डोष् । प्रसाधिनी, कंधो। भूषण, हाथोके पैरका कड़ा। | कस्तीका बातिका देखो। कायपर (सं० को०) मगरविशेष, एक शहर। कडवोट (म.प्र.) कन्वत श्रोति ---- कणवर्षसे कणपुर नाम पड़ा है। णिच-पच्, कात् पचिविशेषात् प्रामानं चासोति वा, कहयप्रिय (सं० पु.) शिवके एक अनुचर। कह-वा-पटन् पृषोदरादित्वात् । १ बसव्यध मत्य वाल्पभूषण (सं.वि.) पलङ्कारादिसे विभूषित, एक मछली। २खनिय मत्स्य । चमकदार गहने पहने हुमा। कचोटि (सं० पु.) कस्य वोटिरिव वोटियधुर्य, काणमणि (सं० स्त्री० ) करभूषणका रन, चूड़ीका | मध्यपदलो। कहबोट देखो। नगीना। | कइद (सं० क्लो०) सुवर्ण, सोना। कहाणवर्ष (सं० पु.) १ रसन्नविशेष, एक कोमयागर। कश्पक्ष (सं० क्लो. ) कस्व पक्षम्, इ-तत्। कर- २राजा क्षेमगुप्त। पक्षीका पालक, बूटोमारका पर। कणिन् (सं• वि.) कणसे विभूषित, जो चूड़ी | कापत्र (सं• पु०) कस्य पक्षिविशेषस्व पत्रमिद पहने हो। पहें यस्य। १ वाण, तोर। २ कापचोका पद, कहयो (सं स्त्री.) को गमने प्रणति शब्दायते, बृटोमारका पर । का-प्रण-पर-डोष ; कं इति कति, कम्-कण कङ्कपत्री (सं० पु.) काम पवमखास्तीति पचाद्यच् डोष् इति वा। क्षुद्रघण्टा, घुरू। । कह-पत्र इनि। वाण, सोर। करणोका (सं० स्त्री० ) पुन: पुन: कणति, कण-यङ | क सं० स्त्री०) पुनः पुनः कणति, कण-यङ कङ्कपर्वा (स.पु.) ककवत् पर्व पख। सर्पविशेष, (लुक्)-ईकन् धातोः कन्यादेशश्च । १द्वण्टा.एक सांप। घुघुरू। २ कटिभूषणविशेष, करधनी । इसमें चांदीके | कपुरी (सं. स्त्री०) के सुखं कायति सूच्यति, छोटे-छोटे घुघुरू लगे रहते हैं। कर्मधा। काशीपुरी, वाराणसी। ककृत (सं० क्लो.) कङ्कत शिरोमलं प्राप्नोति, ककि- कजपुरोष (सं० को०) कविष्ठा, बूटोमारकी मेंमनो। असच । १ केशमान, कंघा, ककवा। या धलि,| यह व्रणदारण होता है। (सवत ) बन्तु, मल, कण्डू और शिरोरोगको दूर करता है। कभोजन (सं० पु०) अर्जुन वृक्ष। कंघो कान्ति चढ़ाती, कण्ड मिटाती, मू रोग हटातो, कश्माला (सं० स्त्रो०) कझं करचापच्चं मलते धारयति, केश बढ़ाती और रजोजन्य मल छोड़ाती है। (राजबलभ) | कह-मल-अच्-टाप । करताली। २ वृक्षविशेष, एक पेड़। ३ अल्पविष प्राणिविशेष, कामुख (सपु.) कस्य मुखमिव मुखं यख । एक जहरीला जानवर। १सन्दंश, सनमो। २ अस्थि में प्रविष्ट शसके उबारका कातदेही (सं० पु-स्त्री.) प्राणिविशेष, एक जान एक यन्त्र, हड्डों में लगा तौर वगैरह निकालनेका वर। अंगरेजो भाषामें इसका नाम सिडिप (Cydippe)| एक औज़ार। इस यन्त्रका अग्रभाग कर परोके है। पाचति अपिण्ड जैसी होती है। फिर मुख-जैसा होता है। मयूराति कीलक द्वारा कल- उसपर कहतको भांति रेखायें रहती हैं। मुख भावह रहता है। सुश्रुतमें प्रयान्च यांची कातिका (सं. स्त्री.) कस्त-डोष् स्वार्थे कन्| अपेक्षा इस यन्त्रका उत्कर्ष वर्षित -मुख्यच प्रसव केशमाजमो कंधो। संस्कृत पर्याय सहज हो भीतर घुस समार-पूर्वक विजय पाता
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६००
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