१२९ अनेक मूति योंके मस्तक और बाहु तोड़ डाले हैं। मध्यमें विरूपा नदी द्वारा दो स्वतन्त्र पर्वत हो गये स्थानीय हिन्दू सकल मूर्तियोंको पूजा करते हैं। इसी हैं। मातकदनगर परगनेके उत्तर-पश्चिम कोषमें वनमें एक बड़े तोरणका भग्नावशेष विद्यमान है। इसको अवस्थिति है। यहां चन्दन वृक्ष भित्र दूसरा तोरणके सम्म ख एक वृहत् बुद्धमूर्ति ध्यान-निमोलित कोई बड़ा पेड़ नहीं होता। इसके निम्न शृङ्गपर नेवसे बैठी है। तोरणका गठन अति चमत्कृत और अति प्राचीन ग्रहादिका ध्वंसावशेष पड़ा है। पूर्व- तोन सुवृहत प्रस्तरोंसे गठित है। मनोयोगपूर्वक कालको यही बौडकि मन्दिर-रूपसे सुशोभित था। देखनसे प्राचीन शिल्पक नैपुण्खका बहुतसा परिचय मण्डप बिलकुल नष्ट हो गया है। प्रस्तरके सकल मिलता है। तोरण सीधे प्रस्तर पांच स्तवकों स्तम्भ ८ फोट उच्च हैं। उन्हीं के निकट देवदेवीको में विभक्त हैं। स्तवक देखनेसे समझते, मानो। मूर्ति है। इसी ध्वंसावशेषके पास मुसलमानोंका तोरण बने एक ही दो दिन हुये और उनके भीतर एक टा कबरस्तान लक्षित होता है। सम्भवतः सहस्रो नील पद्म खिले हैं। इसकी इयत्ता कर नहीं बौद्दोंके मन्दिर तोड़ यह कबरस्तान बनाया गया सकते-कितने यत्नसे पद्म काटे गये हैं। द्वितीय होगा। मन्दिरका मण्डप नहीं, गृह आज भी विद्य- स्तवक में सशस्त्र नरनारोको कितनी ही मूर्ति हैं। मान है। उसकी चारो ओर प्राचीर है। मध्यमें मध्य-स्तवकमें कुसुमको माला विभूषित है। चतुर्थ अनेक अलकृत बुद्दमूर्ति देख पड़ती हैं। स्थानीय स्तवक में एक दूसरेका हाथ पकड़े पुरुष और रमणी- लोग इन सकल मूर्तियोंकी अनन्त पुरुषोत्तम की मूर्ति दण्डायमान हैं। सभी मूर्तियां फूलको कहते हैं। मालासे आबद्ध हैं। शेष स्तवक देखनेसे नयन और नलती गिरिका उच्चतर शृङ्ग उचाईमें सहस्र मन दोनों प्रसन्न हो जाते हैं। कुसुमका चित्र कैसा फौट है। इस शृङ्गपर प्रस्तर निर्मित एक वृहत् मन्दिर सुन्दर है ! सोचनेसे हृदय फल उठता-इस निजन रहा। आजकल उसका चिह्नमात्र देख पड़ता है। वनमें किसने अभिलाषपूर्वक प्रस्तरको पुष्यको माला इसीके नीचे ५०० फीट पर हाथीखाल नामक एक पहनायी है। गुहा है। गुहाको छत टूट गयी है। यहां छह ____तोरणके आगे ११ हाथ चलनेपर एक क्षुद्र गृह बुद्धमूर्ति विद्यमान है। इन्होंके निकट प्राचीन कुटिल देख पड़ता है। एहको चारो ओर कंटीले पेड़ खड़े अक्षरों में खुदी बौद्ध धर्म प्रचारकोंको शिलालिपि मिली ' हैं। हमें ध्यानी बुद्धको एक प्रकाण्ड मूर्ति है। है। पास ही दो सिंहोपर शतदल-पासना सिंह- यह मूर्ति साढ़े ५ फीट ऊंची है। देवदेषी यमनों वाहिनी देवीको मूर्ति है। ने नासिका और दक्षिण हस्तको काट डाला है। अमरावती पर्वतको आजकल सब लोग घटिया प्रचल-वसन्त भी प्रसिया गिरिका एक शृद्ध है। पहाड कहते हैं। पर्वतके पूर्व पादेशपर प्राचीन इस शृङ्गके नीचे माझीपुर नगरका ध्वंसावशेष पड़ा दुर्गका भग्नावशेष देख पड़ता है। यह दुर्ग प्रस्तरसे है। पहले इस नगरमें स्थानीय राजा रहते थे। आज ऐसा दुर्भद्य किया गया, कि सातिशय प्रशंसनीय इवा. भी सोरण, प्रस्तरके उबत प्राइम और सदृढ प्राचीरका। है। पहले इसको अवस्था अच्छी रही। मध्य में सरकारी भग्नावशेष दृष्टिगोचर होता है। पूर्तविभागके लोगोंने इस दुर्गके पत्थर खोद राहमें बडदेही पसिया पर्वतका सर्वाच्च शृङ्ग है। इसके लगा दिये। इस भग्न दुर्गको एक पोर सुसज्जित पाददेशमें स्थानीय दुर्गाधिपसिका आवास रहा। इन्द्राणीको दो प्रस्तरमूर्ति हैं। अमरावतीपर आध- मुसलमानों और मरहठोंके समय यहां चिरस्थायी मौत लम्बा नीलपुष्कर (नोलपोखर) नामक एक बन्दोबस्त चलता था। वृहत् जलाशय भरा है। नसती गिरि भी असियाका एक अंश है। केवल महाविनायक वारणीवण्टा गिरिमालाका एक Vol. III. 158 ,
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६३०
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