कटक शृङ्ग है । यह शृङ्ग अति पूर्वकालसे शैवोंका एक पुण्य-। पत्र में कटकका उल्लेख मिलता है। भवगुप्तने ई०के प्रद तीर्थ स्थान समझा जाता है। आजकल वनसे | म शताब्द राजत्व किया था। अतएव उस समय आच्छन्न होनेपर पूर्वसौन्दर्य चला जाते भी दसके दल वही कटक विद्यमान रहा। ( Indian Antiquary. शैव-यात्री यहां पाते हैं। इस शृङ्गमें एक स्थान पर | Vol. V. 60.) कटक नगरसे डेढ़ कोस पूर्व चौहार शुण्डाकार हस्ती देख पड़ता है। इसे लाग महा नामक एक ग्राम है। सब लोग इसे कटक-चोहार विनायक वा गणेशमूर्ति कहते हैं। इसके ऊपर कहते हैं। किसी समय इस स्थानपर उत्कल राज्यको । बिनायकका मन्दिर है। पर्वतका दक्षिण मुख शिव | राजधानी रही। उत्कलको पञ्जोक मतमें इस नगर- और वाममुख गारीको भांति पूजा जाता है। इस को सर्पयन्नकै समय राजा जनमेजयने स्थापन किया स्थानस ३० फोट ऊंचे एक जलपपात है। उसीके | था। कटक-चौहार ही भवगुप्तके अनुशासनका कटक जलसे देवार्चना होती है। प्रपातके निकट शिवके समझ पड़ता है। पूर्वथा अाजकल न रहते भी अष्ट लिङ्ग विद्यमान हैं। परिदर्शन करनेसे बोध हाता-किसो समय कटक- कटक जिले में तीन प्रधान नदियां विद्यमान हैं। चाहार अधिक समृद्धिशाला रहा। इसो प्राचोन उत्तरमें कलुषनाशिनी वैतरणी, मध्यस्थल में ब्राह्मणो। नगरके पाखं पर कपालेखर नामक एक दुग है। और दक्षिण में महानदी बहती है। वैतरणी नदी। उत्कलराज चोड़गङ्गके समय इस दुर्ग में एक सुविस्तीर्ण महाभारतके समयसे पुण्यसलिला गङ्गाको भांति पूज- जलाशय खोदा गया था। आजकल भी स्थानीय नीय है। पञ्चपाण्डवने इसी नदीमें अा तर्पण और लोग उस जलाशयको चोड़गङ्गका पोखरा कहते हैं। अवगाहन किया। वैतरणी-प्रवाहित भूमिखण्ड को वर्तमान कटक नगरमें बड़वाटी नामक एक पूर्वकाल यज्ञीय देश कहते थे। उत्कल, कलिङ्ग और दुर्ग खड़ा है। ई०के १२श शताब्द राजा अनभोमने वैतरणी शब्द देखो। इन्हों तीन नदियों के गुणसे कटक बनवाया था। १७५०ई०को अहमदशाहके जिला शस्यशाली है। नदियां उच्च स्थानसे निम्न शासनकाल इस दुर्ग का उत्तर-पश्चिम प्राकार लगा भूमिको जातों अथवा अपर नदीको अपने में नहीं | और पूर्वे बोरण बना। दग प्रस्तरके दोहरे प्राचौरसे मिलातों। वह समतल भूमिपर बहतौं और शाखा घिरा है। चारो ओर गहरो खाई है। मध्यमें प्रस्तरका प्रशाखा फना कटक जिलेको सुजल एवं सुफल एक उच्च स्तम्भ खड़ा है। उसी पर जयपताका करती हैं। इस जिलेमें जम्ब, बाकुद प्रभृति फहराती थी। आईन-अकबरीके मतसे इस दुर्ग में नाले भी हैं राजा मुकुन्ददेवका नौ-मन्जिला मकान रहा। किन्तु ____ कटक जिले में कई नगर हैं-१ कटक, २ याज आजकल उसका चिह्न भी देख नहीं पड़ता। कटक पुर, ३ केन्द्र। डा, ४ जगत्सिंहपुर । नगरमें दीवानो प्रादालत और कमिशनरका प्रधान १ कटक. नगर अचा. २.२८४" उ. और कार्यालय मौजद है। देशा• ८: ५४ २८” पू० पर अवस्थित है। यहां | । २ याजपुर अति प्राचीन कालसे हिन्दुवों का पुण्य- महानदी विधा हो होपाकार बन गया है। महा- स्थान-जैसा प्रसिद्ध है। इसी स्थानपर पुराणात विरजा- नदी को काटजुड़ी नदौके मुखपर हो कटक नगर क्षेत्र विद्यमान है। इस नगर में कितनी हो चीजे, बसा है। . . देखने लायक हैं। अाजकल याजपुर याजपुर सब- - कट* अाधुनिक नगर नहीं। मादलापजीके डिविजनका प्रधान स्थान है। याजपुर और विरजा शब्दमैं मतसे यह नगर कोई नौ सौ वर्ष पूर्व कैशरोवंशीय विस्त त विवरण देखो। किसो नृपन्नेि प्रतिष्ठित किया, जिससे भी बहुत पहले ३ केन्द्रापाड़ा नगर महानदीको चिवात्पना नाम्रो दूसरा कटक मंस्थापित हुवा। भवगुप्तके अनुशासन- शाखासे उत्सर कुछ दूर पर अवस्थित है। मरहठोंके
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