पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६५

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इन्द्रियसन्निकर्ष प्रभाव भी एक पदार्थ है। उसके प्रत्यक्षका कारण। सकती क्योंकि वह सविकृष्ट नहीं है उसीप्रकार इसप्रकार है। चक्षु भी व्यवहित पदार्थको नहीं जनाता क्योंकि ___सारांश-जहां जिस वस्तुका स्वरूप बिलकुल दौख व्यवहित पदार्थ के साथ उसका सम्बन्ध नहीं है! नहीं पड़ता, वहां उसका एक विशेषणता-विशेषरूप सो भी अयुक्त है क्योंकि ऐसा माननेसे हेतुको अव्या- सम्बन्ध माना है। पक और सन्दिग्ध मानना पड़ेगा अर्थात् यह स्पष्ट अभावके प्रत्यक्ष विशेषणता-विशेषरूप सम्बन्ध रूपसे देखनेमें आता है कि चक्षु, स्वच्छ कांचके भीतर व्यापार है। जैसे जलमै अग्नि नहीं, किन्तु रक्व हुये पदार्थको और स्वच्छ जलके भीतर पड़े अग्निका प्रभाव रहता है। फिर अग्निके अभावका हुये भी व्यवहित पदार्थको देख लेता है। इसलिये कोई आकार नहीं होता। हम जलमें अग्निके | यक्षमें साध्यके रहनेसे और साधनके अभावसे वह अभावको कैसे देख सकते हैं। परन्तु जलमें अग्निका | अव्यापक हो जाता है तथा लोहकान्त मणि लोहक अभाव देख न पड़ते भी विशेषणता-विशेषरूप सम्बन्ध पास न भी जाकर लोहसे संबद्ध हो जाती है। से उसका ज्ञान होता है। अर्थात् जल विशेष्य है और इसलिये उपयुक्त हेतु संदिग्ध है अर्थात् लोहकान्त अग्निका प्रभाव विशेषण है इसलिये विशेषणता-विशेष मणिहारा व्यवहित पदार्थका ग्रहण न होनसे हेतु की रूप सम्बन्धसे अभावका प्रत्यक्ष होता है। नहीं तो सत्ताका तो निश्चय हो जाता है। परन्तु वह "प्राप्त जलपर चक्षुः जाते हो प्रभाव कैसे समझ सकते हैं।। होकर लोहको ग्रहण नहि करतो" इसलिये माध्यके अतएव अभावके प्रत्यक्ष विशेषणता विशेष रूप सन्त्रि अभावसे वहां यह सन्देह हो जाता है कि चक्षु भी कर्षको ही व्यापार अर्थात् साक्षात् कारण माना है। व्यवहित पदार्थको ग्रहण नहि करता इसलिये वह जैनसिद्धान्तमें नैयायिक मतके समान इन्द्रिय-सबि सन्निकृष्ट होकर पदार्थका ग्रहण करता है वा कर्षको प्रत्यक्षमें कारण नहि माना है, क्योंकि यदि | असनिकृष्ट, इसलिये उपयत अनुमानमें हेतुके दुष्ट समस्त इन्द्रियोंका सन्निकर्ष होता अर्थात् यदि हो जानेसे चक्षु सन्निकर्ष सिद्ध नहीं हो सकता। समस्त इन्द्रियां विषयोंसे सबिवष्ट हो ज्ञान कराती यदि मानोगे कि अग्नि के समान चक्षु भौतिक तब तो खौकार भी कर लिया जाता कि इन्द्रिय पदार्थ है इसलिये जिसप्रकार अग्निका प्रकाश संबह सन्निकर्ष प्रत्यक्षमें कारण है सो तो है नही क्योंकि हो पदार्थका ज्ञान कराता है। उसीप्रकार चक्षुको यह स्पष्टरूपसे देखने में आता है कि नेत्र असनिकृष्ट किरण भी पदाथैसे सबद्द होकर ही ज्ञान कराती होकर ही पदार्थ ज्ञान कराता है। यदि कहोगे कि हैं। इसलिये चक्षुसन्त्रिकर्ष युक्त है? सा भी ठोक जिसप्रकार स्पर्श न आदि इन्द्रियां पदार्थसे संयुक्त हो। नही, क्योंकि लोहकान्त मणिसे हो यहाँ व्यभिचार कर ज्ञान कराती हैं उसीप्रकार नेत्र भी संयुक्त होकर आता है अर्थात् लोहकान्त मणि भी भौतिक पदार्थ ही ज्ञान कराता है! सो ठीक नही, क्योंकि यदि ऐसा है परन्तु वह पदार्थ के पास जाकर संबद्ध नहीं होती माना जायगा तो जिसप्रकार स्पर्शन इन्द्रियसे विलकुल उसोप्रकार मान भी लो कि चक्षु भौतिक पदार्थ है सविकष्ट शीत वा उष्ण पदार्थ जाना जाता है उसी- तथापि वह पदार्थसे सबिवष्ट ही ज्ञान नहीं करा प्रकार चक्षु इन्द्रियसे भी उसमें लगे हुये काजलका सकता। ज्ञान होना चाहिये क्योंकि कज्जल नेत्रके विलकुल यदि कहोगे चक्षु वाह्य इन्द्रिय है। इसलिये जिस सविनष्ट है। प्रकार स्पर्शन आदि इन्द्रियां पदार्थसे सन्निकृष्ट हो . यदि यह कहा जायगा कि (चक्षुरप्राप्यकारि उसका ज्ञान कराती हैं। उसीप्रकार चक्षुभी पदार्थसे प्रावृतानवग्रहात्) अर्थात् स्पर्शन इन्द्रिय जिसप्रकार सबिवष्ट होकर ही ज्ञान कराता है? सो भी ठीक ढके हुये पदार्थके शीत उष्णका ज्ञान नहि करा' नहीं। क्योंकि इन्द्रियां (इन्दिय शब्द देखो) दो प्रकारको