पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७

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इन्द्रियसन्निकर्ष-इन्द्रियावत् . तथा यह निश्चय है कि जो पदार्थ गतिमान होता। जाते हैं उससमय उस पदार्थ का स्पष्ट ज्ञान वा है वह समीपवर्ता दूरवर्ती पदार्थको एक साथ नही | दर्शन होता है। तथा यहांपर यह भी समझ देख सकता । चक्षुको रश्मि भी गमनशील हैं इसलिये लेना चाहिये कि जिसप्रकार इन्द्रिय सव्रिकर्ष उनसे भी दूरवर्ती वा समीपवर्ती पदार्थका एकसाथ । प्रत्यक्षमें कारण नहीं उसोप्रकार पदार्थ और ज्ञान न होना चाहिये किन्तु देखने में आता है कि प्रकाश भी कारण नहीं क्योंकि अन्वय व्यतिरेक . जिस समय वृक्षके नीचे खड़े होकर चन्द्रमाको देखते व्यभिचार प्रादि दोषोसे उनमें भी कारणता सिद्ध हैं उस समय वृक्षको शाखा और चन्द्रमा एकसाथ नहीं हो सकती। ( तत्त्वार्थवार्तिकालकार) दीख पड़ते हैं इसलिये मालूम पड़ता है कि चक्षुमें इन्द्रियखाप (सं० पु०) १ सुषुप्ति, नोंद। सोते समय रश्मियां नहीं, रश्मियोंके अभावसे वह तैजस नही, | इन्द्रियवर्गके उपरम अर्थात् विरामका समय रहता और तेजस न होनेसे वह पदार्थों को सन्निष्ट होकर है, प्रतः न कुछ दीख पड़ता है, और न अनुभव होता नही जनाता। है। २ प्रलय। मरणकालमें इन्द्रियोका प्रलय होता ___ यदि चक्षुको सन्निकष्ट होकर पदार्थको जानने- है। ३ चेष्टानाश, घबराहट । वाला ही माना जायगा तब 'जब कि रात्रिमें बहुत दूर इन्द्रियागोचर (सं० वि०) अतीन्द्रिय, जो समझ न जलती हुई अग्नि दीखती है और उसके पासके पदाथै पड़ता हो। नहिं दीखते हैं उसी प्रकार जहांपर प्रकाश नही | इन्द्रियात्मन् (सं० पु०) इन्द्रियमेवात्मा, कर्मधा । रहता वहांके पदार्थ भी दीखने चाहिये क्योंकि चक्षु- १ विष्णु। २ इन्द्रिय, प्रजो। रश्मियोंको सन्तति तो बराबर अग्नितक विद्यमान इन्द्रियादि (सं० पु०) इन्द्रियका कारण-रूप अहङ्कार, रहती है इसलिये जान पड़ता है कि चक्षुमें रश्मि घमण्ड । नहीं इसलिये उसका पदार्थों के साथ सबिकर्ष भी इन्द्रियाधिष्ठाट (स० पु०) अचेतन इन्द्रियोंको नहीं होता। निज-निज कार्यमें व्यापृत करने के लिये ईखर यदि कहोगे जहांपर अम्नि है वहींके पदार्थ दौख | हारा नियुक्त देवता। इन्दिय शब्द देखो। सकते हैं क्योंकि वहांपर प्रकाश रहता है वीचके इन्द्रियायतन (सं० क्लो० )' १ शरीर, जिस्म। चतुः, पदार्थों पर प्रकाश नहीं रहता इसलिये उन्हें चक्षु | कर्ण प्रभृति इन्द्रियगणका आधार होनेसे शरीरको नहीं देख सकता। सो भी ठीक नहीं क्योंकि अग्नि | इन्द्रियायतन कहते हैं। २ आत्मा, रूह। नैयायिकोंके तैजस पदार्थ है इसलिये उसको जिसप्रकार पदार्थों के | मतसे स्थूल देह और वैदान्तिकोंके कथनानुसार सूक्ष्म प्रकाशनमें अन्य प्रकाशको अपेक्षा नहीं करनी पड़ती शरीर इन्द्रियायतन है। उसीप्रकार चक्षु भी तैजसपदार्थ है इसलिये उसके इन्द्रियाराम (सं० पु०) इन्द्रियेषु प्रारमति, इन्द्रिय- लिये भी अन्य प्रकाशकी अपेक्षाको आवश्यकता नहीं | श्रा-रम-धज । इन्द्रियोंको चरितार्थ करनेके लिये इसलिये यह बात सिद्ध हुई कि चक्षु और पदार्थ का भोगासक्त व्यक्ति, रिन्द मस्त। सन्निकर्ष नहीं होता अतः इन्द्रियसन्निकर्ष प्रत्यक्षमें इन्द्रियार्थ (स० पु०) रुप रस स्पर्श प्रभृति इन्द्रियों- कारण नहीं हो सकता। किन्तु पदार्थो के नियमित के विषय रुक्तको चीज़। जैसे-मनोहर युवती, रूपसे और स्पष्टतास जनानेवालो षयोपशम रूप शक्ति वंशोगीत, स्वादुविशिष्ट रस, कपूरादि गन्ध और कारण है अर्थात् जिस पदार्थ का हम ज्ञान वा अनुरागान्वित स्पर्श। इन्द्रियार्थमें लोलुपी हुये लोग दर्शन करते हैं उस पदार्थ के ज्ञान वा दर्शनमें जो | प्रायश्चित्त करने योग्य हो जाते हैं,- ज्ञानावरण वा दर्शनावरण रूप प्रतिबन्धक हैं वे जिस "इन्दि यार्थेषु सर्वषु न प्रसजात कामतः।" (मनु ४।१८) समय क्षय और उपशमरूप अवस्थाको प्राप्त हो इन्द्रियावत्: (सं० त्रि.) इन्द्रिय-मतुप मन्त्र सोमान्दि य-