६७२ कतक-कतरछांट यद्यपि कतक वृक्षका फल अम्बुको परिष्कार करता, २ कासमद, कसौंदो। ३ कुचेलक, कुचला। तथापि उसका नाम लेनेसे ही जल स्वच्छ नहीं पड़ता।। ४ जम्बोरवृक्ष, जंभौरी नौबू। ___ यह वृक्ष भारतवर्ष पार्वत्य प्रदेश, बङ्गाल, दाक्षि- ५ रामायणको एक प्राचीन टोका। रामाभुज णात्य और सिंहलके किसी किसी स्थानमें उत्पन्न प्रभृति रामायणके टीकाकारोंने अपनी-अपनी टीकामें होता है। प्रत्येक वृचकी उंचाई ३०से ६० फोट कतकका उल्लेख किया है। डा. बुरनेलके मतसे कतक तक रहती है। इसको लकड़ोसे जो तख ते बनते, सम्भवतः ई के १४वें अथवा १५वें शताब्द विद्यमान वह गृहस्थके अनेक आवश्यक कार्यों में लगते हैं। रहे। किन्तु अपर टीकाकारोंको उक्तिके अनुसार कतकका फल बादामी और आध इञ्च मोटा कतक-टोकाकार ५म वा ६ शताब्दके लोग थे। होता, किन्तु पकनेसे काला पड़ जाता है। वल्कल कतक-टीकाकारने ग्रन्थके प्रारम्भमें कालहस्तिकका हरिताभ धूसरवर्ण लमता और रेशमको भांति स्तव किया है। इससे अनुमान होता, कि वह दक्षिण परिष्कार रूयेसे आच्छन्न रहता है। कतकका खेतसार | देशमें रहते थे। पास्वादनहीन होता है। कतकफल (सं० पु०) १ कतकक्ष,रौठेका पेड़।२ तमाल- कतक कटु, तिक्त, उष्ण, चक्षुहितकर, रुचिकर | वृक्ष, दमपल। (लो) ३ वारिप्रसादनफल, रोठा। और कमिदोषघ्न एवं शुलनाशक है। वोज जलको कतचेता (सं० पु.) किसी मुनिका नाम । निर्मल बना देता है। (राजनिघण्टु ) कृतजन (फा० पु०) कलमका कुत काटनेके लिये . भावप्रकाशके मतसे कतकका फल जलपरिष्कारक, एक दस्ता। यह लकड़ी या हाथीदांतका बनता है। चक्षुस्तिकर, वायु एवं समाको नाश करनेवाला. | कतट्रेण (सं० पु०) सिन्धु राज्यके अन्तर्गत एक शीतल, मधुर, गुरु और कषाय है। चक्रदत्त बताते, | नगर । कि चक्षुसे जलका गिरना दबाने और दृष्टिको शक्ति | कतना (हिं. क्रि०) १ काता जाना, बनना, तैयार बढ़ानेको निर्मलो मधु तथा कपूरके साथ रगड़ | होना। (क्रि० वि०) २ कितना, किस कदर। . कर लगाते हैं। मुसलमान चिकित्सक कतकको कतनी (हिं॰ स्त्रो०) १ ढेरिया, सूत कातनेको टेकुरी। शीतल और शुष्क समझते हैं। पेटपर इसे लगानेसे | २. सूत कातनका सामान रखनेको टोकरी। उदरव्यथा दूर होती है। यह चक्षुको लाभ | कतन्ना (हिं० पु.) बड़ी कैची, कतरना। पहुंचाता और सर्पके विषको धर दबाता है। कतनी (हिं० स्त्री०) कैची, कतरनी। किसी पारस्य ग्रन्थमें लिखा-मेह और मूत्राशय- कतफल (सं• पु०) कतं जलप्रसादकं फलमस्त्र, सम्बन्धीय किसी प्रकारको पीड़ापर निर्मली विशेष | बहुव्री०। १ निर्मलोवृक्ष, रोठेका पेड़। २ निर्मली- उपकारी है। तामिल वैद्योंके मतसे पक्क फलको | फल, रोठा। बुकनी वमनकारक होती है। कार्कपाटिक साहब | कतम ( स० वि०) किम्-डतमच् । बहु पदार्थो के कहते-निर्मलीको मूत्रवच्छ रोगके औषधको भांति | | मध्य कोई एक, कौन, दोमें एक। व्यवहार करते हैं। कतमाल (सं० पु.) कस्य जलस्य तमाय शोषणाय युद्धको यात्राके काल यह फल सिपाहियोंके पास अलति पर्याप्नोति, क-तम-अल-अच् । पग्नि, आग। रहना अच्छा है। क्योंकि पथमें किसी प्रकारका गन्दा इसका पाठान्तर कचमाल और खचमाल है। जल मिलने से निर्मली द्वारा परिष्कार किया जा कतर (स. त्रि.) किम्-डतरप्। 'दोमें एक, सकता है। जल परिष्कार करनेका गुण रखनसे ही दोंमें कौन। “योनमनसितदा कतरोवरस्ते।" (नैषध) अंगरेज लोग इसे क्लियरिङ्ग नट (Clearing nut)| कतरछांट (हिं. स्त्री०) काटछांट, कतरब्योंत, कतराई कहते है।... | और कंग।. .
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