६८० कदधव-कदपा १मन्दाग्नि, थोड़ी पाग। (त्रि०) २ मन्दाग्नियुक्त, । २ अतिशय मन्द पुत्रवाला, जिसके बहुत खराब थोड़ी भाग रखनेवाला। बेटा रहे। कदधव (हिं.) कदवा देखो। कदपा-मन्द्राज प्रान्तका एक ज़िला। इससे उत्तर कदवा (सं• पु०) कुत्सितो ऽध्वा, कोः कदादेशः ।। करनल-जिला, पूर्व नल्लूर, दक्षिण उत्तर अरुकटू तथा निन्दित पथ, बुरी राह । इसका संस्कृत पर्याय-व्यध्व, कोलार जिला और पश्चिम वेल्लारी जिला है। दुरध्व, विप और कापथ है। भूमिपरिमाण ८७४५ वर्ग मील पडता है। कदन (स. क्लो० ) कद्यते, दुःखं प्राप्यते ऽनेन, कद ____ इस जिलेका पूर्व एवं दक्षिण अंश पार्वतीय है। णिच-ल्य घटादित्वात् नहिः। १ पाप, गुनाह ।। दक्षिण-पश्चिम भाग समतल लगता है। दक्षिण-पूर्व- २ मद, मलाई, रौंदाई, कुचलाई। ३ युद्ध, लड़ाई।। भागमें हिन्दुवोंका पुण्य फेल त्रिपती विद्यमान है। ४ मारण, विनाश, बरबादी। पालकोंडा और शेषाचल नामक पहाड़ इस जिलेको कटनप्रिय (सं.वि.) विनाशका अनुराग रखने- दो भागोंमें विभक्त करते हैं-निम्न भाग और उच्च वाला, जिसे मारकाट पच्छी लगे। भाग। उक्त दोनों पर्वत पवार (पिनाकिनी) नदी कदत्तनाद-मद्राजके मलवार जिलेके मध्यका एक पर्यन्त विस्तृत हैं। पालकोंडेका अर्थ 'दुग्धशैल' है।' प्राचीन राज्य। यह प्रक्षा० ११ ३६ से ११° | बोध होता-यहां सुन्दर गोचारण क्षेत्र रहनसे उक्त ४८३० और देशा० ७५: ३६ से ७५° ५२ पू० के नाम पड़ा होगा। इस जिले में पेबार नदी ही प्रधान मध्य अवस्थित है। कदत्तनाद राज्य समुद्रोपकूलसे है। इस नदीको दो शाखा है-कुण्डेर और सगलैर। पश्चिमघाटके पश्चिमपाच पर्यन्त फैल रहा है। इसके सिवा इनके पापघ्नी, वैरैर और चित्रवती नाम्नी दूसरी , समुद्रतौरवर्ती स्थान बहुत उपजाऊ हैं। पूर्व ओर | भी कई नदी पड़ती हैं। यहां वनकी कोई कमी पार्वत्यप्रदेश में वन यथेष्ट है। इसमें इलायची पधिक | नहीं। वनमें अच्छी अच्छी लकड़ी मिलती है। होती है। १५६० ई०को किसी नायक सरदारने यह खनिज पदार्थों में लोहा, तांबा, चनेका कड़, राज्य स्थापित किया। उक्त व्यक्ति कोलात्री राज्यक स्टेट और बिल्लौरी पत्थर निकलता है। कदपा राजा तेक्कालङ्करके निकटसे आये थे । अन्त में टोपू नगरसे तीन-चार कोस उत्तर पिनाकिनी नदी किनारे मुलतान्ने इस वंशको राज्यसे दूरीभूत किया। चेणर के पास हीरा मिला है। उडिज्नमें चना, कम्बू, • फिर १७५२ ई में अंगरेज सरकारने प्राचीन वंश- धान, गेहूं, तम्बाकू, मिर्चा, नानाप्रकार तैलवीज, इक्षु, धरको राज्यका अधिकार सौंपा। इसकी राजधानी। नील, केसर, कपास और पाट प्रभृति उपजता है। कत्तिपुरम् है। ___इतिहास-पूर्वकालको यह ज़िला चोलराज्यके कदन (सं० लो०) कुत्सितं अन्नम्, कोः कदादेशः।। अन्तर्गत था। यहां श्रीरामचन्द्र के प्रागमनको नाना- १ कुत्सिताब, खराब खाना। २ कदर्यान्व, मोटा | प्रकार किंवदन्ती प्रचलित है। अनाज। शास्त्रनिषिद्ध और अपथ्य पत्रको कदन - कदपामें बहुत दिन हिन्दुवोंका राज्य रहा । स्थानीय कहते हैं। "हविविना हरिर्याति विना पौठेन माधवः । पहाड़ोंपर अनेक दुर्भेद्य दुर्ग रहनेसे मुसलमान सहज कदन्न : पुरहरीकाच: प्रहारेण धनश्चयः ॥” (उट) ... ही इसे जीत न सके थे। अन्तको अनेक कष्ट उठा कटनभोजी (सं.वि.) कृतसितं अन्न भडत. उन्होंने कदवा जय किया। १५४५ ई०को तालि- कदव-भज-णिनि कोः कदादेशः। जघन्य अंन्त्र भोजन | कोटको दुर्घटनाके पीछे कर्णाटक जीत मसलमान करनेवाला, जो ख़राब अनाज खाता हो। कदपाके बीचसे आते जाते रहे। उसी समय गोल- कदपत्य (सं. क्लो०) कुत्सितं अपत्यम, कोः कदा- 'कुण्ड के अधीनस्थ प्रधान प्रधान मुसलमान सामन्त, देशः। १ कुपुत्र, खराब बेटा, बुरी चौलाद। (वि.)। नाना स्थान अपने भागयोग बनाने लगे। उनमें पामा
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