पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६८०

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कथिक-कदग्नि राधिपति श्रीहर्षदेवको महिषोके चित्तविनोदार्थ कथोल, कथौर देखो। पैशाची भाषासे संस्कृतमें इसे अनुवाद किया था। कयौला, कथौर देखो। इसमें कौशाम्बोराज वत्सराजके पुत्र नरवाहन दत्तका थोदय ( त्रि.) कथायां उदयः प्रकाशो यस्त्र, चरित्र वर्णित है। गुणाढ्य, सोमदेव और पेमेन्द्र देखो। बहुव्री०।१ कथासे उत्पन, कहानीसे निकाला हुमा। कथिक (संत्रि .) कथ-ठन् । १ कथक, पुराण- (पु.)२ कथाका उत्थापन, किस्म का उठान । वक्ता, किस्म कहनेका पेशा करनेवाला। (हिं.)। कथोदयात (सं० पु०) नाटकको एक प्रस्तावना, २ कत्थक, नाचने-गानेवाला। खांगका शुरू। कथिका (सं. स्त्री०) तक्रादि-साधित खाद्यद्रव्य- "स्वधारस्य वाक्य वा समादावार्थमख वा। विशेष, कढ़ी, महेरौ। कढ़ौ देखो। यह पाचन, रुच्य, ___ भवेत् पावप्रवेशश्वेत कचोदयातः स उचाते ।" (साहित्यदर्पण) लघु, वह्निदीपन, कफानिलविबन्धन और किञ्चित प्रथम अभिनेता जब सूत्रधारके वाक्य वा वायके पित्तप्रकोपन है। (वैद्यकनिघण्ट) किसी अर्थको पकड़ प्रवेश करता, तब कथोरात कथित (स० वि०) कथ-त। १ उक्त, कहा हुआ। पड़ता है। रखावलोमें सूवधारके वाक्यको अवलम्बन २ वर्णित, बयान किया हुआ। ३ उच्चारित, मुंहसे | और वेणीसंहारमें सूत्रधारके वाक्याथ को ग्रहणकर निकाला हुआ। ४ व्याख्यात, समझाया हुआ। पात्रका प्रवेश देखाया है। ५ प्रतिपादित, साबित किया हुआ। (को०) ६ कथन, कथोपकथन (सं.ली.) कथायां उपकथनम, ७-तत् । बातचीत। ७ प्रबन्ध विशेष, मृदङ्गका कोई बोल। कथापर कथा, विविध वार्ता, दो चार लोगोंका एकत्र (पु.) ८ परमेश्वर, विष्णु।। हो किसी विषयपर परामर्श वा पान्दोलन, बातचीत । कथितपद (सलो .) कही हुई बात, दोहराव । कथ्य (स.वि.) कथय । कहने के उपयुक्ता, बता देने कथितपदता (सं० स्त्री०) पुनरुक्ति, दोबारा कहाई। लायक। “भरतस्य समोपे तेनाई कथः कवचन" (रामायण ) यह अलङ्कारशास्त्रोक्त एक दोष है। एकार्थवाचक कथ्यमान (स.वि.) कध कर्मणि शानच। कहा दो शब्द किसी स्थानमें पड़नसे कथितपदता पाती है। जानेवाला, जिसे कोई कह रहा हो। "रविलोलायम भिन्ते सलौलमनिलोवहन्।" (साहित्यदर्पण) उक्त पदमें लोला शब्द निरर्थक है। क्योंकि रति- कद् (सं० अव्य.) कहां, किस जगह। कद (सं० पु.) कं जलं ददाति, क-दा-क। १ मेध, श्रम कहनेसे हो अर्थ निकल सकता था। फिर | बादल। (वि.) २ जखदाता, पानी देनेवाला। अनेक स्थलमें यह दोष गुणकी भांति काम देता है- ३ सुखदायक, पाराम बखू शनेवाला। कथितञ्च पदं पुनः । कद (हिं. स्त्रो०) १ ईर्ष्या, नाराजी, पनवन । २ हठ, विहितस्यानुवाद्यत्वे विषाद विनये ऋधि ॥ | जिद। (अव्य.) ३ कदा, कब, किस वक्त । दैन्य ऽथ लाटानुमासे ऽनुकम्पायां प्रसादने । पान्तरसंक्रमितवाची हर्ष ऽवधारणे ।" (साहित्यदर्पण) कद (अ.पु.) डोलडौल, लम्बाई-चौड़ाई। विहितानुवाद, विषाद, विस्मय, क्रोध, दीनता, कदक (स० पु०) कदः मेघइव कायति प्रकाशवे, लाटानुप्रास, अनुकम्पा, प्रसादन, अर्थान्तरवाच्य, हर्ष कद-के-क। चन्द्रात्प, चंदोवा । और अवधारणमें कथितपदता-दोष नहीं-गुण है। | कदवर (सं.को.) कु कुत्सितं अक्षरम, कोः कदा- कथोक्वत (सं त्रि.) अकथा कथा सम्पद्यमाना देशः। १ कुत्सित पंचर, खराव हर्फ, बुरी लिखा- क्रियतेऽत्र, कथा-चि-व-ता। कथामात्रमें अवशिष्टकत, वट। (वि.)२ कुत्सित अक्षर लिखनेवाला, बदखत, मृत, मुर्दा। "अवगम्य कथोकृतं वपुः।” (कुमार १२) | जो बुरे हर्फ बनाता हो। कथोर (हिं. पु०) कस्तोर, रांगा। कदम्नि (सं.पु.) कुसितो अग्निः, कोः कदादेशः।