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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६९४

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६९३ है। कदलीके वृक्षसे भी अनेक कार्य निकलते हैं।। अमेरिकाके आदिम अधिवासी मो इसे प्रधान खाब जहां एकाएक बाढ़ पाती, वहां बड़े बड़े वृच । समझ व्यवहार करते हैं। बम्बई प्रदेशमें पाम, काट और पास-पास बांध घड़नाई बनाई जातो कटहल पादि फलोंका कलम सगा पाखपर एक- है। इसे केलेका बेड़ा कहते हैं। पफरोकाके पसभ्य एक कदखोवृक्ष रोपण कर दिया जाता है। इसके और भारतवर्षीय दाक्षिणात्यके लोग कदलौवृक्षपर हारा मध्यभारतमें खरतर रौद्रके पातपसे हरा-भरा लक्ष्य लगा तौर और तलवार चलाना सीखते हैं। वृक्ष रचित रहता है। शेषको ६८ वत्सरके बाद बङ्गालमें षष्ठीपूजा, विवाह और अधिवासादि मङ्गल जब पच्छा वृक्ष स्वयं रौद्र सच्च करने की क्षमता पाता, कार्य पर एक डालका समूचा केला लगता है। युक्त तव कदलोवृक्ष काट डाला जाता है। वहां सुपारीके प्रदेशमें सत्यनारायणको कथा, जन्माष्टमी और राम येवमें मौ कदलीच लगता है। कारण, इसकी नवमीपर केलेके स्तम्भ खड़े किये जाते हैं। बीचके छायासे सुपारीको कोपल शीतल रहती है। एक कोमल पत्ते की झांकी बनती है। मुसलमान भी प्रकारके केलेको सुखा डालते हैं। राजसी नामक पोरोंको शोरोनो चढ़ाते समय केलेसे काम लेते हैं। वेलेको पकनेपर एक सन्दूकमें टकड़े-टुकड़े काट और वासन्ती और दुर्गापूजाके समय नवपत्रिकामें केलेके घास-फूससे ढांक ७।८ दिन रख छोड़ते हैं। फिर किल्ले व्यवहत होते हैं। फिर भारतीयोंके शुभकर्ममें | उसको छिलका उतार समुद्रतीर मञ्चपर मुखाते हैं। केलेका किला मङ्गलचित्रको भांति लगा करता है। सारे दिन रौट्रमें मुखा, सध्यासमय उठा पौर मृत उत्सव, पूजा पौर विवाहादिके समय हिन्दू हार तथा लगा रातभर चटाई तथा केलेके पत्तेचे दबा उसे पथमें केलेके वृक्ष सजा देते हैं। हिन्दुवोंके विवाहादि रख देते हैं। इसीप्रकार सात दिन तक सबको संस्कारपर केलेको भूमि बनती है। इसी स्थानपर बराबर रौद्र देखाया और सन्ध्याको उठा तथा घत संस्कारार्ह व्यक्तिका मानकार्य, चौरकर्म, चड़ाकरण, लगा चटाई एवं कैलेके पत्तेसे रात भर दवाया करते कर्णवेध, वरण इत्यादि होता है। बम्बईको पतिरता हैं। ७।८ दिनमें केला ख ब सूख जाता है। यह कामिनियां कदलीवृक्षको धन एवं पायुप्रद समझ खाने में बुरा नहीं लगता। सूखा केला पति बल- पजती हैं। वाहमें इसका काण्डकोष पत्यन्त पाव-. कारक पौर शैल्यनिवारक होता है। फिर माल फल श्यक पाता है। इसके द्वारा श्राहीय नैवेद्य, जल | जानेपर भी यह बड़ा उपकार करता है। समुद्रको एवं फलप्रदानके लिये एकप्रकार नौका बनती है। यावामें सूखा केला विशेष व्यवहार्य है। बम्बईके पौष-संक्रान्तिको बङ्गालको सन्तानवतौ रमणियां रहनेवाले घरमें खानेको पका केसा बांसको खपाचसे कदलोके काण्डकोषको नौका बनाती पौर गेंदेके पतला पतला चौर धपमें सुखाकर रख छोडते है। फलसे सजाती हैं। फिर उसमें प्रदीप जला पुत्र हारा इससे जो मुरब्बा बनता, वह खाने में बहुत अच्छा नदी वा पुष्करणीके जलपर बहा देती है। यह व्रत लगता है। बैसकेली केलेको सुखा कटपीस कर भगवती भवानीके उद्देश्यसे सन्तानको मङ्गलकामनाको बम्बईवाले एकप्रकारका खिसांदा बनाते हैं। वह किया जाता है। शिशु, रोगी और सद्यप्रसूता कामिनीके लिये पति कदलीवृक्षका समस्त अंश गवादिका खास है। उपकारक एवं बसकारक खाद है। मारिशस, टुर्भिक्षके समय कदलीवृक्ष नीचेसे ऊपरतक छोटा-| पविम-भारतीय होप और दक्षिण-पमेरिकामें भी कोटा काट पशुवोंको खिलाया जाता है। यह पशु ऐसा ही खिसांदा बनता है। मेक्सिको देशमें क्या वोंके लिये विशेष उपकारक है। जामकाहोपमें गेहूं केला सुखाकर रखा नहीं जाता। हबशी पके केलेको सतपन होता है। सुतरां कदली हो वहांके निव- सिदिवा मण्डका उपादेय समझ खाते है। दक्षिण- • श्रेणीवाले अधिवासियोंका एकमात्र सुलभ खाद्य है।। अमेरिका, पफरीका और पश्चिम-भारतीय होपमें Vol. III. 174