२ कदली है। वारयाबुषा और वारणवल्लभाका अर्थ हस्तिप्रिया। डालको तरकारी बनती है। पक्का केला सौधा खानेमें है। सक्कतफला शब्दसे वत्सरमें एक वृक्षके एक हो। पाता है। भारतीयोंको दृष्टिमें यह अति पवित्र द्रव्य बार फल देनेका अर्थ निकलता है। भानुफलाका है। पूजा, श्राद्ध, विवाह प्रभृति सकल ही कार्यों में अर्थ सूर्योत्तापप्रिया है। वनलक्ष्मी वनको शोभा केला व्यवहृत होता है। हविष्याबमें दूसरा शाक बढ़ानवाले फलको द्योतक है। इससे वनमें भी खाना मना है। किन्तु कच्चा केला पकाकर उसमें भी धनागम वा प्राणधारण होता है। हस्तिविषाणी वह खा सकते हैं। कदलीका पत्र भारतवर्षके सकल फल कहाता, जो हस्तिदन्तको भांति मुगोल, दीर्घ ही स्थलोंमें भोजनपात्रका कार्य देता है। अधिक अथच ईषत् वक्र आता है। चखतीका अर्थ संख्यक लोगोंको खिलाने में पत्र व्यवहृत होता है। चर्म की भांति आवरणयुक्ता है। अन्यान्य अर्थ नाम ब्राह्मणादि उच्च वर्ण के लोग जिन निम्नश्रेणीवालोंके पढ़नेसे समझ पड़ते हैं। छुये जलको हाथ नहीं लगाते, उन्हें कदलीके पत्र में केलेको अरबी भाषामें 'मौज' कहते हैं। यह ही खिलाते हैं। मन्द्राज, कनाड़े और मलवर संवतके मोचा शब्दसे निकला है। लाटिन भाषाका प्रदेश में इसे पत्रके लिये ही अधिकतर लगाते और मिटमा वा मुजा शब्द अरबी मौज़से बना है। सकल श्रेणोके लोग उसीमें खाते हैं। ग्राम्य पाठ- अंगरेजीमें बनाना वा प्लानटेन कहते हैं। अंगरेजोका | शालामें तालपत्र पर लिखना सीख लेने पर छात्र बनाना शब्द ग्रीक अरियाना (Ariana )से उत्पन्न | कदलीके पत्रपर लिखनेका अभ्यास डालते हैं। कद- है। ग्रीक अरियानाका पपरे पर्याय औराना | लौके पत्रपर हाथ बैठ जानेसे कागजपर लिखना (Ourana) रहा। ग्रीक अरियाना सम्भवतः तेलगी। प्रारम्भ किया जाता है। इसका कच्चा पत्र (बीचका भाषाके अदिति शब्दसे निकला है। पत्ता) बेलेस्तारके ज़ख मपर ढांक देनेसे ज्वाला कितने ही लोग ग्रीक औराना शब्दको संस्कृतके मिटती है। बीचका पत्ता काट सोधी और माखन वारग बुषा ५ ब्दसे उत्पन्न समझते हैं। किन्तु यह लगा जखमपर ४५ दिन बंधा रखनेसे बैलेस्तार बात ठीक नहीं। क्योंकि ग्रीकभाषामें भारतवर्षीय अच्छा हो जाता है। पश्चिम भारतमें बीडी और जिन औषधीका लेख लगा, उनका देशीय नाम चुरुट केलेके सूखे पत्ते में लपेट प्रस्तुत करते हैं। अधिकांश दक्षिणदेशीय भाषासेही संग्रहीत हुया है।। फिर कोई भी द्रव्य लपेटने के लिये वहां केलेका सूखा धान्य प्रभृति शब्द देखो। । पत्ता व्यवहारमें पाता है। चक्षुरोगपर केलेका कच्चा प्लानटेन शब्द ग्रीक ग्रन्थकार थिवोफ़ाष्टस वा पत्ता बड़ा उपकार करता है। अफरीकामें कच्चे पिनिके लिखे पल नामक शब्दसे उत्पन्न है। पल | पत्तेसे घर छाते हैं। कलकत्तेके तंबोली केलेके कच्चे वृक्ष और उसके फलको वर्णना बिलकुल कदलीवृक्ष पत्ते में लपेट लगे-लगाये पान बेचते हैं। बङ्गालमें और कदलीफलसे मिलती है। फिर उन्होंने उसे | गरीब लोग केलेका पत्ता फूक खाकसे कपड़े धोते हमारे ऋषियोंका खाद्य भी बताया है। इसमें कोई हैं। बहुमूत्ररोगपर कविराज महाशय कहल्यादि- सन्देह नहीं-'पल' संस्कृत फल वा तामिल 'बल' वृतमें इसकी डालका रस डालते हैं। यह घृत वायु ५.ब्दसे निकला है। कदलीको हिन्दी में केला, बंगला- और पित्तके दोषको मिटाता है। कोल्हापुर जिले में में कला, महाराष्ट्रीय भाषामें के लि, तामिलमें बल वा| इस वृक्षके रससे रक्तपात निवारण करते हैं। जामका- बेला, तैलङ्गी में रिति, सिंहलोमें कहिकाङ्ग, बायोमें में भी इसका रस इसी प्रकार व्यवहृत होता है। नेपियान या अङ्गट, वालिहीपीय भाषामें विषु, जापा- | बह वृक्षमें एक खोंचा लगा रस निकाला जाता है। नीमें गडङ्ग और मलयभाषामें पिस्यां कहते हैं। यवद्दीपमें एकप्रकार कदलोवृक्षके पत्रको उलटी ओर - कदलौका व्यवहार-भारतवर्षमें, कच्चे केले, मोचे और | मोम-जैसा जो पदार्थ जमता, वह बत्ती बनानेमें लगना,
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६९३
दिखावट