पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६९६

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कदलौ ६५ चिट्ठी लिखनेका कागज बनाया, जो अति सुन्दर ढाके, एकप्रकार कदलोके सूवसे वस्त्र प्रस्तुत आया। १८५१ ई० को डाकर इण्टरने महाप्रदर्शनीमें होता है। ढाकेके पटकार (जुलाई) कभी कभी इस मन्द्राजसे केलेके सूतसे प्रस्तुत रस्मा, कागज, और वस्त्रपर नाना कारकार्य कर अपने गुषका उत्कर्ष कई तरहका नमूना भेजा था। उसमें एक देखाते, जिसके दर्शनसे लोग मोहित हो जाते है। कागज़ चांदौके वर्क जैसा पतला तथा चिकना और १८८४ई.को कलकत्तेकी प्रदर्शनी में ढाकेके पटकाने दूसरा पाचमेण्ट-जैसा कड़ा एवं जलमें भोजनेसे केवल कदलीके सूवसे एक रूमाल बुन और सच्चो बिगड़नेवाला न रहा। नमूनेका सूत्र भी नाना जरोका काम कर भेजा था। कलकत्तेके अजायब- वों में रजित था। रस्सी और रस्मे के कितने ही घरमें यह कमाल प्राज मो रखा है। यह बिलकुल अंशमें अलकतरा लगा रहा। डाकर साइटडीने - टसर-जैसा देख पड़ता, किन्तु उससे कुछ खुरखुरा परीक्षासे देखकर कहा-केलेके सूतका कागज़ प्रति लगता है। ऐसे ही ३३ इञ्च लम्बे-चौड़े कपड़ेका उत्कृष्ट होता है। दूसरी कोई चीज न मिला केवल दाम ५०) रु. नकद है। केलेके सूतसे पतला और मज़बूत काग़ज़ बन सकता कठिन, नीरस और केवल वालुकामय स्थानको है। कल घूमते समय इसमें नहीं पड़ती। इच्छानु छोड़ अन्य सकल-प्रकार भूमिमें कदचो लग सकती सार पाकार और वर्णका कागज़ तैयार होता है। है। गौलो भोर तालाबको निकली महीमें यह बहुत मोड़नसे यह कागज़ नहीं फटता और सकल स्थान | अच्छीतरह उत्पन्न होती है। समान रहता है। कलकत्तेके समीप बालीके कारखाने में खादको वात-कदलोमें कचिसा महो और खाकको भी इसको परीक्षा हुई। इसमें बङ्गाल और आन्दा खाद दी जाती है। मान दीपके केलेका सूत लगा था। फल भी सन्तोष- रोपथका समय-बङ्गालमें वैशाखसे श्रावण मास पर्यन्वं प्रद निकला। प्रति वृक्षमें इसेर सूत हो सकता है। कदलोको रोपण करते हैं। खनाने कहा है- रस्मी या रस्मा बनाने में भी देशो केलेका सूत्र (१) फाल्गुन मासमें कदलीको स्थल मूल काटकर खच्छन्द व्यवहत होता है। किन्तु फिलिपाइन| म लगानेसे लोगोंका परिश्रम वृधा जाता है। किन्तु होपके मुसा टेक्सटिलिस (Musa Textilis) नामक उक्त नियम पालन करनेपर इतना फर पाता, कि कटलौवक्षका सव ही इस सम्बन्ध में सर्वश्रेष्ठ है। वषकका स्कन्ध ढोते-टाते रट जाता है। (२) फिर इसे अंगरेजी में मानिला हेम्म ( Manilla hemp) फाल्गुनमें कदली लगानेसे एक हो मासमें फल दिया कहते हैं। इसका फल खाया नहीं जाता। बङ्गाल, करती है। (३) भाषाढ़ पोर श्रावण मासमें कदली. मन्द्राज और बम्बई प्रान्तके स्थान-स्थान पर पाजकल रोपण करना न चाहिये। कारण रोपण करते भी इस जातिको कदली उपजती है। बम्बई में इसके | न तो कोई केला खाये और न उसके नीचे जायेगा। काण्डका भीतरी अंश खाते हैं। इसके वौजसे किल्ला | कीड़ा लग जानेसे कदली गिर पड़ेगो। (8) सिंह टते भी कलम लगाना ही अच्छा रहता है। यह और मोनके सूर्य छोड़ कदलो लगानेसे फल खानेको केला पार्वत्य भूमि और ऐसे स्थलपर अधिक बढ़ता, मिलता है। (३) भाद्रमासमें कदली समानसे ही जहां प्रन्यान्य वृक्ष सड़ पड़ता है। इस श्रेजीमें फल सवंश रावषको मरना पड़ा है। पानसे सूत अच्छा नहीं होता। इसका सूखा पत्ता उल नियमेिं फाल्गुन मासको स्थूस मूल काट ३ चौड़ा चौर भौर पौस रौद्रमें सुखाते तथा | कदली लगानका समय बताता है। ऐसा करनेसे सूत निकालते हैं। इस जातिके सूत्रसे सूच्छ वस्त्र यह अति शीघ्र फलती और काण्ड एवं गुच्छकी प्रस्तुत हो सकता है। इसका सूत सनसे ढाई गुण शक्ति बढ़ती है। दृतीय नियम भाषाढ़ एवं बावर भारी पड़ता है। मास कदली लगानेको रोकता है। कारण इससे