कदूर हैं। यहांका मलनाद नामक स्थान पर्वत विलकुल बिगड़ा था। कदर और सकल निकटस्थ उपत्यकासे समाच्छन है। | जनपद मुसलमानोंने अधिकार किये। कुछ दिन पोछे प्रधान नदी-तुङ्ग और भद्रा नानी दो नदी मिल बदनरके पलिगारीने कदर जिलेके अधिकांशपर तुङ्गभद्रा नामसे कृष्णा नदीमें जा गिरी हैं। जिलेके पाक्रमण मारा था। किन्तु जीतते भी अधिक दिन दक्षिणांशमें हेमवती और पूर्वाशमें वेदवती नदी वह राज्यभोग कर न सके। १५८४ ई०को महि. बहती है। सुरके राजाने उन्हें फिर हराया था। __गिन-बाबाबुदन गिरिप्रदेश की आजकल अत्युत् । १७६३ ई०को हैदर-अलोने समस्त कदपा जिला कष्ट उर्वरा भूमि है। यहां कहवेकी खेती होती है। अधिकार किया। फिर १७८८ ई०को टीपू सुलतान्के प्रवाद है-बाबा बदन नामक किसी फकौरने मक्के से मरनेपर तत्कालीन गवरनर जनरल वेलेसीने कहवेका पेड़ ला यहां लगाया था। स्थानीय मित्र-राजको यह जिला दे डाला। कुछ ___ कदूरके वनमें मूल्यवान् चन्दन, शिशु प्रभृति उत्तम दिन हिन्दू राजावोंने सुख-स्वच्छन्दसै राज्य चलाया काष्ठ उत्पन्न होता है। फिर १४ प्रकारका धान, | था। मध्यमें किसी राजाने एक ब्राह्मणका अपमान गई, रुई, जख, सुपारी वगेरह चीजें भी उपजती किया। उससे स्थानीय लिङ्गायत और कृषक बिगड़ हैं। किन्तु कहवेको खेतीका ही पादर अधिक है। खड़े हुये। उन्होंने घोषणा की थी-वह हिन्दू राजा
- f ममे पाय बरस आता है। इस जिले में 1 राज्यके उपयुक्त नहौं, जो ब्राह्मणका अपमान कर
७८ वर्गमौल सरकारी जङ्गल है। जङ्गलमें हस्ती, सके। १८२१ ई०को लिङ्गायतीने विद्रोह उठाया। वन्य महिष, व्याघ्र, तरक्षु, शिवा नामक एकप्रकार तरिकेरोके प्राचीन पलिगारवंशका एक व्यक्ति भी भन्न क, वन्यशूकर, हरिण, शशक (खरगोश) और। उनसे पा.मिला था। व्यापार कुछ गुरुतर हो गया। सजारू देख पड़ता है। स्थानीय नदी एवं जलाशय राजद्रोहियोंने अनेक स्थान पाक्रमण किये थे। हिन्द मत्स्य परिपूर्ण हैं। यहां कम्बल, तेल, खदिर, अतर | राजावोंने सोचा-अपना सिंहासन बचाना चाहिये। और लौहका व्यवसाय होता है। फिर अंगरेजो सैन्यको आवश्यकता लगी थी। अंग- . यह जिला पहले वनराजीसे समाच्छन्न रहा। रेजोंने पाकर विद्रोह रोका। फिर अंगरेज गवरन- जनप्रवाद है-यहां ऋष्यशृङ्गका जन्म हुआ था। मेण्टने समझ लिया-स्थानीय हिन्दू राजा किसी स्थानीय तुङ्गनदीके तटस्थ शृङ्गेरीको कितने ही लोग कामके नहीं। उसी समयसे कदूर राज्य खास ऋष्यशृङ्ग गिरिका अपवंश मानते हैं। यह स्थान अंगरेजी बन गया। पूज्यपाद शङ्कराचार्यका लीलाक्षेत्र रहा। यहां | १८६३ ई०को चिकमगलर नामक स्थान इस दाक्षिणात्ववासी स्मात ब्राह्मणों के 'जगद्गुरु' रहते हैं। जिलेका सदर मुकाम हुआ। यहां रत्नपुरी और शकरारपत्तन स्थानमें प्राचीन ... इस जिले में सब मिलाके कोई २७३ नगर और नगरादिका चिह्न विद्यमान है। उसके देखनेसे ग्राम हैं। प्रधान नगरोंके नाम यह हैं-चिकमगलर, स्थानीय पूर्वसमृद्धिका कुछ पाभास मिलता है। उक्त तरिकेरी, कटूर, आदिमपुर, अयनकेरी, विरूर, हरि- दोनों स्थान पहले बल्लाल राजावोंकी राजधानी रहे। हरपुर और होरमगलर कलस। यहांका जलवायु उसी समय दाक्षिणात्यके कितने ही महाप्ररुष वहां सकल स्थानोंमें समान नहीं। जलनादमें प्रतिवर्ष जाकर बसे थे। बल्लाल राजावोंके अभ्युदयसे वह एकप्रकार भयानक वन्य रोग होता है। उसके प्राचीन समृहि बिलकुल लोप न हुई। किन्तु विजय- प्रकोपसे कोई परित्राण नहीं पाता। अपर स्थान नगरके मुसलमानोंको वृद्धिसे प्राचीन नगरोंको समृद्धि | अच्छा है। कदूर जिलेका प्राचीन नगर कदूर है। मिट गयो। उन्होंके अभ्युत्थानसे बलाख-राजवंश भी। यह एक गण्डग्राम समझा जाता है।