पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७०८

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कनखल-कानफाटा कनखल-युक्तपदेशके सहारनपुर खिलेका एक नगर। कनगुज (हिं. पु.) करोगविशेष, कामको एक यह पक्षा० २८. ५५४५७० पौर देशा• ७८. ११ बीमारी। पू०पर अवस्थित है। कनखल हरिहारसे प्राधकोस कनगुरिया (हिं. स्त्री.) कनिष्ठिका, हाथ की सबसे दक्षिण गङ्गाके पश्चिमतौर पड़ता है। भूमिका | छोटी उमली। परिमाण ३ एकर है। नगरके दक्षिण भागमें दक्षेश्वर कनछेदन (हिं.) वविध देखो। महादेवका मन्दिर बना है। इसो मन्दिरके निकट कनटी (सं• स्त्रो०) रतवर्ण मन, खान सहिया। सतीके प्राण छाड़ने पर शिवने दचयन ध्वंस किया था। कनटोप (हिं.पु.) एक बड़ी टोपो। इससे दोनों भारतवासी कनखलको एक पुस्ख तीर्थ मानते हैं। कान ढंक जाते हैं। इसे प्रायः शीत ऋतुमें व्यवहार यमा सान करनेमे सवैपाप छट जाते और लोग करते हैं। मुक्ति पाते हैं। (भारत, अनु• २५ प० ) कनदेव (मं० पु.) एक बौहमुनि । कर्म और लिङ्गापुराणके मतसे कनखसमें दक्षयन्न कनधार (हिं०) वर्षधार देखो। हुपा था। (कूर्म १३८ १०, खिपु० १.१८) कनन (सं• वि.) कन-युच। काण, काना।

कनखलके मकान् बहुत सुन्दर हैं। अनेक कनप, काप देखो।

प्राचीरों में पौराणिक चित्र खिंचे हैं। यहां गङ्गाके कनपट (हिं.पु.) १ कर्ण एवं चक्षुका मध्वखस, कूलपर मनोहर उद्यान शोभित हैं। गलसे उनका कान और पांखके बीचको जगह। २ समाचा, दृश्य बहुत अच्छा लगता है। थप्पड़। कनखलमें अधिकांश ब्राधण रहते हैं। वह कनपटी (हिं. स्त्री.) कनपट देखो। हरिद्वार-मन्दिरके पुरोहित वा पण्डा हैं। हरिद्वार, कनपेड़ा (हिं. पु.) कर्णरोमविशेष, कानकी एक सुविधा न पड़नेसे उन्होंने अपने लिये यहां मकान् । बीमारी। इसमें कर्ण के मूलपर एक चपटी गिलटी बना लिये हैं। जबलपुरी ब्राह्मणों के साथ उनकी पड़तो, बो न बैठनेपर पकती है। • कन्याका आदान-प्रदान चलता है। किसी अपर कनफटा (हिं.पु.) एक शव उपासक सम्प्रदाय । शव- स्थानके ब्राह्मणोंको वह प्रायः अपनी कन्या नहीं देते।। उपासक सम्पदायमें साधारणतः दो श्रेणो देख पड़ती हरिहारके अनेक यात्री कनखल दर्शन करने | है-सन्यासी और योगी। योमो योगको पकड़ आते हैं। हरिद्वार देखो। साधनाका पथ अवलम्बन करते हैं। फिर यह कनखला (सं० स्त्री.) गङ्गा नदीको एक शाखा । योगी-श्रेणो भी नाना श्रेणियों में विभक है। कनफटा यह नदी खाण्डवीपुरमें प्रवाहित है। (कालिकापु. ८०) ऐसी ही एक श्रेणोके योगी होते हैं। उभय कों में कनखिया (हिं. स्त्रो०) कनखो, कटाच, तिरछी नजर । छिद्र रहनेसे ही कनफटा नाम पड़ा है। यह नहीं, कनखियाना (हिं.क्रि.) कनखी मारना, कटाच | कि केवल कनफटा योगियों को हो काम छैदाना करना। होता है। किन्तु सभी ऋषियोंके योगो काम छैदा कनखी (हिं. स्त्री०) कटाच, पांखका इशारा, तिरही। खेते हैं। अन्य श्रेणीवालोंसे इनमें कुछ विशेषत्व नजर। रहता है। कनफटे अपने कर्णके छिद्रोम कुण्डल कनखुरा (हिं. पु.) वृणविशेष, रोहा, एक घास। पहनते हैं। यह कुण्डल पत्थर, विचार, गैंडे के गृह, यहासाममें अधिक उत्पन्न होता है। महोया सकड़ीके बनते हैं। दोचाके समय इन्हें कनखैया (हिं. स्त्री०) १ कनखी, कटाक्ष, तिरको प्रथम धारण करना पड़ता है। कुण्डल मुद्रा वा नजर । (वि.)२ कनखी मारनेवाला, कटाच करने- दर्शन कहाते हैं। इसोसे कनफटॉका नाम दर्शन- वाला, जो पांखको पुतली घुमाकर इशारा करता हो।' योगों भी है। इन कुण्डों को छोड़ यह १२