पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७०९

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कनफटा: अङ्गलिप्रमाण एक कृष्णवर्ण पदार्थ पशमके डोरसे | एवं हनुमान् प्रभृति देवमूर्ति विद्यमान हैं। स्थानीय बांध अपने गले में डाले रहते हैं। उक्त कृष्णवर्ण पूजक उन तीनो मनुष्यमूर्तियोंको दत्तात्रेय, गोरक्ष. पदा को 'नाद' और पश्मके डोरेको 'मेलो' कहते | नाथ और मत्स्येन्द्रनाथ बताते हैं। त्रिवेणीसे ४५ हैं। नाद, मेली और दर्शन रखनेवाले योगी दूरसे | कोस दक्षिण महानाद ग्राममें जटेखर नाम एक ही कनफटा मालम होते हैं। सिवा इसके यह शिवमन्दिर है। यह मन्दिर भी कनफटा योगियोंके कहा वस्त्र सजात, जटा बढ़ात, भस्म चढ़ाते और | अधिकारमें है। जटेवर मन्दिरके निकट वशिष्ठ- विभूतिका त्रिपुण्ड लगाते हैं। गङ्गा नामक एक जलाशय विद्यमान है। योगी और - गुरु गोरक्षनाथ इस सम्मुदायके प्रवर्तक थे। तीर्थयात्री इस जलाशयको प्रवत गङ्गाको भांति कनफटे गोरक्षनाथको शिवका अवतार मानते हैं। पवित्र मानते हैं। जटेश्वरके मन्दिर में एक योगी फिर गोरक्षनाथने ही हठयोग भी चलाया था। रहते हैं। उनके यथेष्ट विषयादि विद्यमान है। इसीसे कनफटे योगी आदि गुरुका प्रचारित पथ ज़मीन्दारी की भी धूमधाम रहती है। लोग उन्हें पकड योगाभ्यास किया करते हैं। योगीराज कहते हैं। योगी राजावोंका वंश बर सन्यासियों की भांति कनफटे योगी भी नाना गुरु कालसे प्रचलित है। वह दारपरिग्रह नहीं करते। मानते हैं। फिर इन गुरुवोंमें कोई शिष्यको मस्तक योगीराजाके मरनेपर शिष्यों में एक मन्दिर पौर मुडाने, कोई कर्ग में मुद्रा सटकाने और कोई ज्योत्- | विषयादिका उत्तराधिकारी होता है। जटेखर शिव मार्ग में जानका पादेश देता है। योत्मा' देखो। और वशिष्ठगनाको उत्पत्तिपर एक प्रवाद है-किसी । पश्चिमाञ्चलमें इस श्रेणीवाले योगी समय महानाद ग्राममें एक दक्षिणावर्त शङ्ख श्रा सचराचर देख पड़ते हैं। यह सभी शिवको पूजामें गिरा था। वायु लगने पर उससे 'महानाद' अर्थात् समय बिताते और किसी न विसी शिवमन्दिरमें महाशब्द निकल पड़ा। फिर देवतावोंने उस शब्दसे अपना पाश्रम जमाते हैं। कहीं कहीं अनेक कनफटे चौंक और वहां पहुंच अटेश्वर लिङ्ग तथा वशिष्ठ- एकत्र र भिक्षा द्वारा अपना जीवन चलाते और गङ्गाको प्रतिष्ठित किया। शक्के महानादसे ग्रामका कोई सीधनमणके उद्देश्यसे देश-देशान्तर घूम-फिर नाम भी महानाद रखा गया। पाते हैं। कनफटा योगियों में अधिकांश उदासीन कनफटे योगियों में चौरासी सिद्ध योगियों का नाम होते हैं। फिर कोई-कोई विषयकार्यमें भी लिप्त विशेष विख्यात है। हठयोमप्रदीपिकामें हठयोग- रहते हैं। इनका उपाधि नाथ है। माहात्माके वर्णनस्थलपर निम्नलिखित कई नाम गुरु गोरक्षनाथके नामपर युक्त प्रदेशमें अनेक | पाये जाते हैं-आदिनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, सारदानन्द, स्थानोंका नामकरण हुआ है। यह सकल स्थान भैरव, चौरङ्गि, मौन, गोरक्ष, विरूपाक्ष, विलेशय, कनफटे योगियोंकी तीरभूमि है। पेशावरमें गोरक्ष मछुन भैरव, सिबोध, कन्यड़ी, कोरण्डक, स्थिरानन्द, क्षेत्र नामक एक स्थान है। फिर दूसरा गोरक्षक्षेत्र सिझपाद, चपंटो, कण-पूज्यपाद, नित्यनाथ, निरन्जन, हारकाके निकट पवस्थित है। हरिहारके निकट कापालि, विन्दुनाथ, काकाण्डोखरमय, अक्षय, एक सडङ्ग' पड़ता है। यह मुड़ङ्ग और हारकाका | प्रभुदेव, घोड़ाचुलो, टिएटमी, भन्नटी, नागबोध और गोरक्षेत्र कनपटे योगियोंका अति अध्य तौई है। खण्डकापालिक। यह सब महासिह रहे। .. नेपाल के पशुपतिनाथ, मेवाड़ के एकलिङ्ग प्रभूति |, युक्तप्रदेशका गोरक्षपुर कनफटोंका प्रधान स्थान विख्यात शिवमन्दिर भी उन्हीं के सम्प्रदाय संक्रान्त हैं। है। पहले वहां इनका एक मन्दिर रहा। पला. करूको के पास दमदमेमें 'गोरक्ष-बांसरों' नामक एक उद्दोन्ने उसे तोड़ फोड़ उसो जगह एक मसजिद खान हैं। वहा सीन मनुष्यमूर्ति और शिव, कालो। वनवा दौं। कुछ काल पोछे उसी अमा, फिर एक,