०१२ कनफुची शिक्षा देने लगे। किन्तु कनफुची प्राचीन शास्त्रही। समाधिस्थल वा एतद् उहेश्यसे निर्दिष्ट निज भवनके पढ़ाते थे। उन्होंने अपने मनमें सोचा-प्राचीन . किसी एहमें गृहस्थको मृत व्यक्ति के लिये कितना धर्म कर्मपर प्रथमतः दृढ़ अनुराग बढ़ा और सकल हो कार्य बनाना और गुणादि गाना पड़ता है। विधिनिषेधादि प्रत्येकके द्वारा प्रतिपालन करा सकनेसे इसीसे वर्तमान काल चीन देशमें पापामर साधारणके लोगोंका चरित्र क्रमशः सत्कार्यको प्रोर चलेगा। मध्य मृत व्यक्तिके उद्देश्यपर वार्षिक उत्सव मनाने इसी समय इन्होंने कार्यका भार छोड़ा था। छात्र और अपने भवनमें 'पिपुरुषका यह' बनानेकी प्रथा पाये हुये यत्सामान्य वेतनके अवलम्बनसे ही दिन | चल गयी है। बिताने लगे। इसी प्रकार स्वीय उद्देश्य कार्य में परिणत करनेपर २२ वत्सरके वयःक्रमकाल कनफुचीने शिक्षकता- सक्षम होते देख यह कुछ प्राबाद एवं प्राशामें डूब . को अवलम्बन किया था। उसी वत्सर (ई०से ५२४ और कार्यजगत्से अशौचके तीन वत्सर अपमृत हो . वर्ष पहले) इन्हें माववियोग देखना पड़ा। इस अपने गहमें ही रहने लगे। के कारण यह समस्त कार्यसे विरत हुये। अशौचका काल बीतनेपर कनफचीने लु राज्य में क्योंकि उस समय चीनमें प्रथा रहो-पिता और माता ही ठहर इतिहास, साहित्य और सङ्गीतविद्याकी दोमें एक भी मरनेपर पुत्रको कोई कार्य करने का पालोचना चलायो। जो लोग सोखने पाते, वह अधिकार नहीं। फिर कनफचीने स्वयं प्राचीन रीति प्रति यत्नसे उपदेश पाते थे। अधिक वेतन देने पर नौति पुन: चलानेको प्राणपणसे चेष्टा लगायो। भी यह किसीका पक्षपात करनेसे दूर रहे। कनफुची सता ऐसे समय यह उक्त प्राचीन नियमादि पालन सबको समान यनसे बराबर उपदेश देते और अपनी - करनेसे पश्चात्पद न हुये। निर्मलता तथा शास्त्र प्रियता कार्यमें देखा लोगोंका एतद्भिन्न इम्होंने यह भी ठहरा लिया था-निकट मनोवेग खींच लेते थे। उस समय देशके मध्य यह वर्ती किसी पतित भूमिमें मादेह समाहित न कर | सर्वापेक्षा शास्त्रवित, साधूत्तम और सत्कर्मचारी रीतिके अनुसार पायोजन और महोत्सवसे अन्त्यष्टि पण्डित बन गये। सुतरां किसी विषयपर विरोध क्रिया बनायेंगे। प्रबन्ध भी ऐसा ही हुवा। देशक | बढ़नसे लोगोंको इनके निकट मीमांसा लेने पाना साधारण लोगोंने देखकर समझा था-पण्डितवर पड़ता था। ऐसे सुयोगमें यह यथारोति उपदेश दे कनफचौके अबलम्बन करनेसे यही प्रथा शास्त्रानु- पपना उद्देश्य निकालते रहे। इनके उपदेशको मोदित और हमारा भी अवलम्बनीय कार्य है। 'महिमामें सुग्ध हो क्रमशः लोग इच्छा वा अनिच्छासे इनका भी गूढ उद्देश्य वही रहा। कारण इन्होंने | देशको प्राचीन रीतिनीतिपर पास्था और श्रद्धा देखा-देशके लोगोंको धारणाशक्ति इतनी घटी, कि. बढ़ाने लगे। केवल उपदेशसे कोई बात बननेको नहीं। सुतरां २५ वत्सरके वयस (ई.से ५२१ वर्ष पहले) पर कनफचौ स्वयं पुखानुपुखरूपसे प्राचीन शास्त्रको नीति- कनफुचीने 'सियाङ्ग' नामक किसी सङ्गीतवेत्तासे सीख पर चलते थे। इसी घटनाके पीछे एकान्त होनावस्थाके सङ्गीतविद्या में पूर्णक्षमता पायौ थी। बाल्यकालसे ही सोगोंको छोड़ सकल व व शक्ति के अनुसार अन्त्येष्टि- इन्हें सङ्गीतपर बड़ा अनुराग रहा। एकादिक्रमसे क्रियाका उत्सव करने लगे। वही प्रथा आज भी | १५ वत्सर साधना करने पर इन्हें सङ्गीतमें आशानुरूप चल रही है। सिद्धि मिली। अवश्य कनफुचीको आडम्बर अच्छा लगता न था। ____लु राज्यमें किसी प्रधान मन्त्रीके डोकी और इन्होंने अन्त्येष्टिक्रियाको जो प्रथा चलायो, उसमें एक नानकचङ्गस्थी नामक दो पुत्र इनके शिथ हुये । उनको अति सुन्दर व्यवस्था लगायो है। भलिबचा देखानेको थिय कर कनफुची देशके मध्य महा सम्मान पौर
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१३
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