कनफुची वहाके पात्र बन गये थे। पूर्वापचा लोग इन्हें द्विगुण कनफची सि-राज्यको द्वितीय उद्देश्यसे गये। भक्तिको दृष्टिसे देखने लगे। इन्होंने सुना था-सान सम्राटको पदावली इन दिनों - ऐसे ही समय इनके मनमें एक नतन भाव उठा। केवल सि राज्यके गायक ही जानते हैं। उता पदावली पहले ही बता चुके इस समय प्रत्येक देशके पधि सौखनेको यह बहु दिवसावधि चेष्टा करते रहे। राज- पति नाममात्र सम्राटके अधीन रहे, किन्तु कार्यतः धानोक प्रवेशकाल इन्हें पदावलीका एक गान हठात् सभी स्व स्व प्रधान और राज्यनियम चलाने में स्वतन्त्र | सुन पड़ा। उससे यह इतने मोहित हुये, कि गानके थे। यह नियम अविकत भावसे पालन कर देशके उद्देशानुसार तीन मास मांसस्पर्शसे अलग रहे। मध्य शृङ्खला बांधने में कठिनता पड़ी। अधिपति सर्वदा पदावलीके स्वरसम्बन्धमें कनफुची कहत-सङ्गीत- स्वार्थपर, अर्थलोलुप, अविमृष्यकारी, प्रतारक, यथेच्छा- खरके इतने सुमिष्ट पोर सर्वाङ्गसुन्दर शेनेको धारणा चारी और दुष्टबुद्धि पारिषदोंसे परिवृत हो केवल हम रखते न थे। कुप्रवृत्तिके दास बने थे। कनफुचीने सोचा-जितने सि-राज्यको जाते समय ताई पवैतपर एक घटना दिन राजावोंका चरित्र न सुधरे, उतने दिन प्रजाके हुयो। इस स्थानपर उसका विशेष विवरण दिया मध्य भी प्रकृत परिवर्तन न पडेगा। सुतरांने इन्होंने गया है। इसीसे स्पष्ट समझ लैवे-कितने सामान्य ठहरा लिया-किसी राज-दरबारमें घुस उद्देश्यको सामान्य विषय उठा कनफुची खीय छात्रों को सटुपदेश सिधिका पथ ढ़'टेंगे। किङ्गसुकी मध्यस्थतासे इनका, देते थे। शिष्योंमें अनेक इनका साथ छोड़ते न रहे। उद्देश्य सफल हुवा। इन्हें चाउ राज्यके सामन्त सि-राज्य जाते समय भी वह कनफचौके साथ थे। राजाको सभामें स्थान मिला था। वहां यह राज- सब लोग ताई पर्वत पतिक्रम करते किसी नीति-कुशल न कहाये। कनफची सामन्तवंशके, समाधिस्थान के निकट उपस्थित हुये। उसो स्थानपर प्रतिष्ठाताका उद्देश्य और न्यायव्यवहार देखनेको एक बैठी एक स्त्रो रोती थी। कनफुचौने खदलके साथ वत्सर उक्त राज्यमें रहे। फिर यह स्वदेश लौट निकट पहुंच उससे शोकका कारण पूछा। स्त्रीने पध्यापनाके कार्यमें लगे थे। इनका यशः चारो ओर उत्तर दिया-इसो स्थानपर हमारे श्वशुरने व्याघ्रके फैल गया। छात्र भी प्रायः ३८०० एकत्र हुये। मुखमें प्राण-विसर्जन किया, इसी खानपर हमारे इसी समय लुके राजाने गुणसे मोहित हो इन्हें पतिको वापदने खा लिया और इसौ स्थानपर हमारे राज्यके विचारक पदपर नियुक्त कर दिया। कनफुची एकमात्र सन्तानका रक्त किसी व्याघ्रने पिया है। सकल समय विचारकके पदपर बैठते न थे। जब यह इन्होंने कहा-फिर माता! तुमने ऐसे भयङ्कर स्थल- उक्त पदपर बैठ देशको कुछ न कुछ मुविधा पहुंचा पर क्यों अवस्वान किया है। स्त्री बोल उठी-यहां सकते, तभी कार्यका भार अपने ऊपर रखते और रहने में कोई विशेष कठ नहीं, किन्तु प्रजापोड़क जितने दिन अभीष्टसिद्दिके पक्षमें व्याघात न लगते, अत्याचारी राजाके राज्यमें ठहरना कठिन है। उतने दिन पदको परित्याग न करते। कमफचौने अपने शिष्योंको बोला कर समझाया । नानारूप चेष्टा चलाते भी कनफुची सम्यक् फल था-वत्सो ! सुना तो सही, अत्याचारी प्रजापोड़क पा न सके थे। लु राज्यमें 'कि', 'सु' और 'मङ्ग' नामक राजा व्याघ्रको अपेक्षा भी अधिक भयकर होता है। तीन वंशके लोग प्रधान राजपुरुष रहे। वह राजासे अपने राज्य में पाते सुन सिके राजाने इनकी सद्भाव रखते न थे। शेषको सबने एकत्र हो राजासे अभ्यर्थना करनेको लोग भेजे थे। कनफुचो राज- युद्ध किया। युद्धमें हारे लुके राजा अपना राज्य सभामें आये। सिके राजा इनसे कथनोपकथन कर कोड सि-शज्यको भागे थे। कनफचीने भी उनका अत्यन्त प्रसव हुये। फिर उन्होंने इन्हें खराज्यमें अनुगमन किया। प्रतिष्ठित करनेको 'लिनकि नामक नगर समस्त Vol. ' III: 179 ।
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