पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१६

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कनफुचौ ०१५ मोहजालमें फंसे। राजकार्य दिन दिन उत्सव होने | सकता। लोगोंके मोहमें फंस उता सम्बन्ध बिगाड़नेसे लगा। राजपुरुष उच्छङ्गल बने थे। विलासिनियोंके समाजमें इतनी विशृङ्गला पाती है। किन्त मनुष्पमें प्रीत्यर्थं राजा नित्य नूतन महोत्सवका अनुष्ठान करने सत्वके अवलम्बनको स्पृहा स्वभावतः अधिक है। लगे। इसीप्रकार राज्य श्रीहीन हुवा था। राजा सुतरां सत्पथके अवलम्बनको सुविधा मिलने पर वह विलासियों में अग्रगण्य बने। कनफचौने उनको मति अपनी इच्छासे कभी मोहमें नहीं पड़ता। कनाचो गति फेरनेको यथेष्ट चेष्टा की थी। किन्तु समस्त कहते,–'वायुभरसे दोघे दोघे वण मुकनेकी भांति पायास वृथा गया। कुछदिन पोछे राजा रमणी-कुहक ज्ञानो व्यक्ति के सामने साधारण लोग अवनमित होते से अत्यन्त इतबुद्धि हुये। कनफचौके उपदेश देने को हैं। राज्यमें प्रादर्श राजा रहनेसे प्रजा भी आदर्श जानेपर उन्हें क्रोधोट्क उठता था। अवशेष राजा प्रजा बन जाती है। हम आदर्श राजा बना पौर कनफ चौको सुपथका कण्टकस्वरूप समझ मारने उसका गुण बता सकते हैं। हम यह भी देखा वा आमरगा कारागारमें डालने पर कृतसङ्कल्प हुये। देंगे-प्राचीन काल आदिवंश-स्थापयिता स्वाङ्गि-वंशके ___ इतने दिनोंमें इन्होंने स्थिर कर लिया था-लु आदिपुरुष विनतम स्वाङ्गि ओर चोन देशमें प्रथमतः राज्यमें रहनेसे हमारा या राजाका-दोमें किसीकावंशानुक्रमिक राज्य के प्रतिष्ठाता पण्डितवर 'धारने कल्याण न होगा। इसोसे कनफ चोने वह देश छोड़ने किस प्रकार कार्य किया था। इन सकल प्रादर्श को ठहरायो। यह इस बहाने अपना पद छोड़ चच लोगोंके अनुकरण और हमारे उपदेयानुसार यदि दिये-'राज्यके मङ्गलार्थ देवोद्देश्यसे वलि चढ़ता कोई चले, तो वही देशके मध्य प्रधान राजा बने तथा है। किन्तु राना बहुत दिनसे वलिका मांस राज्यके सुखी प्रजाके साथ महासुखसे अपना कालमापन भित्र भिन्न प्रदेशोंको भेजनेमें शैथिल्य देखाते हैं। करे। एक वत्सर हमारे उपदे यानुप्तार राजाके कार्य कनफ चीने मनमें सोचा था-सम्भवतः राजा और करनेसे हम राजत्रो बदल सकते हैं। फिर तोन मन्त्रीको मतिगति फिरनेसे हम फिर बोलाये जायेंगे। वतसर हमारे वशमें रहनेसे राजा उता सकल सुख किन्तु वैसा सुयोग न लगा। यह ५६ वत्सरके उपभोग करेगा। वयसमें देश घूमने निकले थे। यह ५६ वत्सरके वयस पर सु राज्य से निकल शासनप्रणालोके सम्बन्धमे कनफचौको धारणा | सि, गुसि, चु प्रभृति राज्यों में स्वोय मत फैलाते प्रमाने अतीव मनोहर रही। यह कहते-राजाके राजा, लगे। कनफुचोको प्राथा रहो-किसी न किसी मन्त्री मन्त्री, पिताके पिता और पुत्रके पुत्र रहते हो राजाको हस्तगत कर खोय अमाष्ट बनायेंगे। किन्तु राज्यमें अधिक सुख होता है। समाजके सम्बन्धमें उस आशाके पूर्ण होनेका सुयोग कह देख न पड़ा। भी कनफुचौका मत अति उच्च था। यह समाज कनफचौको धर्मनीति वा राजनीतिका अवलम्बन विला- बांध वास करने को ईश्वराभिप्रेत बसाते रहे। पांच सियों के लिये दुःसाध्य हो गया। इनके सकल नियमां सम्बन्धोंसे ही समाज बनता है-राजा-प्रजा, पति पर चलना तो दूर रहा, उनके नामसे ही लागाँको पत्नी, पितापुत्र, ज्येष्ठकनिष्ठ और बन्धु। राजा प्रकृति भय और सोच लमा। राजपुरुष सोचते थे-कहीं प्रथम चार लोगोंका धर्म कट व पौर प्रजा प्रकृति इसी समय कनफुची पाकर हमारे कार्यका प्रतिवाद शेष चारका धर्म वश्यता है। न्यायपरता तथा दयापर न लगायें और इतने दिनके लाभ एवं भामाद-प्रमोद- कटत्व और न्यायपरता एवं ऐकान्तिको श्रद्धा-भक्ति- कतिको श्रद्धा-भक्ति- को हानि पहुंचायें। राजा विचारते रहे-क्या इसो पर वश्यता स्थापित होनेसे समाजमें सुखस्वाच्छन्द्य . समय कनफुचौ पापौर शासनकार्य वा प्रजापालनका रहता है। फिर बन्धुभावसे दोनों में परस्पर उबतिको दोष देखा हमें व्यतिव्यस्त तो कर न डालेंगे। साधा- चेष्टा करनेसे हो समाजमें कोई गड़बड़ पड़ नहीं रख लोग समझते धे-'इतने दिन हम बडे मख.