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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७२४

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२३ उनको आकाशके उद्देश्यसे राजा पूजादि प्रदान करते । । चिकनी-चुपड़ी बातोंमें अधिक सत्व नहीं हैं। क्योंकि दोनों में एक दिन अव वपन किया| रहता। और दूसरे दिन काट लिया जाता है। ३। विश्वास और दृढ़ताको हो जीवनका प्रथम . कनफ चौके मतमें मनुष्यका देह दो विषयों से | लक्ष्य ठहराना चाहिये। बना-पाइला सूक्ष्म, अदृश्य एवं अर्ध्वगामी और दूसरा ४। मनुष्य के हमें न पहंचाननेसे कोई दुःख स्थल, इन्द्रियग्राह्य तथा निम्नगामी है। इन दोनों नहों: दःख इमो बातका है-हम मनुथको पहंचान मूल-विषयों के पृथक् होनेसे सूक्ष्म देह आकाशको| न सके। उड़ और स्थल देह पृथिवीमें मिल जाता है। इनके । चिन्ताशून्य विद्या में वृया हो परिवन नष्ट दर्शनमें 'मृत्यु' नामक कोई बात नहीं। स्थल देह होता है। विद्याशून्य चिन्ता भी सर्वनायकर है। मट्टीसे मिल जगतके अंशमें गण्य होता है। किन्तु । क्या हम तुमको सिखायेंगे-नान किसे सूक्ष्म देह चिरवर्तमान रहता और मध्य मध्य पृथिवी कहते हैं। ज्ञान वही है, जिसे तुम जानो उसे मानो पर अपने पूर्व वासस्थानको पा पहुंचता है। यह और जिसे तुम न जानो उसे पहचानो। अर्थात् सकल सूक्ष्म देहभूत पूजा पानपर अपने वंशधरों का किसो व्यक्ति-विशेषको नानी मानने, अपनी पन्नता मङ्गलविधान करते हैं। इसीस चौनावों के पिल जानने और किसीके चमका यथार्थत्व पहचाननेसे . मन्दिरमें उत्सवादि मनाने की व्यवस्था है। चीना ज्ञानका सच्चा स्वरूप देख पड़ता है। इन सकल उत्सवों पर इतनी भक्ति और चेष्टा देखाते, | ७दृष्टि पड़नेसे गुणवान लोगों में हमें समता कि दूसरे लोग पाश्चर्यमें आ जाते हैं। दर्शन करना उचित है। फिर यदि विपरीत खभावके चीनावोंको विश्वास है-यदि हम ऐसा न करेंगे, | खोग देख पड़ें, तो हम पन्तदृष्टिसे अपनी पाप तो पूर्वपुरुषों के सूक्ष्म देह पिटमन्दिरमें कैसे घुसेंगे परीक्षा करें। अथवा वंशधरोंका प्रेम एवं यत्न कैसे ग्रहण कर ८। प्रथम व्यवहारमें लोगोंकी बात सुनना और सकेंगे। उनके पाचरणको प्रशंसा करना पड़तो है। फिर कनफ ची वा शिष्य ईश्वरको कोई भावति किंवा | उनकी बात सुन उनके पाचरणपर लच्छ रखना प्रतिमा मानते न थे। यह साधारणतः लोगोंको पावश्यक है। सिखाते रहे-दूसरेसे जैसे व्यवहारको प्रत्याशा रखें, का जिकिङ्गने कहा-मैं जैसा व्यवहार पाना . दूसरेके साथ व्यवहार करते समय वैसे ही आप भी वैसा हो व्यवहार देखाना भो चाहता इं। कनफचौने चलें। कनफुची पदृष्टवाद स्वीकार करते थे। उत्तर दिया-किन्तु उतनो दूर अग्रसर होनेको दृढ़ता यह अपने शिष्योंसे कथनोपकथनके समय बहु- तुम्हें कहां है! मूल्य मन्तव्य प्रकाशित करते रहे। पोछे उन्हीं । ज्ञानी लोग बातमें बड़े, किन्तु व्यवहारमें -सबको जोड़ 'दर्शनशास्त्रका कथनोपकथन' नामक | बड़े रहते हैं। ग्रन्थ बना। उक्त मन्तव्य अति सुन्दर एवं बहुमूल्य ११। इसपकार पपने मनमें ठहरा चाराधना रहनेसे नीचे उहत करते हैं। उन्हें पढ़नेसे कनफु चौके | करना चाहिये-भगवान् हमारे सामने बैठे हुये हैं। भूयोदर्शन और सर्व विषयको विचक्षणताका परिचय | १२। पाराधनाके समय यदि पपना मन उसमें । मिलेगा। | न लगे, तो पाराधनासे दूर ही रहना उचित है। १। जो किसीमें प्रशान्ति देख न सके, उसे यदि १३ । पबके लिये मोटे चावल, पानके लिये कोई ग्राम भी न करे, तो उसके पूर्ण धार्मिक होने में सामान्य जस पौर शयनके लिये तकिया बना अपने क्या सन्देह पड़े! . हायसे काम चला सकते हैं। किन्तु खोया हवा धर्म,