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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७२३

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२२ खास्थ्यभनकर कार्य में हाथ लगाते न थे। इनका उपदेश दिया, उसमें केवल दर्शन-विज्ञानसम्पत्र व्यव- खाद्यादि अत्यन्त परिष्कार कर बनाया और प्रत्येक हार-नीति, समाजनीति और राजनीतिको छोड़ धर्म- प्रकारका व्यञ्जन निर्दिष्ट पात्र में लगाया जाता रहा। कर्म किंवा मत एवं विखास-सम्बन्धीय कोई विशेष यह बहुत ज्यादा खा न सकते थे। भोजनपर बैठ | विषय नहीं लिया। इन्होंने साधारण लोगोंके लिये गल्प उड़ाना इन्हें बुरा लगता रहा। फिर कनफ चौ| एक व्यवहार शास्त्र बनाया था। इस शास्त्र का नाम जो कुछ खाते. उसका कियदंश मन्द होते भी देवताको। लिकि वां लिकिङ्ग है। मनुष्यके जीवन में जो कर्तव्य चढ़ाते थे। विना देवताके नाम उत्सर्ग किये यह | ठहरता, करना पड़ता या किया जा सकता, इस कोई चीज कैसे खा सकते रहे! मद्यपानके . लिये । पुस्तकमें उसका बंधा नियस मिलता है। लिकिङ्गमें कोई निर्दिष्ट समय न था। यह जब चाहते, तभी पितामाता एवं उच्च नौचके व्यवहार और सामान्य शराब पी लेते रहे। किन्तु अधिक मात्रामें शराब जीवनके चरित्रको शोभावर्धनका जो उपदेश तथा पो कनफ ची कभी प्रमत्त बनते न थे। यह बड़े नियम लिखा, वह अति सुन्दर एवं प्रति सहज अव- दयाल रहे। सबको कुछ न कुछ कनफ ची देही देते लम्बनीय समझ पड़ा है। पिताके निकट पत्रको थे। जब लोगों के अभाव किसीका सत्कार होते वाध्यताको ही कनफ चोने समस्त विषयों का मूल न देखते, तब यह य शीघ्र शीघ्र काम करने चल | ठहराया है। इनके मतमें एक परिवार किसी जातिका देते रहे। किसोको प्रनाभाव पड़ने पर कनफ चौ | क्षुद्र प्रादर्थ है। परिवारके मध्य पिता जैसे पुत्रपर स्वयं यथासाध्य साहाय्य पहुंचाने में हिचकते न थे। प्रभुत्व चलाता और पुत्र जैसे पिताको वाध्य पाता, यह जब गाड़ौपर चढ़कर चलते, तब किसी अपरि- वैसे ही समस्त जातिका व्यवहार राजाके निकट चित व्यक्तिको देखते ही अवनत हो नमस्कार करते सन्तानवत् उचित खाता तथा राजा भी समग्र प्रजा- थे। यह किसीको कभी अभिवादनके लिये अङ्गलि | पर पिताका अधिकार पाता है। इसी मूल भित्तिपर उठाते न रहे। इनके निकट सकल हो समान पादर इनके समस्त सामाजिक एवं राजनेतिक नौति स्थापन पाते थे। कनफ चौके मतानुसार श्रेष्ठ और नीच करनेसे चीनमें कभी कोई विशेष विशृखला नहीं लोग में वायु एव' Bणका सम्बन्ध रहता है। वायु पड़ती। चलनेसे ढण सुक ही पड़ता है। सदय व्यवहार करने किसी किसीके मतसे कनफचौ ईश्वरको सत्ता से नीच लोग निश्चय वशीभूत हो जाते हैं। मानते न थे। किन्तु अपने दर्शनसम्बन्धोय सकल . इनको कार्यावलो देखने से भी ऐसा ही समझ | ग्रन्थों में इन्होंने लिखा है-वास्तविक शून्यसे किसी पड़ता है। इन्होंने केवल उपदेशसे नहीं-खयं आदर्श वस्तुका उद्भव कैसे सम्भव है। निश्चय किसी प्रकारका कार्यादिकर लोगों को सिखाया था। . मूलपदार्थ प्रादि अनन्त कालसे विद्यमान है। कारण कनफ चो सङ्गीतविद्यामें बड़े पारदर्शी रहे । सङ्गीत | वा मूल इन्द्रियग्राह्य वस्तुके साथ समभावमें रहता भिन्न इनके मतमें सबको शिक्षा प्रधरी रहती है। है। सुतरां कारण भी अनादि अनन्त कालसे चला पर करत -महोत भिन्न किसी प्रकार मनको पाता है। यह कारण पनन्त, अक्षय, असीम. सर्व जागरित कर नहीं सकते। नौतिके अवलम्बनसे शक्तिमान् और सर्वत्र विराजित है। नील पाकाश विनो गठता. किन्त सांत भिन्न वह गठन अधरा ही शक्तिका केन्द्रस्थान पाता अर्थात इसी स्थानसे ही रहता है।' सङ्गीतको बात चलनेसे कनफ ची एक | प्रधानतः कारणके कार्यका प्रारम्भ हो जाता है। प्रकार पागल हो जाते थे। किसीके विरोध उठानेपरचाकाशसे समस्त जगतके कारणको शक्ति फैलती है। मौन शोध कमर बांध तक करने लगते रहे। इसीसे मध्य मध्य विशेषतः उत्तरायण एवंदधि- चीनीतिकी शिक्षा देते थे।होंने जो पायमके समय जो दो दिन दिवाराव समान पडते.