पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३०

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कनेरा कनौजिया बारहो मास फैला करते हैं। यह एक विषक्ष कनेरिया (हिं. वि.) कर्णिकारकं पुष्पको मांति है। खेतवर्ण पुष्पकै कनेरको जड़ अधिक विषैली रतवणे, लाल, कर्नरके फूलका रङ्ग रखनेवाला। होती है। जब पुष्प गिर जाते, तब ८।१० अङ्कल करिये लाल रङ्गमें कुछ साही रहती है। दोघं एवं अस्थल फल आते हैं। फचोंके अन्तर्गत कनेव (हिं. पु०) वक्रभाव, टेढ़ापन। प्रायः सूक्ष्म वीज रहते हैं। अखके लिये भीषण विष होनसे चारपाईके टेढ़ेयनको हो कनव कहते है। यह हो संस्कृतमें कनेरके नाम-अवघ्न, हयमार, तुरङ्गारि पायोंके छेद टेढ़े ससने और ताना छोटा पड़नेसे प्रभृति पड़े हैं। कनेर कई प्रकारका होता है। चारपाईमें पा जाता है। किसौमें सफेद, किसी में लाल, किसीमें गुलाबी और कनोज, कनोज देखो। किसीमें काले फल लगते हैं। एक दूसरा वृक्ष भी कनौजिया (हिं० वि०) १ कनौजका अधिवासो, जो इससे मिलता-जुलता है। किन्तु उसके पत्र अधिक। कबीज प्रान्तमें रहता हो। (पु.) २ कान्यकुब पस्थल, क्षुद्र पौर भासुर रहते हैं। फिर उसका ब्राह्मण। यह कान्यकुन देशमें रहनेसे ही कमी- पुष्य भी अधिक पृथु एवं पीतवर्ण होता है। पुष्प झड़ जिया कहाये हैं। इनमें खाने-पौनेका बड़ा विचार . जानसे गोलाकार फल पाते, जिनमें गोलाकार और रहता है। अपने प्राबीय एवं सम्बन्धीय व्यतीत समस्त्र वीज पाये जाते हैं। इन बीजोंको हिन्दीमें कोई किसके हाथको बनो पूरी-तरकारी या रोटो- गुन कहते हैं। बालक गोलियों में 'गुल्लू-टोप' खेला दाल खा नहीं सकता। इसीसे लोग कहा करने करते हैं। गुलाबी फलवाला कनेर लाल फलवालेसे हैं-पाठ कनौजिया नो चुरहा। किन्तु कनौजिया मिलता है। किन्तु काले फूलवाले कनेरका उल्लेख ब्राह्मण अपने घरको बनो पूरी तरकारी एक जगहसे निघण्ट रत्नाकर भिन्न दूसरे ग्रन्धमें नहीं। कनेर दूसरी जगह ले जानेमें फसको भांति शब समझते कटु, तिक्त, लघु, शोधन, तुवर, रखन, सुखद और हैं। इसीसे गङ्गा नहानेकी राह लोग पूरी-तरकारी शोथ, रक्तव्रण, कुष्ठ एवं श्लेष्मनाशक है। ( राजनिघए) मठरीमें बांध लिये चले जावे पौर पभिमत स्थानपर पत्रके कोमल रोमको सिकिमके पहाडी लोग जखमसे पहुंच शुद्ध भावसे बैठ हाथ-पैर धो खोलकर रता बहना रोकने में व्यवहार, करते हैं। कोहनमें खाते हैं। कनौजिये चिलम-तम्बाकू भी नहीं पीते। पत्र एवं वल्कल झुलसा और कमलके साथ मिला। कारण यह काम बहुत अशुद्ध समझा जाता है। चेचक पर लगाया जाता है। बङ्गाल और बम्बई विवाहमें कन्यापक्ष वरपचको दहेज देता है। दूसरे प्रान्त के लोग पत्रोंको तम्बाकू बांधने में व्यवहार करते। ब्राह्मणों की तरह इनमें कन्यापचवाले वरपक्षसे रुपया- हैं। फिर बाली विषघ्न समझ पुष्पोंसे कोड़े पैसा कुछ नहीं लेते। फिर उच्च कुलवाला जब मकोड़े दूर रखनेका काम लेते हैं। पत्रोंमें जसको किसी नौचकुलवालेको कन्या खेता, तब उसका 'सान्द्र बनाने का भी गुण विद्यमान है। शहरपर | साखका घर खौक भी कर देता है। बहुतसे कनौजिये 'सिवा कनेरके दूसरा कोई रङ्गदार फूल नहीं चढ़ता। इसौमें मर मिटते हैं। कन्याका पिता वरके घरको "इसका सारकाष्ठ खेतवर्ण और इदकाष्ठ मुटु एवं न तो कोई चीज छुता और न उसके ग्रामका खत कठिन होता है। बङ्गासमें कभी-कभी पानीसक पीता है। कनेरको लकड़ोके तखू ते तैयार किये जाते है। लोग कनौजिया ब्राण पांच शाखामें विभक्त हैं- कहते-इसको लकड़ोपर घोटाई का काम अच्छा कनौजिया, २ सरवरिया, १ जभौतिया, ४ सनाब चलता पौर बढ़िया साज़-सामान् बनता है। और ५ बङ्गाली कनौजिया। कनेरा (सस्नो .) १ हस्तिनी, इधिनी। २ वेश्या | १ कनोजिया-यह युक्तप्रदेशमें उत्तर-पश्चिम-थार रही। जहांपुर तथा पौरोमोत,उचर-कानपुर एवं फतेहपुर, • Vol. III. 183