पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७२९

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कनिष्ठिका करे कौन मांति झगडा मिटे मोहिं बतायो वाम।" , " कनीयस ( स. क्लो.) कनः सूर्यः तस्येदं कनीयं तन मन धनसो' करहुँगो वही तुम्हारो काम । दूपत्वेन सीयत अवसायते, कनाय-सो घार्थ, क । चहत पद्मिनी धमरको फिर भौ दैत भगाय । १.ताम, तां। ताम्रक अधिष्ठ.-देवता सूर्य हैं। विरहमें न्याकुल जब भयौ हाय-हाय चिल्लाय ।। (ta.) २ अल्पार, ज्यादा छाटा। अपेक्षाकृत ताते तजिक क्राधको आलिङ्गन करिले । अल्पवयस्क, ज्यादा कमसिन। बौतौ ताहि बिसारिक मोहिं चमा अब देहु ॥ कनौयान् (म. वि.) अयमनयोगतिशयेन युवा कनिष्ठिका (स० स्त्री०) कनिष्ठा एव, कनिष्ठ खार्थे पल्या वा, युवन-अल्प वा ईयसुन् कनादेशः। १ अनुज, कन टाप् प्रत इत्वम्। दुबैल अङ्ग लि, छिगुनो, सबसे पोछे पैदा होनेवाला । २ अतियुवा, निहायत कम- छोटी उगलौ। सिन। ३ प्रांत अल्प, निहायत कम। ४ वयसमें कनी. (सं० स्त्रो०) कन्-अच् गौरादित्वात् डोष ।। लघु, उम्र में कम । ५ लघु, छोटा । (पु.) कनिष्ठ कन्या, लड़को। सहादर, छोटा भाई। ७ मामलता-भेद। .. कनी (हिं० स्त्री०) १ क्षुद्रकण, छोटा टुकड़ा। कनु (हि. पु०) १३ ण, दाना, टुकड़ा । २ शक्ति, २ होरककण, होरेका छोटा टुकड़ा। ३ किनकी, बल। चावलका छोटा टुकडा। ४ तण्डुलका मध्यभाग, " | कज-कान्य कुल देग। चावन्नका दरमियानी हिस्सा। यह प्रायः कम गलता कने (हि.क्र.वि.) १निकट, करीब, पास। है। ५ विन्दु बूंद। . २ भार, तफ। यह शब्द क्रिया-विशेषण इति भी कनोचि (स. स्त्री०) कन बाहुलकात इचि दोघंञ्च सम्बन्ध कार में सन्नाको भौति पाता है। जैस-' पृषोदरादित्वात्। १ गुमालता, धुंधची। सपुष्प मैरे कन, किसक कन। सता, फलदार बेल। ३ शकट, गाड़ी। | कनेखो (हिं. स्त्री.) कटाक्ष, कनखी, खका कनोन (वै त्रि०) कन्-ईनन्। कमनीय, मनोहर, इशारा। खूबसूरत। कर्नठा (हिं. पु.) १कान, कातरको एक लकडो। "सोऽनोवो उषभः कनौनः।" (ऋक् ) यह घिसते हुये कोल्इको. चारी बार चक्कर लगाता 'कनौनः कमनीयः।' (सायक) है। (वि.) २ काण, काना। ३ एंचाताना, मी कनौनक (सं० पु०) १ चक्षुकी कनौनिका, प्रांखको | अांखवाना। . .. . पुतली। २ बालक, लड़का। कठो (हिं॰ स्त्री.) कानको घुमाई, गोशमाली, कनीमका (सं० स्त्री०) १ कन्या, लड़की। २ कमनीय | कानागायो। शासभचिका, गुड़िया, कठपुतली। कनेतो (हिं० स्त्री०) धन, रुपया। यह शब्द दला: कनौनिका (सं० स्त्री.) कनीन संज्ञायां. कन्-टाप लोंको बोली में चलता है। प्रत इत्वम् । १ पक्षिसारक, प्रांखको पुतलौ। कनेर (सं० पु०) कर्णिकार, एक पेड़। यह लम्बा २ कनिष्ठाङ्गलि, छिगुनी, सबसे छोटो उगली। वृक्ष हिमालयके नीचे यमुनासे बङ्गाल, चट्टग्राम और ३ प्रखको नासाके समोपका भाग, घोड़ेको नाकके ब्रह्मदेश पर्यन्त मिलता है। कोइनमें भी कनेर पासका मुकाम। पाया जाता है। पत्र १२. अङ्गल दोघं, १ पङ्गत कनीनी (सं० स्त्रो०) कन्-इन्-डोष। कनौनिका देखो।। पर्यन्त प्रशस्त, साक्षणाय, कठ र, चिकप और घोर कनीय पञ्चमूल (सं० लो०) विकण्टक, बहतीहय, , हरिह होते हैं। फिर शाख से दा.पब आमने सामने पथकपणे और विदारिंगन्धाका मूल, गोखरू, दोनों फटा करते हैं। शाख से खेत ,दुग्धनो व हगत हाता बटया, सरवन और कड़वो तोबोकौं जड़ें। है। किसो कनेरमें खेत एवं किसां व प्रेष्य