पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३३

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कनौठा-कन्द उपनिवेश किया था। इनके आदिपुरुष चितीश, । और दुष्य वेशा है। राजनिघण्ट के मतसे यह कटु, वीतराग, सुधानिधि, सौभरि और मेधातिथि रहे। तिक्त, उष्ण, अग्निदीपक एवं रुचिकारक और कफ, उक्त पांचों लोगोंके वंशधर बल्लालसेनके समय १५६ ! वायु, शोथ, रता, ग्रन्थि तथा ज्वरनाशक होती है। घरोंमें बंट गये। उनसे १५० घर वरेन्द्रभूम और कन्या (सं० स्त्रो०) कम् बाहुलकात् थन्-टाए । ५६ घर राढ़में रहते हैं। १ स्यूतकपेट, कथरी, गुदड़ी। कितने ही फटे कपड़ वारेन्द्र ब्राह्मणोंमें ८ घर श्रेष्ठ वा कुलीन हैं। इकट्ठा कर यह सी जाती है। दरिद्र भिक्षुक इसे यथा-१ मैत्र, २ भोम कालि, ३ रुद्रवागची, मोढ़ शीत काटते हैं। २ मृत्तिकाका क्षुद्रप्राचौर, ४ सञ्जामिनी वा सान्याल, ५ लाहिड़ी, ६ भादुड़ि, मट्टीको छोटी दीवारं। ३ उशीनर राज्य का एक ७ साधु वागचों और ८ भादड़। फिर वारेन्ट्रों में नगर। ४ चौर, ओढ़नी। ५ तूलपूर्ण गात्रवस्त्र, ८ घर राजश्रोत्रिय और ६४ घर कष्टथोत्रिय भी हईका कपड़ा। वृक्षविशेष, एक पेड़। ७ देश- होते है। विशेष, एक मुल्क। राढीयों में घर कुलीन रहते हैं-१ मुखटी वा कन्याधारी (सं० पु०). कन्या-ध-णिनि। भिक्षक मुखोपाध्याय, २ गाङ्गलि (गोली), ३ कातिलाल, फकीर। ४ घोषाल,५ वन्दीघाटी वा वन्योपाध्याय और ६ चाटुति कन्यारी (सं० स्त्री०) कम्-अरन्-थुक् । वृक्षविशेष, वा चट्टोपाध्याय। एतव्यतीत १० घर श्रोत्रिय भी हैं। एक पेड़। कन्यरौ देखो। .. ब्राप्रब, कुलौन, वारेन्द्र, रादौय प्रभृति शब्द देखो। कन्येवरतीर्थ (सं० लो०) एक प्राचीन तीर्थ । कनौठा (हिं. पु.) १ कोण, कोना, किनारा। कन्द (सं० पु०-क्ली०) कन्दयति जिह्वाया वैलव्यं २ कनिष्ठ, छोटा हिस्सेदार।। जनयति, कदि-णिच-पच । १ पोल, जिमौंकन्द। कनौड़ा, कनड़ देखो। बोल देखो। २रतामूलक, लाल मूली। ३ कासालुक, कनौती (हिं. स्त्री०) १ पशवों के दोनों कान या रताल। ४ खेतलक्ष्ण-बहुपुटक कन्दविशेष, एक उनको चलफिर । २ मुरकी, कानको छोटो पौर सफेद, उमदा और कई तहको कन्द। लोग इसे मोटी बाली। सर्पच्छत्रक ( सांयका छाता) कहते हैं। ५ हस्ति- कन्त ( स० वि० ) के सुखं अस्यास्ति, कं-त। कन्द, सफेद बड़ी मुली। ६ शालूक, शलगम। कंसमस्याब्वभपुस्तितुतयसः। पा रा१६८। १ मुखी, प्रसन्न,खुश । ७ ग्रासन, गाजर। ८ सुगन्धिटणविशेष, एक खुशबू- (हिं० पु०) २ पति, स्वामी, ईखर, मालिक। दार घास। 2 गुड़ । १० शर्करा, शकर। ११ पिण्डा- कन्ति (सं० वि०) के मुखमस्यास्ति, कं-ति। लुक, गोल आलू । १२ सुखनीति नामक कन्द। सुखशाखी, खु.श-खु.रम् । १३ शस्यमूल, अनाजको जड़। १४ फलहोनौषधि- कन्तु (सं० पु०) कामयते, कम-तुं। कमिमनिबनि मूल, फल न देनेवाली बूटोको जड़। १५ मेघ, नामावास्यिय । च ।। १ कामदेव। दय, दिल। बादल । १६ छन्दोविशेष। इसमें तेरह-तरह अक्षरके ३ धान्यागार, वत्ती, खलयान। (त्रि.) कं सुखं चार पाद होते हैं। १७ योनिरोगविशेष, औरतोंके अस्थास्ति। ४ मुखी, खु.श। ...... पेशाबको जगह होनेवाली एक बीमारी। (Prolap- का (हिं) कंत देखौ। .. . sus uteri ) दिवानिद्रा, अतिरिक्त क्रोध, व्यायाम, कन्चक (सं• पु.) एक प्राचीन ऋषि । पतिमैथन एवं नख दन्तादिक तसे वाय, वित्त कवरी (सं० स्त्री०) कम्-प्र-रन्-थक पषोदरादित्वात् और कफ भड़क योनिदेशी पूयरलवणं मन्दारके झाए । विशेष, एक पेड़। इसका संस्थत पर्याय- फल-सा जो रोग उठ पाता, वही कन्द कहाता हैं। कामारी, कन्या, दुर्धर्षा, तोचकटका, तीखगन्धा वातिक वैतिक अधिक चौर माविणतिक भेटी