पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३४

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पादपा-कान्दवान् ०३१ यह रोग वातिक, पैत्तिक, नेमिक और साविपातिक- नतन मोमव डाल सुखा ले। यह विष प्रयोगाम चार प्रकारका होता है। वातिक कन्द रक्ष और भागके मानसे पड़ता है। स्फटित अर्थात् फटा फटा रहता है। पैत्तिक कन्द कन्ट ( सं. को.) कदि-पटन्। शलोत्पल, अधिक रतवर्ण लगता और ज्वर तथा दाइ उत्पन्न । खानके लायक सफद नौलोफर । करता है। लेमिक कन्द तिल-पुष्प तुत्य और कन्दवा (सं० लो.) विशेष, एक घास । कण्ड युक्त होता है। साबिपातिक व्यतीत तीनों कन्द (सं.वि.) कन्द बनाने या पहुंचानेवाला, प्रकारके अन्य कन्द चिकित्सासे आरोग्य हो जाते हैं। जो डला बनाता या पहुंचाता हो। चिकित्सा-गैरू, आमको गुठली, बिड़त, हलदी, कन्दनालका (सं. स्त्रो०) मोजिता, गोभो। रसाजन और कट फल सबका चर्ण मधुके साथ कन्दपञ्चक (स. क्लो) पांच कन्द, पांच डले। योनिमें भरने और विफलाके क्वाथमें उक्त सकल तैलकन्द, अहिनेत्रकन्द, मुकन्द, क्रोड़कन्द और द्रव्यों का चूर्ण मधु मिला योनिको प्रक्षालन करनेसे रुदन्तीकन्दके समूहको कन्दपञ्चक कहते हैं। यह कन्दरोग निवारित होता है। फिर इन्दुरका मांस तामादिरसमारक, सिग्ध और सर्वरागहर होता है। एवं तेल एकत्र गैट्रमें पका योनिपर मलने और (यकनिषष) इन्दरके मांस तथा सैन्धवसे योनिमें खेद प्रदान करने | कन्दपत्र (सं.पु.) महातालीथपत्र । भी योन्य अर्थात् कन्दरोग मिट जाता है। (चक्रदच) कन्दफना (सं. स्त्री.) कन्दात् कन्दमारभ्य फलं पारसीमें जमी हुई चीनी या मिसरीको कुन्द यस्याः, बहुव्रो१चुटुकारवेक्षक, करलो।२ विदारी, कहते है। विलायौकन्द। कन्दक (सं० पु०) कन्द स्वार्थे कन्। १ कन्द ।। कन्दबहुला (सं० स्त्री० ) कन्दादारभ्य कन्देन कन्देषु कन्द देखो। २ वितान, तम्बू। ३ मुखालु, शकरकन्द । वा बहुला, ५मो श्या व मो तत्पुरुष। विपर्णी, ४ वनशूरण, जङ्गली जिमौकन्द । एक डलेदार पौदा। कन्दगुडची (सं० स्त्री०) कन्दोद्भवा गुड़ चौ, मध्यपद- कन्दमन (सं० लो०) कन्दएव मूलमस्य, बहुव्री। लो। गुड़ चौ विशेष, किसी किस्मको गुच। इसका मूलक, मूली। नेपालको तराई में बहुत बड़ी मूखो संस्कृत पर्याय-कन्दोद्भवा, कन्दामृता, बहुच्छिन्ना, होती है। हिन्दी में कन्द और मूल दोनों को 'कन्द- बहुग्रहा, पिण्डालु और कन्दरोहिणी है। कन्दगुडूची मूल' कहते हैं। कन्दोद्भव, कटु एवं उष्ण और सन्निपात, विष, ज्वरभूत | कन्दर (सं० पु० लो०) कं गजशिरः दीर्यते ऽनेन, तथा बलीपलितनाशक है। (राजनिघण्ट) | कट करणे अप । १ अङ्गुश, , हाथोका आंगुस । कन्दग्रन्थि (सं० पु.) १ पिण्डालु नामक कन्दशाक, २ गुहा, खो। प्राकतिक वा निर्मित दोनों प्रकारको शकरकन्द। २ खेतराजालुक, लहसुन। गुहा कन्दर कहाती है। इसका स स्वात पयोय- कन्दन (सं• त्रि.) कन्दात् जायते, कन्द-जन-क। दरो, कन्दरा, कन्दरी, दर और गुहा है। इपाट्रक, कन्दके मूलसे उतपन, जो कन्दको जड़से निकला हो। अदरक। ४ पकर, किक्षा। ५ोल, जिमोंकन्द। कन्दविष (सं.ली.) कन्दजात विष, कन्दका गाजर। . घाटी, दो पर्वतों के मध्य का पथ । जहर। यह अष्टविध होता है। यथा-शक्नुक, ८ खेतखदिर, सफेद खैर। ८ शुण्ठो,सोंठ।१० रोम- मुस्तक, कौमय, दकि, सषेप, सैकत, वमनाभ और विशेष, एक बीमारौ। कंदर देखो। शृङ्गी। इसको शहिक लिये उवा द्रव्यके भाग चणक- कन्दरवान् (स० पु०) कन्दरो ऽस्त्वस्थ, कन्दर- वत् स्वस बना भाजनमें गोमूत्रके साथ छोड़ दे, मतुप मस्य कः। पर्वत, पहाड़। (वि.) २ गुहा- 'फिर पसीव पासपमें पाले रख तीन दिन प्रत्यक्षा भातपम पाल रख तीन दिन प्रत्यहा युक्छजो खो रखता हो। Vol. III. 184