पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

08. कन्धजाति हैं। नायकों और सरदारोंका भी यही हाल है।। क्या जातिके सरदार-सभी अपने-अपने अधीनख इनके सम्मान-सूचक कोई भाड़म्बर नहीं रहता। लोगोंको गृहधर्म और वाह्यधर्म बनानेके लिये विशेष अन्यान्य लोगोंकी भांति यह भी सामान्यभावसे चेष्टित रहते हैं। कन्धोंको विश्वास रहता-जिन कालयापन करते हैं। इनके स्वतन्त्र वासस्थान वा | जातियों के साथ प्रकाश्य-रूपसे कोई सन्धि-नियम नहीं टुगं, प्रबन्धकारी सैन्य और विषयादि नहीं होता। ठहरता, उनमें स्वच्छन्द युद्ध चल सकता है। यहांतक, पैतृक भूमिको कृषिमें अपने और पुत्रपौत्रादिके कि उसी बिसाई या खोंड़को अधीनस्थ भिन्न जातियों में परिश्रमसे उत्पन्न अब ही कन्धोंका प्रधान पाय! सन्धि न रहते एक-दूसरेके सरदार परस्पर लड़ जाते है। इन्हें कोई किसी प्रकारका साहाय्य वा कर हैं। सुतरां इनके मध्य परस्पर प्रकाश्य सन्धि न रहने नहीं देता। किसी उत्सव वा क्रियाकाण्डके समय से सकल हो युद्ध-विग्रहमें डब विशृङ्खला डाल यह पदोचित सम्मानादि पाते पोर उससे परितुष्ट हो सकते हैं। किन्तु सरदारों या अध्यक्षोंका प्रभुत्व अक्षुस्स जाते हैं। प्रति ग्राममें 'डिगाल' निर्वाचित होते हैं। रखनेको सर्वदा ऐसा होने नहीं पाता। सरदारों के समक्ष वही स्व-स्व ग्राम वा जातिका प्रभाव शान्तिरक्षाके लिये कन्धों में जो नियम-विधि और अभियोग उपस्थित करते हैं। फिर वही ग्रामीण चन्नता, वह अन्यान्य असभ्य जातियोंसे नहीं मिलता। लोगोंके मुखपात्र भी ठहरते हैं। किसीका हत्या होनेपर अन्य जातिमें जैसे हतव्यक्तिके ___ सरदार या बिसाई एकान्त आवश्यक न आते आत्मीय प्राणके बदले प्राण लेनेपर वाध्य पड़ते. वैसे अपनी अपनी जातिके किसी विषयमें हस्तक्षेप करने- यह कभी नहीं कहते। हत्याके बदले कन्ध अर्थ लेकर से अलग रहते हैं। किसी कार्य में वह मनमानी भी विवाद मिटा देते हैं। साङ्घातिक प्राधातादि चला नहीं सकते। उन्हें अधीनस्थ नायकों और लगनपर अपराधोके विषयसे आहतको क्षति पुरण- मण्डलोंसे परामर्श ले कर्तव्यावधारण करना होता | स्वरूप अर्थ दिलाया जाता और जबतक वह आरोग्या- है। सब सरदार और बिसाई अपनी अधीनस्थ | वस्थामें नहीं आता, तब तक अपराधोके व्ययसे ही और अपरापर जातिका सम्बन्ध देखते रहते हैं। अपनी संसारयात्रा चलाता है। युद्धादिके विषयमें कर्तव्य ठहराना, किसी हिन्दू ____ इनमें व्यभिचारके दोषपर किसीप्रकार क्षति- राजाको साहाय्य देनेके सम्बन्धमें मीमांसा लगाना, पूरणको प्रथा नहीं। स्त्री व्यभिचारिणी रहने और अपनी जातिमें सकल विषयोंके नियम, न्याय, पकड़ी जा सकनेसे स्वामी उपपतिको मार डालनेपर आचार एवं व्यवहारको शृङ्खला-रक्षाके प्रति दृष्टि वाध्य है। व्यभिचारिणो स्त्री स्वामौके गृहमें स्थान दौड़ाना, अपराधीको दुष्कर्म करनेपर विचारपूर्वक नहीं पाती और बात खुल जानेसे उसी क्षण अपने दण्ड दिलाना और परस्परका विवाद मिटाना भी. पिताके घर भेज दी जाती है। विषयादिगत अप- उन्होंका काम है। राधमें अपराधोके निकटसे हृत वा नष्ट वस्तु उबार त सकल विचार एवं मीमांसाकार्यके निर्वाहको। कर देते हो न तो कोई झगड़ा रहता और अपडत वस्तु वह अपने अधीनस्थ अध्यक्ष एवं नायक एकत्रकर अपहारकसे ले अधिकारीको देने पर न कोई दावा परामर्श लेते हैं। विषयका गुरुत्व देख परामर्श चल सकता। इससे चोरको प्रश्रय तो मिलता, दाताको संख्या घटायो-बढ़ायी जाती है। जातिके | किन्तु प्रथम अपराध हो ऐसा नियम चलता है।' सरदार ही अपने संसारका सामान्य कट त्व, अपने कारण द्वितीय वार चोरी करनेसे अपराधी व्यक्ति- प्रामके मडसका कार्य और अपनी शाखाको अध्यक्षता | विशेषके प्रति अत्याचारी वा सामान्य चौर ही समझा किया करते हैं। महौं जाता, वरं समस्त समाजके प्रति अत्याचार क्या प्रामके मण्डल, क्या शाखाके अध्यक्ष पौर करनेका अभियोग पाता और स्वजातिसे निर्वासन-