पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४२

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०४२ कन्धजाति कन्ध इतना दृढ़ विश्वास रखते, कि इनका प्रायोजन | विलम्ब पड़ने या क्लेश मिलनेसे पुरोहित पाकर देखते ही यथार्थ अपराधी आत्मप्रकाश करने लगते हैं। स्त्रीको दो झरनोंके सङ्गमपर ले जाते, जल को छौंट ... उत्तराधिकारित्वके नियमानुसार जो व्यक्ति स्वयं लगाते और जनन-देवताको पूजादि दिलाते हैं। अषिकार्य वा भूमिरक्षा करने में असमर्थ रहता उसे नामकरणके लिये इनमें बड़ा उद्देग उठता है। पैटक भूमिका अधिकार नहीं मिलता। किसीके | कन्ध ऐसा-वैसा नाम नहीं रखते। पुरोहित एक मरनेसे पुरुष हो विषयाधिकार पाता और ज्येष्ठ पात्रमें जल डाल शिशुके आदिपुरुषसे प्रत्येकका नाम पुबकेही अंशमें अधिक भाग पाता है। किसी-किसी ले जलमें एक-एक धान्य फेंकते हैं। सभी धान्य जातिमें सबको समान भाग भी मिलता है। पुत्र जल में डब जाते हैं। किन्तु जिसके नामका धान्य सन्तान न रहनेसे मृत व्यक्तिके भ्राता अधिकारी होते फेंकते हो तैर पाता, वहो शिशुका नाम रखा जाता हैं। कन्यायें अलङ्कारादि, अस्थावर सम्पत्ति पौर है। इनको विश्वास रहता-उसी व्यक्तिने फिर गहकी सामग्री अंशानुसार बांट लेती हैं। मृत्युके पाकर जन्म लिया है। सप्तम दिवस नव शिशुके समय किसीको कन्या अविवाहिता रहनेसे जितने | कल्याणार्थ 'ग्रामके लोगों और पुरोहितोंको बोला दिन विवाह नहीं ठहरता, उतने दिन उसे पिटगृहमें | खिलाते-पिलाते हैं। इस भोजमें कन्ध महवेकी शराब ही ठहरना पड़ता और भोजन, वस्त्र तथा विवाहका | पीते हैं। व्यय मिलता है। __विवाह विषयमें यह बहुत सतकै रह सम्बन्धादि __इन लोगमि सम्मम रक्षार्थ अधिक मानमर्यादा | जोड़ते हैं। वंशको गुरुता पौर वीर्यवत्ता बचानेके नहीं। इसका कोई नियम कहां पाते-निम्नश्रेणी-| लिये कध कभी स्वश्रेणी वा पात्मीय कुटुम्बमें विवाह वाले उच्च श्रेणीवालीको देखते ही सम्मानके लिये नहीं करते। किन्तु जिन दो जातियों में चिरविवाद अपना मस्तक सुकाते हैं। किन्तु पथमें चलते समय रहता, उनके मध्य विवाह सम्बन्ध गंठ सकता है। स्वश्रेणीके मध्य वयोवृद्धको देख इतना कहना पड़ता भयानक युद्ध चल जाते भी विवाहको सभामें उभय है-मैं जाता हूं। वयोवृद्ध भी उत्तर दे देता है जासिके लोग एकत्र हो पानामोद लगाते हैं। इस जावी। प्रणाम करते समय कन्ध अर्ववाहुको भांति बातको कोई नहीं देखता-प्रभात होते ही फिर दक्षिण हस्त ऊपरको उठाते हैं। कभी-कभी यह | हिगुणं उत्साहसे युद्ध बढ़ेगा। ऐसी घटना प्रायः हिन्दुवोंको रीतिनीति अवलम्बन करते हैं। पूर्व पड़ते रहती है। १०।१२ वत्सरके वयसमें पुत्रका पुरुषके प्रति कन्ध विशेष सम्मान देखा। विवाह होता है । पुवको अपेक्षा वधूका वयस कन्धोंके तुल्य कष्ट-सहिष्णु दूसरी जाति नहीं। अधिक होता है। १० वत्सरवाले वालकके साथ दुर्भिक्ष वा गहविवादमें लिव-भिन्न पड़ते भी कोई प्रभाव पक्षमें १४ वत्सरको कन्याका विवाह करना साधारण विपद् पानेपर सब लोग नवोत्साहसे | चाहिये। इसको अपेक्षा अल्पवयस्काका विवाह उसके विपक्ष उठ खड़े होते हैं। सुमनेसे पाय नहीं होता। फिर भी १५।१६ वत्सरसे अधिक पाता है-जब अंगरेजोंसे कन्धीका युद्ध हुआ, तब वयस्का कोई कन्या अविवाहिता नहीं रहती । सम्बन्ध प्रत्येक सरदारने अपूर्व साहसका परिचय दिया और स्थिर करनेके दिन वरकर्ता अपना पानीय कुटम्ब ले कैसी बड़ी दृढ़ताके साथ अवशेष कष्ट उठा जीवनके | कन्याकर्ताके घर पहुंचते. और कन्याका मूल्य- शेष मुइत पर्यन्त युद्ध किया था। स्वरूप सण्डल, मद्य तथा १११२ पशु अपने साथ .. जन्म, मृत्यु पौर विवाह-तीनों कर्मों में कन्धों के रखते हैं। कन्यापक्षके पुरोहित अपने यजमानके यथेष्ट उत्सवादि है। पासव-प्रसवा कामिनी हारपर खड़े हो उनकी अभ्यर्थना करते हैं। फिर बामके देवताको पूजादि चढ़ाती है। प्रसव होनेमें |: पुरोहित बरकर्ताका प्रदत्त मद्य पो विवाह-देवताको,